लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर प्रदर्शन तेज हो गया है। बीजेपी और शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार एक बार फिर से अब संकट में फंसी है। दरअसल महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की आबादी करीब 33 फीसदी है और महाराष्ट्र की राजनीति में इसकी अच्छी खासी पकड़ है।

पिछले 42 सालों से आरक्षण की मांग

मराठा समुदाय सरकारी नौकरी और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण की मांग कर रहा है। हालांकि यह मांग पिछले 42 सालों से हो रही है, लेकिन अभी तक इस पर कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया है। वहीं अब बीजेपी-शिवसेना सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है। महाराष्ट्र सरकार इस मुद्दे पर विपक्ष की भी राय जानना चाहती है और इसीलिए उसने सर्वदलीय बैठक बुलाई है।

जालना में पुलिस ने किया था लाठी चार्ज

1 सितंबर 2023 को महाराष्ट्र के जालना में आरक्षण को लेकर प्रदर्शन चल रहा था। इस दौरान पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया, जिसके बाद काफी बवाल मचा। 2014 में कांग्रेस सरकार थी और मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने नारायण राणे आयोग की सिफारिश के आधार पर 16 फीसदी आरक्षण के लिए अध्यादेश पेश किया था।

हालांकि इसके बाद भी आरक्षण मिल नहीं पाया। इसके बाद 2018 में बीजेपी की फडणवीस सरकार ने मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया। लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे घटाकर नौकरियों में 13 फीसदी और शिक्षा में 12 फीसदी कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट दे चुका है झटका

इसके बाद 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को बड़ा झटका दिया। उसने सरकार के इस फैसले को रद्द कर दिया। इसके बाद फिर से आरक्षण की मांग तेज हो गई। वहीं अब एक बार फिर से इसको लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने ऐलान किया है कि मध्य महाराष्ट्र क्षेत्र के मराठा अगर निजाम युग से कुनबी के रूप में वर्गीकृत करने वाला प्रमाण पत्र पेश कर दे, तो वे ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ उठा सकेंगे।

वहीं ओबीसी गुट का कहना है कि वह किसी और के लिए आरक्षण का अपना हिस्सा छोड़ने को तैयार नहीं है। ओबीसी समूहों का कहना है कि अगर सरकार मराठा समुदाय को आरक्षण देना चाहती है, तो वह इसे खुली श्रेणी से देने पर विचार करें।