दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया 17 महीने बाद जेल से बाहर आ चुके हैं। कुछ दिन पहले ही कथित शराब घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है। अब जमानत पर बाहर आने के बाद से ही सिसोदिया खासा सक्रिय दिखाई दे रहे हैं, वे लगातार दिल्ली में कार्यकर्ताओं के बीच में जा रहे हैं, इंडिया गठबंधन के नेताओं से भी बात कर रहे हैं। इसी कड़ी में अब जेल से बाहर आने के बाद मनीष सिसोदिया ने अपना पहला इंटरव्यू भी दे दिया है।
जेल के 17 महीने, सिसोदिया ने क्या किया?
असल में मनीष सिसोदिया ने आजतक को अपना इंटरव्यू दिया है। उस इंटरव्यू में उन्होंने कई मुद्दों पर विस्तार से बात की है। उन्होंने बताया है कि आखिर उन 17 महीनों में उन्होंने क्या किया, किन चुनौतियों का उन्हें सामना करना पड़ा और किस तरह से वे मजबूती से खड़े रहे। अपने जेल सफर को लेकर मनीष सिसोदिया ने कहा कि जेल में रहते हुए 15 घंटे उन्हें बिल्कुल अकेले ही रहना पड़ता था। छोटी सी जेल थी, कोई बात करने वाला नहीं होता था। उस समय तो मैं मानता हूं कि किताबें ही मेरी दोस्त बन गई थीं। मैं खुद का ही और पक्का दोस्त बन गया था।
अरविंद केजरीवाल को नहीं मिली अंतरिम जमानत
मनीष सिसोदिया ने इस बात का जिक्र भी किया कि सिर्फ 5 से 6 घंटे का वक्त ऐसा था जब 30 मिनट का ब्रेक मिलता था। उस समय वे जरूर कुछ लोगों से थोड़ी बहुत बातें करते थे। वैसे अपनी जेल यात्रा को लेकर मनीष सिसोदिया यह भी मानते हैं कि वे राजनीतिक रूप से कमजोर नहीं पड़े थे। उनका कहना था कि जंग तो वे बाहर रहकर भी लड़ रहे थे और जेल में भी उनकी वही भूमिका थी।
कभी नहीं सोचा ऐसे जेल जाऊंगा: सिसोदिया
उन्होंने जोर देकर बोला कि परिवार जरूर थोड़ा प्रभावित होता है, उन्हें लेकर थोड़ी चिंता भी रही, लेकिन राजनीतिक रूप से वे शांत थे। सिसोदिया यह जरूर मानते हैं कि उन्हें ऐसी उम्मीद कभी नहीं थी कि शराब घोटाले में इस तरह से जेल जाना पड़ेगा। उन्होंने कभी भी ऐसा नहीं सोचा था, वे तो इसे बस राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित समझ रहे थे। लेकिन अब जब वे जेल से बाहर आए हैं, वे संविधान में भरोसा जता रहे हैं, न्यया प्रक्रिया के प्रति अपनी श्रद्धा दिखा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के नतीजों पर सिसोदिया
अब सिसोदिया ने अपनी जेल यात्रा को लेकर तो विस्तार से बताया है, आम आदमी पार्टी के लोकसभा प्रदर्शन पर भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि लोकसभा में वोटिंग पैटर्न बदल जाता है, उसे समझने में कहीं तो चूक हो रही है। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता को जज करना सही नहीं रहेगा।
