एक मर चुका शख्स जिंदा मिला है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि ये किसी भी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच की जा रही एक केस फाइल का हिस्सा है। यह पूरा का पूरा वाकया साल 2005 का है। पंजाब की पुलिस ने एनडीपीएस एक्ट के तहत एक शख्स को अरेस्ट किया और बाद में दावा किया कि वह हिरासत से भाग गया। उसके पिता ने याचिका दायर की और कुछ दिनों के बाद में एक शव मिलता है और यह मान लेते हैं कि वह उसके बेटे का ही शव है। वह शख्स 14 साल के बाद में जिंदा मिला है।

सुप्रीम कोर्ट साल 2005 में पुलिस हिरासत से लापता हुए शख्स के पिता नागिंदर सिंह की अपील पर विचार कर रही है। यह पूरा का पूरा मामला जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच के सामने लिस्ट किया गया था। बेंच ने मामले को 14 फरवरी 2025 तक के लिए स्थगित कर दिया। नागिंदर सिंह ने अपनी याचिका में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के 12 जनवरी, 2021 के आदेश को चुनौती दी है। इसमें पुलिस अधिकारियों को तलब करने के 12 दिसंबर, 2017 के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया गया था।

पुलिस ने एनडीपीएस के तहत केस किया दर्ज

पंजाब पुलिस ने इस याचिका का विरोध किया है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि उनके बेटे हरदीप सिंह को पुलिस ने 24 अगस्त 2005 को लुधियाना के देहलों से एनडीपीएस के तहत गिरफ्तार किया था। पुलिस जब हरदीप सिंह राजू को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने के लिए गाड़ी से लेकर जा रही थी तो वह पुलिस की हिरासत से भाग गया और उसके खिलाफ 25 अगस्त 2005 को एक अन्य धारा में भी केस दर्ज किया गया। इसके बाद नागिंदर सिंह ने अपने बेटे हरदीप सिंह को पेश करने के लिए एक याचिका दायर की। एक वारंट अधिकारी को नियुक्त किया गया लेकिन हरदीप का पता नहीं चल पाया। 17 सितंबर 2005 को एक शख्स का शव मिला और उसका पोस्टमार्टम किया गया।

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अज्ञात शव तालाब से बरामद किया गया

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि शव उसके बेटे का था और पुलिस अधिकारियों ने उसकी हत्या की है। हालांकि, नागिंदर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के सामने अपनी याचिका में साफ कहा कि उन्हें पता चला कि एक अज्ञात शव पानी के तालाब से बरामद किया गया था और पुलिस अधिकारियों ने जल्दबाजी में उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया। हाईकोर्ट ने एडीजीपी को जांच करने और एक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था। एडीजीपी ने रिपोर्ट दी थी कि बरामद शव शिकायतकर्ता के बेटे का नहीं था और वह जिंदा था और शिकायकर्ता के साथ में लगातार संपर्क में बना हुआ था।

इसके बाद कोर्ट ने सत्र न्यायधीश को जांच करने और शिकायकर्ता के बेटे के ठिकाने के बारे में एक रिपोर्ट पेश करने का भी निर्देश दिया। सत्र न्यायधीश ने 31 अगस्त 2008 को अपनी जांच रिपोर्ट सामने रखी। इसमें कहा गया कि शिकायतकर्ता के बेटे को पुलिस ने हिरासत में रहते हुए मार डाला। इस रिपोर्ट के बाद में कोर्ट ने 21 मई, 2010 को आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया और इस तरह 21 अगस्त, 2010 को एफआईआर दर्ज की गई।

जांच के लिए एसआईटी का गठन भी किया गया

एफआईआर की जांच के दौरान ही एक स्पेशल टास्क फोर्स का भी गठन किया गया। इसने फिर से अपनी रिपोर्ट पेश की और बताया कि शिकायतकर्ता का बेटा जिंदा है। आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई भी सबूत नहीं मिला। इसके बाद शिकायतकर्ता ने एक और याचिका दायर की।

न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 7 दिसंबर, 2017 के आदेश के तहत याचिकाकर्ताओं को बुलाया। इस बीच, अगस्त 2019 में मजिस्ट्रेट ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किए थे और 2 सितंबर, 2019 को पुलिस ने अपने वकील के जरिये ट्रायल कोर्ट के सामने एक आवेदन दिया और दावा किया कि हरदीप सिंह वास्तव में जिंदा है। उसे 25 अगस्त 2005 की एफआईआर में क्रिमिनल घोषित किया गया था और अब उसे अरेस्ट कर लिया गया है और वह न्यायिक हिरासत में है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि वह शख्स जिंदा है और याचिका को खारिज कर दिया।

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 12 जनवरी, 2021 को अपने आदेश में माना कि नागिंदर सिंह सीआरपीसी के तहत कार्यवाही के लिए उत्तरदायी हैं। हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए नागिंदर सिंह ने कहा कि कथित तौर से दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या के तहत कार्यवाही संभव नहीं है। बेटे के अचानक सामने आने के बारे में बताते हुए याचिकाकर्ता पिता ने अपनी याचिका में कहा कि वास्तव में 14 सालों तक पुलिस अधिकारियों ने हरदीप सिंह को अवैध हिरासत में रखा था और उसे प्रताड़ित किया गया था। पिता ने कहा कि एक मरे हुए व्यक्ति को अपराधी घोषित नहीं किया गया था। यह साफतौर से पुलिस अधिकारियों की साजिश को सामने लाता है।