पेरिस की सड़कों पर बंदूकधारियों की गोलियों से बचने की कोशिश करते लोग और समुद्र तट पर एक शरणार्थी बच्चे की लाश, जो यूरोप पहुंचने से पहले ही रास्ते में समुद्र में डूबकर मारा गया। ये दोनों की तस्वीरें बताती हैं कि हम एक बेहद हिंसक वक्त में जी रहे हैं।
तुर्की, बेरुत, नाइजीरिया और पेरिस पर हुए नृशंस हमले दुनिया के किसी विशेष भूभाग या देश पर नहीं, बल्कि पूरी मानवता पर हुए। दुनिया को इसके खिलाफ एकजुट होने और मजबूती से इसका विरोध करने की जरूरत है। इस खूनखराबे का कोई वाजिब कारण नहीं दिया जा सकता। इस्लामिक स्टेट या अलकायदा जैसे संगठन इस्लाम के नाम पर यह सब कर रहे हैं। हालांकि, उनकी ये करतूत पवित्र कुरान या पैगंबर की शिक्षाओं के ठीक उलट है। पेरिस में जिस तरह से निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया, इस्लाम इसकी न तो इजाजत देता है और न ही इसे वाजिब ठहराता है। पैगंबर मोहम्मद शांति के दूत थे। इस्लाम बराबरी सिखाता है। यह नफरत फैलाने का काम नहीं करता। जो लोग या संगठन इस तरह की आपराधिक घटनाओं में शामिल हैं, उनका किसी भी मजहब में कोई जगह नहीं है। पेरिस पर हुए हमलों के बाद 75 शहरों में जमीयत उलेमा ए हिंद के सदस्यों ने आईएस विरोधी प्रदर्शन किए। इनमें यही पैगाम दिया गया कि आतंक का मजहब से कोई नाता नहीं है।
हमें इन हिंसाओं को दो धर्मों के बीच लड़ाई के तौर पर देखने से बचना होगा। मुस्लिम और ईसाई समुदाय के बीच कोई संघर्ष नहीं है। इस तरह के संघर्ष वाली दुनिया का कोई अस्तित्व नहीं है। दुनिया एक ऐसी जगह है, जहां सभी धर्मों के लोग एक साथ शांतिपूर्वक रहते हैं। सीरिया में सिर्फ मुस्लिम नहीं तकलीफ पा रहे। वहां ईसाई, यहूदी और दूसरे धार्मिक समुदाय के लोग भी हैं। साफ तौर पर कहें तो मजलूमों को निशाना बनाकर किया गया कोई भी हमला पूरी इंसानियत पर हमला है और इन घटनाओं को इसी नजरिए से देखे जाने की जरूरत है। यही तो पवित्र कुरान भी सिखाता है कि एक निर्दोष शख्स की हत्या पूरी इंसानियत को मारने जैसा है।
इस बीच, दुनिया भर में चल रही राजनीति इस ओर इशारा करती हैं कि दुनिया को पुराने दिनों की तरह दि्वध्रुवीय राजनीति की ओर ले जाने की कोशिश हो रही है। भारत का किसी भी शक्ति केंद्र के पक्ष में न होकर हमेशा से तटस्थ रहने का इतिहास रहा है। भारत को दुनिया में चल रही इन कोशिशों पर नजर रखनी होगी। दुनिया क्या, भारत में भी सुरक्षा एजेंसियां आईएसआईएस के सिर उठाने और इसके विचारधारा के फैलने की आशंकाओं से बेचैन हैं। हो सकता है कि ये चिंताएं वाजिब हों, लेकिन इससे पहले कि हम किसी नतीजे पर पहुंचें, एक बार भारत में मुसलमानों के इतिहास पर नजर डालना होगा। दुनिया के कई देशों से इस तरह की खबरें आईं कि वहां आईएसआईस और उससे पहले अलकायदा, लोगों का बड़े पैमाने पर ब्रेनवॉश करके अपने यहां शामिल कर रही हैं। भारत के मुसलमान इस तरह के प्रभाव से बचे रहे हैं। वहीं, यहां बहुत से ऐसे मामले हैं, जिनमें सुरक्षा एजेंसियों ने मुसलमानों को फर्जी मामलों में फंसाया। आजादी के लिए संघर्ष के दिनों से मुसलमान दूसरों की तरह ही राष्ट्र निर्माण में शामिल रहा है। जमीयत उलेमा ए हिंद जैसे प्रमुख मुस्लिम संगठनों के राष्ट्रवादी चरित्र की वजह से ऐसा मुमकिन हुआ। ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिलने के बाद इन संगठनों ने देश को तरक्की के रास्ते पर आगे ले जाने की ठानी। भारतीय मुसलमान बराबरी का हक पाने और अपने आर्थिक हालात ठीक करने की लगातार कोशिश करता रहा है। उसका इस देश के संस्थानों में भरोसा है। उसने किसी हिंसक विचारधारा के सामने घुटने नहीं टेके।
पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में सूफी इस्लाम की भारतीय परंपरा को शांति का संदेश देने वाला करार दिया था। पीएम को यह याद रखना चाहिए कि सूफी ही नहीं, मुस्लिम समुदाय का हर धड़ा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना में भरोसा रखता है। पीएम का इस तरह का बयान यह जाहिर करता है कि वे मुस्लिम समुदाय की असल चिंताओं से जुड़े सवालों से बचना चाह रहे हैं। खास तौर पर तब, जब बीते साल बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से मुस्लिम खुद को हाशिए पर जाते महसूस कर रहे हैं। भारत सरकार या गृह मंत्रालय जो भी सोचता हो, कट्टरपंथी ताकतों द्वारा भारतीय मुस्लिमों को बरगलाने की आशंका असल चिंता की बात नहीं है। भारतीय मुस्लिमों की समस्याएं उनसे बड़ी हैं। वे अपनी सुरक्षा और आजीविका के मौकों को लेकर चिंतित हैं। ऐसे में सरकार को इनकी समस्याओं पर फोकस करने की ज्यादा जरूरत है।
