भगवान शिव द्वारा रावण को चंद्रहार नामक तलवार और दुर्योधन के बज्र सदृष्य शरीर और गदा के बावजूद दोनों इसलिए जीवित नहीं बच सके, क्योंकि उन्होंने क्रमश: सीता और द्रौपदी का अपमान किया था। यानी, नारी का अपमान उस काल में किया था, जब नारी को देवी के रूप में पूजा जाता था, लेकिन उस काल में भी दुष्ट दानव नारी का अपमान करने से बाज नहीं आते थे। परिणामस्वरूप युद्ध और उस दानव के समूल वंश का नाश कर दिया जाता था। लेकिन, आज तो सत्तालोभ में आकंठ डूबे राजनीतिज्ञ उसमें भी अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए प्रताड़ित पक्ष को ही दोषी ठहराते हैं। कितना गिर गया हमारा आज का समाज और हमारा राजनीतिक स्तर। जिन्हें समाज को आगे ले जाने का अधिकार दिया गया, उन्होंने अपना विकास तो किया, लेकिन समाज को बौना कर दिया।

लोकसभा में मणिपुर प्रकरण पर अविश्वास प्रस्ताव मंजूर

आज विश्व में भारत का जो अपमान हो रहा है, देश का राजनीतिज्ञ उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है और उसके ही खिलाफ विषवमन कर अपनी कमी स्वीकारने के स्थान पर पीड़ित का साथ देने वालों को ही देशद्रोही बताकर अपराध पर मिट्टी डालने की कोशिश करते हैं । फिलहाल, लोकसभा में मणिपुर प्रकरण पर अविश्वास प्रस्ताव मंजूर हो गया है और अब सदन में प्रधानमंत्री मणिपुर पर बोलेंगे ।

पिछले सप्ताह तो राज्यसभा और लोकसभा की कार्यवाही लगभग  बिल्कुल ठप्प रही ; क्योंकि विपक्षी मणिपुर की दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर प्रधानमंत्री से उत्तर की मांग  कर रहे थे,वे चाहते हैं कि मणिपुर प्रकरण पर अधिनियम 267 के तहत चर्चा हो, लेकिन प्रधानमंत्री उत्तर देने के लिए सदन में उपस्थित ही नही रहते थे । दोनों सदनों की कार्यवाही बार बार स्थगित होती रही और फिर अंत में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड़ ने आप के नेता सांसद संजय सिंह को इस पूरे मानसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया। केंद्र सरकार नियम 176 के तहत मणिपुर हिंसा पर सदन में चर्चा करने को तैयार हैं।

आज देश का कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो मणिपुर की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से अपरिचित हो। जिस तरह से मणिपुर में नारियों का अपमान किया गया है, जिनके मर्मभेदी चीत्कार से पूरा देश मर्माहत हुआ और सम्पूर्ण भारत हिल गया ऐसा संभवतः भारत में आज तक कभी नहीं किया गया है। जिस प्रकार निर्वस्त्र करके सार्वजनिक रूप से महिला को सरेआम घुमाया गया, खेत में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया गया, इस सभ्य समाज में आज तक कहीं ऐसा नहीं किया गया होगा, न किसी ने कभी सुना होगा। लेकिन, हां अब इस निर्लज्जतापूर्ण कृत्य पर भी राजनीति शुरू हो चुकी है।

मणिपुर में पिछले लगभग 90 दिनों से हिंसा जारी है। इस बीच, कुछ ऐसे वीडियो सामने आए हैं, जिसने पूरे देश को दहला दिया है। इस वीडियो में कुकी समुदाय की दो महिलाओं को नग्न करके सड़क पर घुमाते दिखाया जा रहा है। यह वीडियो पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इसकी निंदा की। उन्होंने कहा कि दोषियों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने यहां तक कह दिया कि या तो सरकार कार्रवाई करे, नहीं तो हम खुद इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे। 

पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि पंचायत चुनाव के दौरान दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाया गया। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पश्चिम बंगाल की भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी रोने लगीं। मणिपुर में दरिंदगी पर गुस्सा शांत भी नहीं हुआ और बंगाल-बिहार से महिलाओं के साथ हैवानियत की तस्वीरें सामने आ गईं। बंगाल में चोरी के आरोप में दो महिलाओं को बुरी तरह पीटा गया, उनके कपड़े फाड़ डाले गए, तो बिहार में टीचर के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दिखी लड़की पर लोगों का गुस्सा ऐसा भड़का कि वे हैवान बन गए। बिना कपड़े में ही बुरी तरह से पिटाई कर दी। 

अब कुछ मणिपुर के शानदार इतिहास को समझने की कोशिश करते हैं। 1947 में जब अंग्रेजों ने मणिपुर छोड़ा, तब से मणिपुर का शासन महाराज बोधचंद्र सिंह के कंधों पर आ पड़ा । 21 सितंबर, 1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर, 1949 से मणिपुर भारत का अंग बना। 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू होने पर यह एक मुख्य आयुक्त के अधीन भारतीय संघ में भाग ‘सी’ के राज्य के रूप में शामिल हुआ।

