पूर्वोत्तर भारत का राज्य मणिपुर, खूबसूरत है, विकास भी हो रहा है, लेकिन इस समय हिंसा की ऐसी चपेट में है कि अब तक 54 लोगों की मौत हो चुकी है, चप्पे चप्पे पर सेना की मौजूदगी है, इंटरनेट सेवा बंद चल रही है और जमीन पर तनाव जबरदस्त है। मणिपुर में हिंसा का इतिहास पुराना है, समय-समय पर विवाद होता रहा है। दो समुदायों के बीच लड़ाई, सेना के साथ झड़प आम बात रही है, लेकिन इस बार मणिपुर में जो आग फैली है, वो कुछ अलग है। पहली बार देखा जा रहा है कि आम लोग भी हिंसा में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

मणिपुर का इतिहास, हिंसा की क्या जड़?

अब इस बार की हिंसा को तभी ठीक तरह से समझा जा सकता है, जब मणिपुर के बैकग्राउंड को भी समझ लिया जाए। असल में मणिपुर में तीन समुदाय सक्रिय हैं- इसमें दो पहाड़ों पर बसे हैं तो एक घाटी में रहता है। मैतेई हिंदू समुदाय है और 53 फीसदी के करीब है जो घाटी में रहता है। वहीं दो और समुदाय हैं- नागा और कुकी, ये दोनों ही आदिवासी समाज से आते हैं और पहाड़ों में बसे हुए हैं। अब मणिपुर का एक कानून है, जो कहता है कि मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में रह सकते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होगा। ये समुदाय चाहता जरूर है कि इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।

पहले भी हिंसा हुई, इस बार अलग क्या?

हाल ही में हाई कोर्ट ने एक टिप्पणी में कहा था कि राज्य सरकार को मैतेई समुदाय की इस मांग पर विचार करना चाहिए। उसके बाद से राज्य की सियासत में तनाव है और विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। ऐसे ही एक आदिवासी मार्च के दौरान बवाल हो गया और देखते ही देखते हिंसा भड़क गई। अब उसी हिंसा को डीकोड करते हैं जिसमें एक अलग ही पैटर्न देखने को मिल गया है। पिछली बार मणिपुर में इस स्तर की हिंसा साल 1992 में देखने को मिली थी जब NSCN (IM) और कुकी समुदाय के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था। उस हिंसा में कुकी समुदाय के करीब 100 लोगों की मौत हो गई थी।

हिंसा को रोकेगा कौन?

अब इस बार की जो हिंसा हुई है, उसमें आरोप कुकी समुदाय के विद्रोही गुट पर लगा है। राज्य सरकार का आरोप है कि म्यांमार से ये लोग घुसपैठ करवा रहे हैं। अभी के लिए कुकी समुदाय ने हिंसा में अपने किसी भी तरह के योगदान से इनकार कर दिया है। राज्य सरकार की जो रिपोर्ट है, उससे भी पता चलता है कि आम लोगों का इस बार हिंसा से कनेक्शन हो सकता है। बड़ी बात ये भी है कि पहले जब राज्य में नागा बनाम कुकी समुदाय का संघर्ष हुआ था, तो सिविल सोसाइटी ने मामला शांत करने में बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन इस बार तो पड़ोसी ही दूसरे पड़ोसी पर हमलावर है, ऐसे में कौन नफरत की खाई को पाटेगा, कौन शांति स्थापित करेगा, ये समझ नहीं आ रहा। अभी के लिए मणिपुर हिंसा का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है और कल सुनवाई हो सकती है।