मई 2004 से लेकर 2009 और 2009 से लेकर 2014 के मई तक मनमोहन सिंह  दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे। इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था 6.6% की दर से बढ़ती रही। उनके बाद मई 2014 में  नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। 2019 में नरेंद्र मोदी की दोबारा सत्ता में वापसी हुई। आंकड़े बताते हैं कि 2014-15 से लेकर 2018-19 तक भारतीय अर्थव्यवस्था 7.5 फीसदी दी दर से आगे बढ़ी। मोदी कार्यकाल में एक समय ऐसा भी आया जब जीडीपी ग्रोथ रेट 8.2 फीसदी भी रही। ये दौर था 2016-17 का जब कुछ महीने पहले ही देश में नोटबंदी लागू की गई थी। यह आंकड़ा 2011-12 से लेकर 2018-19 के बीच सबसे ज्यादा है।

लेकिन अब जिस तरह से अर्थव्यवस्था लगातार गोते मार रही है, बाजार में नकदी संकट है, निर्यात लगातार घट रहा है, औद्योगिक उत्पादन और उपभोक्ता मांग गिर रही है, कार की बिक्री ठप है तब सवाल उठता है कि मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी में कौन से प्रधानमंत्री बेहतर साबित हुए हैं। ‘लाइव मिंट’ ने दोनों सरकारों के तुलनात्मक अध्ययन पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसके मुताबिक इन मानकों पर देखें तो स्पष्ट होता है कि पीएम मोदी से बेहतर मनमोहन सिंह का कार्यकाल रहा है।

इनकम टैक्स ग्रोथ रेट:  व्यक्तिगत आयकर अर्थव्यवस्था की सेहत मापने का एक अनूठा पैमाना है। इससे साफ होता है कि लोगों की इनकम बढ़ रही है या नहीं। आंकड़े बताते हैं कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में सालाना टैक्स रेवेन्यू रेट 17.53 फीसदी प्रति वर्ष था जो नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में 16.85 फीसदी लक्षित किया गया है। हालांकि, यह स्थिति तब है, जब पहले के मुकाबले अब ज्यादा लोग आयकर रिटर्न दाखिल कर रहे हैं। यानी इनकम टैक्स ग्रोथ में तेजी नहीं आ सकी है।

कॉरपोरेट टैक्स ग्रोथ: मोदी सरकार ने हाल ही में कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी छूट दी है। इससे अर्थव्यवस्था पर 1.45 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। मनमोहन और मोदी काल की बात करें तो मोदी सरकार के दौरान कॉरपोरेट टैक्स कलेक्शन की अनुमानित दर 11.20 फीसदी है, जबकि यूपीए सरकार के दौरान यह आंकड़ा 13.09 फीसदी रहा है।

घरेलू वित्तीय बचत: यह ऐसा मानक है जो यह स्पष्ट करता है कि लोग कितनी बचत कर रहे हैं। हालांकि, इसके आंकड़े 2011-12 के बाद से ही उपलब्ध हैं। आंकड़ों के मुताबिक मनमोहन सिंह के कार्यकाल में घरेलू वित्तीय बचत 13 फीसदी की दर से बढ़ता रहा, जबकि मोदी सरकार के दौरान  (2017-18 तक) यह 11.94 फीसदी की दर से बढ़ा। जहां तक शुद्ध घरेलू वित्तीय बचत की बात है तो वह मनमोहन काल में 13.79 फीसदी रही जबकि मोदी कार्यकाल (2016-17 तक) में यह मात्र 7.38 फीसदी ही रही।

सीमेंट उत्पादन: मोदी सरकार के कार्यकाल में सीमेंट उत्पादन मनमोहन युग के दौरान प्रति वर्ष 7.05% के मुकाबले 4.32% प्रति वर्ष बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, यह हाल तब है जब मोदी सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर सड़कों के निर्माण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। यानी स्पष्ट है कि सीमेंट की खपत धीमी है। निजी क्षेत्र में यह और भी कम हो गई है।

रेलवे का यात्री किराया: रेलवे की आर्थिक सेहत भी मोदी सरकार के दौरान गिरी है। हालांकि, निजी हवाई कंपनियों का कलेक्शन मोदी सरकार में बढ़ा है। भारतीय रेलवे के यात्री किराए में मोदी सरकार के दौरान गिरावट दर्ज की गई है। मनमोहन काल में यात्री किराए में बढ़ोत्तरी का आंकड़ा 10.81 फीसदी था जो गिरकर मोदी काल में 7.32 फीसदी (अनुमानित) पर आ गया है।

दोपहिया बिक्री: मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मोटरसाइकिल बिक्री की दर सालाना 12.44 फीसदी थी जो मोदी सरकार के कार्यकाल में गिरकर 5.35 फीसदी प्रति वर्ष रह गई है। यूपीए सरकार के दौरान स्कूटर बिक्री की दर 25.7 फीसदी सालाना थी जो एनडीए शासनकाल में 13.21 फीसदी रह गई।

ट्रैक्टर बिक्री: ग्रामीण अर्थव्यवस्था खासकर किसानों के आर्थिक विकास का यह अच्छा मानक रहा है। मोदी कार्यकाल में ट्रैक्टर बिक्री की अनुमानित दर सालाना 4.49 फीसदी अंकित की गई है, जबकि मनमोहन काल में यह सालाना 15.73 फीसदी रहा है। 2013-14 में जहां कुल 6 लाख 34 हजार ट्रैक्टर की बिक्री हुई, वह मोदी काल में 2015-16 में घटकर चार लाख 94 हजार पर आ गई। यह आंकड़ा किसानी संकट को दर्शाता है।

खुदरा ऋण: बैंकों से कोई भी व्यक्ति कर्ज तभी लेता है, जब वह आशवस्त होता है कि नजदीकी भविष्य में वह उसे चुकता कर देगा। हालांकि, यह बात कॉपोरेट पर लागू नहीं होती है लेकिन खुदरा ऋण पर अक्षरश: लागू होती है। खुदरा ऋण की बात करें तो मनमोहन काल में बैंकों ने सालाना 22.47 फीसदी की दर से लोन बांटे जबकि मोदी काल में यह आंकड़ा 19.92 फीसदी की दर से बढ़ रहा है।