बाद में इसके स्थान पर एक प्रादेशिक परिषद गठित की गई, जिसमें 30 चयनित तथा दो मनोनीत सदस्य थे। इसके बाद वर्ष 1962 में केंद्रशासित प्रदेश अधिनियम के अंतर्गत 30 चयनित तथा तीन मनोनीत सदस्यों की एक विधानसभा स्थापित की गई। 19 दिसंबर, 1969 से प्रशासक का दर्जा मुख्य आयुक्त से बढ़ाकर उपराज्यपाल कर दिया गया। 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा  और मिला   60 निर्वाचित सदस्यों की विधानसभा गठित की गई। इसमें 19 अनुसूचित जनजाति और एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। राज्य में लोकसभा में दो और राज्यसभा में एक प्रतिनिधि है।

मणिपुर में 3 मई से हिंसा की शुरुआत हो चुकी थी। मणिपुर में तीन मई को मैतेई (घाटी बहुल समुदाय) और कुकी जनजाति (पहाड़ी बहुल समुदाय) के बीच हिंसा शुरू हुई थी। दरअसल, मणिपुर में मैतेई समाज की मांग है कि उसको कुकी की तरह राज्य में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए। कुकी जनजाति भारत के मणिपुर और मिजोरम राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में एक जनजातीय समूह हैं। कुकी भारत, बांग्लादेश, और म्यांमार में पाई जाने वाले कई पहाड़ी जनजातियों में से एक हैं। उत्तर-पूर्व भारत में, अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर वे सभी राज्यों में मौजूद हैं।

आरक्षण विवाद के बीच मणिपुर सरकार ने अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई ने आग में घी डालने का काम किया। मणिपुर सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग संरक्षित जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं। ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फॉरेस्ट रूल-2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक अभियान चला रही है। वहीं, आदिवासियों का कहना है कि यह उनकी पैतृक जमीन है। उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि वर्षों से वहां रहते आ रहे हैं। सरकार के इस अभियान को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया, जिससे आक्रोश फैला।

ढेरों अपमान और आघात सहने के बावजूद वही सरकार है, वही एन. वीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने एक राष्ट्रीय चैनल को टेलीफोन पर इंटरव्यू देते हुए कहा था कि ‘ऐसी घटना कितनी हुई है, उसे याद रखना संभव नहीं है।’ कितना बड़ा दुर्भाग्य है राज्य की निरीह जनता का, जहां की सरकार को सब कुछ पता है, लेकिन मामले को महीनों दबाकर रखा जाता है। मुख्यमंत्री ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया कि इन्हीं सब कारणों से इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई थीं, लेकिन अब जब उसे शुरू किया गया, तो इस प्रकार की घटनाओं की जानकारियां सामने आ रही हैं।

भला हो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का, जिन्होंने कम-से-कम इस घटना पर संज्ञान तो लिया, लेकिन वही मुख्यमंत्री अब भी राज्य का हितचिंतक बनकर सत्ता की कुर्सी पर बैठा है। जनता इस बात से हैरान है कि इतना सख्त निर्णय लेने वाला प्रधानमंत्री उस अपाहिज मुख्यमंत्री का, जिसके कारण अब तक सैकड़ों लोग हलाक हो गए और अरबों-खरबों की सरकारी और निजी संपत्ति आग के हवाले कर दी गई है, साथ ही विश्वभर में भारत की बदनामी हुई है, उसको अब तक बर्खास्त क्यों नहीं कर पा रहे हैं? सच तो यह भी है कि केंद्र में किसी की भी सरकार रही हो, ‘सेवन सिस्टर्स’ के नाम से मशहूर पूर्वोत्तर के इन सभी खूबसूरत सात राज्यों को उपेक्षित और देश की मुख्य धारा से सदैव अलग रखा गया।

विश्लेषक यह भी कहते हैं कि इन सात राज्यों से केंद्र में कभी सरकार नहीं बन सकती है, इसलिए केंद्र में सत्तारूढ़ चाहे कोई दल रहा हो, ये सातों राज्य सदैव उपेक्षा के शिकार ही होते रहे। इन सभी सातों राज्यों में कोई राज्य ऐसा नहीं है जहां रह-रहकर माहौल बिगड़ता न हो। हां, मणिपुर में इस बार जो शर्मनाक घटना घटी है, उससे सरकार को सबक मिले और निकट भविष्य में इन राज्यों को भारत का अभिन्न अंग मानते हुए उनके आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक स्थिति को ठीक करने का बीड़ा उठा ले, तभी लंबे समय बाद इनकी दशा और मानसिकता में बदलाव आएगा, अन्यथा जिस तरह की घटना घटी है, वह आखरी घटना नहीं बन सकेगी।

Senior Journalist Nishi Kant Thakur | Manipur |

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)