मणिपुर में हिंसात्मक घटनाओं के चलते इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं और जरूरी सामानों की दुकानें भी बस थोड़े समय के लिए ही खुल रही हैं। फायरिंग और आगजनी की घटनाओं को लेकर लोग काफी दहशत में हैं और घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। लोग पलायन करने को मजबूर हैं। पिछले हफ्ते शुरू हुई यह हिंसा, तब भड़की जब मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने को लेकर चर्चाएं तेज होने लगीं। पहाड़ी इलाकों में रहने वाली जनजातियां इसके विरोध में उतर आईं।
10 साल पुराना है विवाद
मणिपुर में तीन मुख्य समुदाय, मैतेई, कुकी और नागा हैं। राज्य में मैतेई समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा है, जो इंफाल घाटी में बसे हैं। वहीं, कुकी और नागा आदिवासी समुदाय हैं और ये लोग पहाड़ी इलाकों में रहते है। पहाड़ी जनजातियां मुखयरूप से ईसाई धर्म को मानने वाली हैं। राज्य की 53 फीसद आबादी मैतेई है और आर्थिक रूप से काफी संपन्न है। अब मैतेई समुदाय भी एसटी दर्जे की मांग कर रहा है, जिसका कुकी और नागा कड़ा विरोध कर रहे हैं।
मैतेई समाज के लोगों का कहना है कि म्यांमार और बांग्लादेशियों द्वारा बड़े पैमाने पर अवैध अप्रवासन को देखते हुए उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें मौजूदा कानून के अनुसार पहाड़ी क्षेत्रों में बसने की भी अनुमति नहीं है। शिड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी मणिपुर (STDCM) एक दशक से भी ज्यादा समय से मैतेई को एसटी श्रेणी में शामिल करने के लिए आंदोलन की अगुवाई कर रहा है। उनका कहना है कि उनकी मांग सिर्फ नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और टैक्स रिलीफ में आरक्षण के लिए नहीं है बल्कि मैतेई समाज की पैतृक भूमि, संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए भी है। 19 अप्रैल को मणिपुर हाई कोर्ट ने सरकार को एक निर्देश दिया था कि वह चार हफ्तों के अंदर मैतेई समुदाय को आरक्षित श्रेणी में शामिल करने के अनुरोध पर विचार करे और केंद्र सरकार को भी सिफारिश भेजे।
19 अप्रैल के आदेश ने मैतेई और पहाड़ी जनजातियों के बीच पुराने संघर्ष को फिर से शुरू कर दिया। ऑल इंडिया स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने चुराचांदपुर जिले के तोरबंग क्षेत्र में ‘ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च’ का आयोजन किया। वे अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे के लिए गैर-आदिवासी मैतेई की मांग का विरोध कर रहे थे। छात्र संघ का कहना है कि घाटी के विधायक खुले तौर पर मैतेई की मांग का समर्थन कर रहे हैं और सामूहिक रूप से जनजातीय हितों की रक्षा के लिए उचित उपायों की आवश्यकता है। इस मार्च में हजारों लोग शामिल हुए और हाथों में तख्तियां लेकर मैतेई समुदाय के लिए एसटी दर्जे का विरोध करते हुए नारे लगाए।
कुकी जनजाति का ऐसा मानना है कि अगर मैतेई समुदाय को आरक्षण मिल जाता है तो वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले से वंचित हो जाएंगे। उनका यह भी कहना है कि आरक्षण मिलते ही मैतेई समुदाय के लोग अधिकांश आरक्षण को हथिया लेंगे।
विरोध प्रदर्शनों पर सरकार का क्या रुख है?
राज्य में जारी विरोध प्रदर्शनों पर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का कहना है कि यह दोनों समुदायों के बील गलतफहमी है। उन्होंने आज सुबह एक ट्वीट कर लोगों से शांति और सद्भाव बनाए रखने में सरकार का सहयोग करने की अपील है। उन्होंने एक प्रमुख मिजोरम छात्र निकाय द्वारा की गई मांगों की भी निंदा की है, जिसमें कहा गया है कि राज्य म्यांमार से बड़े पैमाने पर अवैध आप्रवासन के खतरे का सामना कर रहा है। मुख्यमंत्री ने इस पूरे घटनाक्रम को जिले का आंतरिक मामला करार दिया है और कहा कि यह दो समुदायों के बीच की गलतफहमी है।
कैसे शुरू हुई थी हिंसा?
पिछले हफ्ते उस स्थान पर पहली बार झड़प हुई, जहां मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह एक कार्यक्रम में शामिल होने वाले थे। इसके बाद हिंसा भड़क गई और चर्चों में आग, आदिवासियों के घरों पर हमले जैसी घटनाएं देखने को मिलीं। मणिपुर में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारतीय सेना और असम राइफल्स को तैनात किया गया है। तोरबंग में तीन घंटे से अधिक समय तक चली आगजनी में कई दुकानों और घरों में तोड़फोड़ की गई। स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए राज्य पुलिस ने सेना और असम राइफल्स के साथ फ्लैग मार्च किया। हिंसा प्रभावित क्षेत्रों से 7,500 से अधिक लोगों को निकाला गया है और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जा रहा है।
मणिपुर में जारी हिंसा के चलते फ्लाईट्स के दाम 6 से 8 गुना तक बढ़ गए हैं। इंफाल से कोलकाता तक जाने के लिए एयरलाइन कंपनियां 22 हजार से 30 हजार रुपये तक चार्ज कर रही हैं। ऐसे में लोगों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। लोगों का कहना है कि या तो फ्लाईट्स पूरी तरह से भरी हुई हैं या फिर जो टिकट मिल रही हैं उनके रेट बहुत हाई हैं। इस बीच कुछ एयरलाइंस ने और फ्लाइट्स शुरू करने का फैसला किया है।