Mahatma Gandhi in Kumbh Mela: प्रयागराज का कुंभ मेला, भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक, न केवल धार्मिकता का उत्सव है बल्कि यह सदियों से समाज की सामूहिक चेतना और स्वतंत्रता की भावना का परिचायक भी रहा है। यह मेला, जहां अनगिनत श्रद्धालु और संत अपनी आस्था की डुबकी लगाने संगम पहुंचते हैं, अंग्रेजी हुकूमत के दौरान एक ऐसा मंच बन गया था, जहां धर्म और स्वतंत्रता की चेतना का संगम देखने को मिला।
अंग्रेज कुंभ को राजनीतिक खतरे के रूप में देखते थे
अंग्रेजों के लिए कुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था। इसे उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक खतरे के रूप में देखा। उनके लिए यह भीड़ केवल तीर्थयात्रियों का जमावड़ा नहीं, बल्कि भारतीयों के सामूहिक मनोबल का प्रतीक था। कुंभ के माध्यम से लोगों का एक साथ जुटना और विचारों का आदान-प्रदान हुकूमत के लिए चुनौतीपूर्ण था। इसी कारण अंग्रेज सरकार ने कुंभ मेले के दौरान भीड़ को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए। सबसे उल्लेखनीय कदम था रेलवे टिकट की बिक्री पर प्रतिबंध। रेलगाड़ी, जो उस समय लंबी दूरी के यात्रियों के लिए मुख्य साधन थी, को बंद कर दिया गया।
सरकार के फैसले से तीर्थयात्रियों में था गहरा आक्रोश
1918 के कुंभ मेले में यह प्रतिबंध और भी स्पष्ट हुआ। तत्कालीन रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष आर.डब्ल्यू. गिलन ने संयुक्त प्रांत के उप राज्यपाल जेम्स मेस्टन को पत्र लिखकर इस बात पर जोर दिया कि कुंभ मेले के लिए जाने वाली ट्रेनों की संख्या कम की जाए और टिकट की बिक्री बंद कर दी जाए। उद्देश्य यह था कि लोग प्रयागराज तक पहुंच ही न सकें। इस निर्णय ने न केवल तीर्थयात्रियों की आस्था पर चोट पहुंचाई बल्कि लोगों के बीच आक्रोश भी पैदा किया।
इस ऐतिहासिक मेले का हिस्सा बने महात्मा गांधी ने 1918 के कुंभ में पहुंचकर संगम में डुबकी लगाई। यह डुबकी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं थी; यह उनके भीतर ऊर्जा और प्रेरणा का संचार करने का माध्यम थी। कुंभ में उनके आगमन का उल्लेख सीआईडी की उस समय की खुफिया रिपोर्ट में दर्ज है। इस रिपोर्ट के अनुसार, बापू ने यहां न केवल स्नान किया, बल्कि मेले में उपस्थित लोगों से मुलाकात कर उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित भी किया।
महात्मा गांधी ने कुंभ मेले को केवल धार्मिक उत्सव के रूप में नहीं देखा, उन्होंने इसे एक ऐसा अवसर माना, जहां लोगों की भावनाओं को समझा और उनके साथ अपने विचार साझा किए जा सकते थे। उस समय असहयोग और खिलाफत आंदोलन चरम पर थे। गांधीजी ने इस धार्मिक अवसर का उपयोग देश की आजादी के लिए समर्थन जुटाने और आम जनता को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए किया।
ऐसे समय में जब अंग्रेज सरकार ने कुंभ में लोगों के जुटने को रोकने के लिए रेलवे टिकट पर प्रतिबंध लगाया, क्रांतिकारियों ने इसे अपनी रणनीति का हिस्सा बना लिया। कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक स्थल था, बल्कि यह स्वतंत्रता आंदोलन के लिए नई ऊर्जा और दिशा प्राप्त करने का स्थान भी बन गया। क्रांतिकारी यहां गुप्त रूप से पहुंचते, संगम में स्नान करते और फिर अपने कार्यों को अंजाम देने के लिए लौट जाते। यह स्नान उनके लिए केवल आध्यात्मिक शुद्धिकरण नहीं था, बल्कि यह संघर्ष में नई शक्ति और आत्मविश्वास भरने का प्रतीक था।
कुंभ मेले में महात्मा गांधी की उपस्थिति ने इस आयोजन को और भी ऐतिहासिक बना दिया। उनके आगमन ने न केवल मेले की महत्ता को बढ़ाया, बल्कि इसे स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण अध्याय भी बना दिया। उनके विचार और प्रेरणा ने लोगों को इस बात का एहसास कराया कि धार्मिकता और राष्ट्रवाद एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।
अंग्रेजों की तमाम कोशिशों के बावजूद कुंभ मेला हमेशा भारतीयों की आस्था और सामूहिक चेतना का प्रतीक बना रहा। यह मेला न केवल धर्म, बल्कि समाज की एकता, संघर्ष और स्वतंत्रता की भावना को भी दर्शाता है। 1918 का कुंभ और महात्मा गांधी की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि जब भी लोगों को रोकने की कोशिश की जाती है, उनकी सामूहिक शक्ति और बढ़ जाती है। कुंभ मेला तब भी और आज भी, भारत के अदम्य साहस और आध्यात्मिकता का प्रतीक बना हुआ है।