विशेष अदालत ने सितंबर 2008 के मालेगांव विस्फोट कांड के गवाह दिलीप पाटीदार के रहस्यमय ढंग से गायब होने के मामले को खत्म करने की सीबीआइ की रिपोर्ट खारिज कर दी। इसके साथ ही, मामले में महाराष्ट्र पुलिस के दो अफसरों के खिलाफ संज्ञान लेते हुए उनकी गिरफ्तारी के लिए वॉरंट जारी कर दिया। विशेष सीबीआइ मजिस्ट्रेट राघवेंद्र सिंह चौहान ने प्रकरण में सीबीआइ की खात्मा रिपोर्ट को 26 मई को खारिज कर दिया।

सीबीआइ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उसे मुंबई पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) के तत्कालीन इंस्पेक्टर राजेंद्र घुले और तत्कालीन सब इंस्पेक्टर रमेश मोरे के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 342 (बंधक बनाना), 365 (किसी व्यक्ति को बंधक बनाने की नीयत से गुप्त तौर पर उसका अपहरण), 193 (झूठे सबूत गढ़ना) और अन्य संबद्ध धाराओं के तहत दंडनीय अपराध में शामिल होने के सबूत मिले हैं। लेकिन सक्षम प्राधिकारी ने दोनों अफसरों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दी। इसलिए मामले को खत्म कर दिया जाना चाहिए।

अदालत ने अभियोजन और बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि दोनों आरोपियों के कृत्य लोक सेवकों के कर्तव्यों की परिधि में नहीं आते हैं। लिहाजा उनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति लिया जाना आवश्यक नहीं है। विशेष सीबीआइ मजिस्ट्रेट ने कहा कि केस डायरी के अवलोकन से स्पष्ट है कि घुले और मोरे के खिलाफ भारतीय दंड विधान की विभिन्न धाराओं के तहत मामला चलाने के लिए पर्याप्त आधार मौजूद हैं। अदालत ने दोनों पुलिस अफसरों के खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट जारी करते हुए उन्हें तीन जून को पेश करने का आदेश दिया। मुंबई एटीएस 10 और 11 नवंबर, 2008 की दरम्यानी रात पाटीदार को पूछताछ के लिए इंदौर से अपने साथ ले गया था। मालेगांव धमाकों का गवाह तबसे आज तक घर नहीं लौटा और उसका कोई अता-पता नहीं है।

पाटीदार के भाई रामस्वरूप ने अपने अनुज की गुमशुदगी को लेकर मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ में सीबीआइ जांच की अर्जी दायर की थी, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया था। रामस्वरूप के वकील जेपी शर्मा ने कहा कि दिलीप पाटीदार का परिवार करीब आठ साल से उसकी गुमशुदगी की विभीषिका झेल रहा है। इस परिवार को यह तक पता नहीं है कि दिलीप पाटीदार अब दुनिया में है या नहीं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस के दोनों आरोपी अफसरों को तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए और उन्हें अदालत में पेश किया जाना चाहिए। सूत्रों के मुताबिक पाटीदार, समझौता एक्सप्रेस विस्फोट समेत अलग-अलग बम धमाकों में वांछित रामचंद्र कलसांगरा उर्फ रामजी का इंदौर में किराएदार रह चुका था।

मुंबई एटीएस को पाटीदार से पूछताछ के जरिए फरार कलसांगरा के बारे में सुराग हासिल होने की उम्मीद थी। पाटीदार के भाई ने अपने अनुज की गुमशुदगी को लेकर मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ में सीबीआइ जांच की अर्जी दायर की थी, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया था। उधर, मुंबई एटीएस ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में कहा था कि मालेगांव धमाकों के मामले में बयान दर्ज कराने के लिए पाटीदार अपनी मर्जी से मुंबई गया था। वह तब महाराष्ट्र की संबंधित अदालत में बयान देने को भी तैयार हो गया था। एटीएस के मुताबिक पाटीदार को अपनी पहचान का दस्तावेजी सबूत लाने को कहा गया था। उसने इसके लिए 18 नवंबर, 2008 को एटीएस का मुंबई कार्यालय छोड़ दिया था, मगर वह वहां वापस नहीं लौटा।