सुप्रीम कोर्ट ने कथित शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया को जमानत दे दी है। 18 महीनों बाद दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम को इतनी बड़ी राहत मिली है। अब जमानत मिलना तो बड़ी बात है, लेकिन जिन दलीलों के जरिए यह दी गई है, वो समझना जरूरी है। असल में कोर्ट ने अपने फैसले के दौरान ईडी से लेकर निचली अदालत तक को घेरा है, दोनों पर ही अहम टिप्पणी की गई है।
कोर्ट की क्या क्या दलीलें?
असल में फैसला सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ईडी ने 8 बार आरोप पत्र दायर किया था, लेकिन एक बार भी ट्रायल शुरू नहीं हो सका। कोर्ट को यह बात खटकी कि जब आरोप पत्र दायर हो चुके थे, तो किस कारण से ट्रायल शुरू करने में देरी की गई। यही पर कोर्ट की दूसरी दलील भी सामने आई जो काफी जरूरी है। इस मामले की सुनवाई के दौरान ईडी ने कहा था कि मनीष सिसोदिया की वजह से लगातार देरी हुई क्योंकि वे याचिका पर याचिका दायर करते रहे।
जमानत पर बाहर, क्या फिर से डिप्टी सीएम बन सकते हैं मनीष सिसोदिया?
निचली अदालतों को दिखाया आईना
लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की इस दलील को मानने से मना कर दिया है। उनके मुताबिक यह कहना गलत होगा कि सिसोदिया की वजह से ट्रायल में देरी हुई। कोर्ट ने यहां पर निचली अदालतों पर भी सवाल उठाया और कहा कि सिसोदिया ने तो सिर्फ अपनी पत्नी से मिलने की मांग की थी। उनकी तरफ से जो अर्जियां दायर की गईं, उनमें सिर्फ पत्नी मिलने की गुहार थी, लेकिन निचली अदालत ने उसे नजरअंदाज कर दिया।
ई़डी को फटकार
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि अदालतों को ये महसूस करना होगा कि जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद। इसका मतलब साफ है कि जहां जमानत मिलने का अधिकार है, वहां पर अदालतों को देरी नहीं लगानी चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जाहिर की कि ईडी ने सिर्फ डेडलाइन दीं, लेकिन एक बार भी ट्रायल शुरू नहीं हो सका।