उत्तराखंड में इस बार जिस तरह से भारी बारिश ने तबाही मचाई है और पिछले कई सालों के मुकाबले इस बार रिकार्ड तोड़ बारिश हुई है, उससे पर्यावरण की गहन जानकारी रखने वाले पर्यावरणविद अनुमान लगा रहे हैं कि सर्दियों के मौसम में इस साल पहाड़ों में जबरदस्त बर्फबारी होगी और उससे उच्च हिमालय क्षेत्र में कई हिमनद बर्फ की चादरों से और अधिक ढक जाएंगे। हिमालयी क्षेत्र में सर्दियों में कई बर्फीले तूफानों के आने और कई हिमनदों के टूट कर झील बनने की संभावनाएं प्रबल होंगी।
वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलाजी के वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री, गंगोत्री, डोकरियानी, बंदरपूंछ हिमनद के अलावा चमोली जिले में द्रोणगिरि, हिपरावमक, बदरीनाथ, सतोपंथ और भागीरथी हिमनद मौजूद हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार उत्तराखंड का हिमालय का क्षेत्र अन्य पर्वतमालाओं की तुलना में कहीं तेजी से गर्म हो रहा है। इस तापमान में वृद्धि का कारण प्रमुख रूप से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ती आबादी का दबाव, सड़कों के जाल बिछाने के नाम पर पेड़ों और पहाड़ों का कटान, विकास के नाम पर कंक्रीट से निर्माण है।
संपूर्ण हिमालय क्षेत्र की आठ हजार से ज्यादा हिमनद से बनी हुई झीलें हैं, जिनमें 200 झीलों को अत्यंत खतरनाक श्रेणी में रखा गया है। इनमें से उत्तराखंड में हिमनद से बनी 50 से ज्यादा झीलें शामिल हैं, जिनका स्वरूप तेजी से बदल रहा है। वैसे उत्तराखंड में ढाई हजार से ज्यादा हिमनद हैं। उत्तराखंड के हिमनदों से गंगा, यमुना अलकनंदा, शारदा जैसी कई बड़ी नदियां निकलती हैं. जो नदियां उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में सिंचाई और पेयजल प्रदान करती हैं। परंतु इन नदियों के स्रोत हिमनद पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि उत्तराखंड की नदियों पर बड़े बांध बनाना काफी खतरनाक है।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के पूर्व प्रोफेसर बीडी जोशी का कहना है कि 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद से वैज्ञानिक लगातार हिमालय पर शोध कार्य कर रहे है और इसमें पाया गया है कि उत्तराखंड में हिमनद से बनने वाली झीलें अत्यंत खतरनाक हैं और 2013 की केदारनाथ आपदा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि किस तरह से एक झील के फट जाने से उत्तराखंड में भारी तबाही मची थी।
पर्यावरणविदों के अनुसार उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ धाम के पीछे स्थित चौराबाड़ी, खतलिंग व केदार हिमनद अत्यंत संवेदनशील श्रेणी में आते हैं। वहीं उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में पिथौरागढ़ क्षेत्र में मिलम, काली, नरमिक, हीरामणि, सोना, पिनौरा, रालम, पोंटिंग, मेओला तथा बागेश्वर क्षेत्र में सुंदरढुंगा, सुखराम, पिंडारी, कपननी व मैकतोली जैसे कुछ खास हिमनद हैं जो पहाड़ी क्षेत्र के अलावा मैदानी क्षेत्रों में जल की आपूर्ति करते हैं। वहीं पर्यावरण विभाग के अनुसार गंगोत्री हिमनद लगातार हर साल 22 मीटर पीछे खिसक रहा है।
उत्तराखंड का प्रमुख गंगोत्री हिमनद चार हिमनदों रतनवन, चतुरंगी स्वच्छंद और कैलाश से मिलकर बना है। गंगोत्री हिमनद 30 किलोमीटर लंबा और दो किलोमीटर चौड़ा है। उत्तराखंड में गंगोत्री के बाद सबसे बड़ा दूसरा पिंडारी हिमनद है जो 30 किमीमीटर लंबा और 400 चौड़ा है। यह हिमनद त्रिशूल, नंदा देवी और नंदाकोट पर्वतों के बीच में है।
पर्यावरणीय बदलाव के कारण हर साल ये हिमनद कई मीटर तक पीछे खिसक रहे हैं। अत्यंत संवेदनशील हिमनद के टूटने, एकाएक पिघलने से उत्तर भारत में भयंकर बाढ़ और तबाही की आशंका बनी रहती है। यदि समय रहते इस क्षेत्र में आबादी के बढ़ते दबाव और वनों के कटान तथा बड़ी परियोजनाओं को त्यागने का कार्य रोका नहीं गया तो यह हिमालय क्षेत्र कभी भी भयावह रूप ले सकता है। हिमालय क्षेत्र में मौसम के बदलते मिजाज के कारण तापमान बढ़ने से उत्तराखंड समेत कई क्षेत्रों के हिमनद संकट की स्थिति में हैं।