राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सेहत से जुड़े रिकॉर्ड पहली बार सार्वजनिक किए गए हैं। उनके मुताबिक, वह सिर्फ 47.7 किलोग्राम के थे। बापू को इसके अलावा तीन बार मलेरिया भी हुआ था, जबकि व्रतों के चलते कई बार मौत तक उनके बेहद करीब आ गई थी। राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में सहेज कर रखी गईं उनके स्वास्थ्य से जुड़ी फाइलें इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा ‘गांधी एंड हेल्थ @ 150’ में प्रकाशित की गई हैं। किताब का विमोचन हिमाचल के धर्मशाला में 14वें दलाई लामा ने किया।
उन्होंने इस मौके पर कहा कि 21वीं सदी में भी बापू की अहिंसा और मानसिक स्वास्थ्य की नीति प्रासंगिक है। उनके स्वास्थ्य से संबंधित फाइलें बताती हैं कि 1939 में बापू का वजन 46.7 किलो था, जबकि वह पांच फुट पांच इंच लंबे थे। उस हिसाब से उनका बॉडी मास इंडेक्स 17.1 था, जो कि मौजूदा हालात में कम वजन माना जाता है।
रिकॉर्ड से यह भी पता लगा कि महात्मा को कुछ और गंभीर बीमारियां भी हुईं, जिसमें तीन बार (1925, 1936 और 1944) मलेरिया होना शामिल है। उनका पाइल्स और अपेंडिसाइटिस का क्रमशः 1919 और 1924 में ऑपरेशन भी हुआ था। बापू जब लंदन में थे, तब उन्होंने पोरिसी भी झेला।
खाने-पीने की आदतों और उपवासों के कारण बापू की तबीयत कई बार तो इतनी गड़बड़ाई कि उन्होंने मौत को बेहद करीब से भी देखा था। आगे 1937 से 40 के बीच उनके इलेक्ट्रो कार्डियोग्राम (ईसीजी) रिकॉर्ड नॉर्मल पाए गए। हालांकि, उन्हें उच्च रक्तचाप की शिकायत भी रहती थी, फिर भी वह अक्सर शांत और सौम्य अवस्था में ही नजर आते थे।
डॉ.सुशीला नायर, जो बाद में देश की स्वास्थ्य मंत्री बनीं, उनसे बापू ने एक बार पत्र लिख कर कहा था, “मेरा रक्त चाप हमेशा ऊपर रहता है, इसलिए मैं सर्पगंधा की तीन बूंदें लेता हूं।” हालांकि, 166 पन्नों वाली किताब में बताया गया, “गांधी हर दिन लगभग 18 किमी पैदल चलते थे। 1913 से 1948 के बीच चले अभियान के दौरान वह लगभग 79,000 किमी पैदल चले, जितना कि पृथ्वी के दो बार चक्कर लगाने के समान है।”
बापू आमतौर पर दूध नहीं पीते थे। एक बार तबीयत खराब हो गई थी, तब पत्नी कस्तूबरा के कहने पर उन्होंने बकरी का दूध पीना शुरू किया था। वह इसके अलावा दवाइयों से दूरी बनाकर रखते थे। उनका मानना था कि प्रकृति और उससे जुड़ी चीजों से सबसे बेहतर इलाज हो सकता है। वह इस बात को खुद पर भी लागू करते थे।
किताब में संपादकीय लेख केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने लिखा है। उनके मुताबिक, “हो सकता है कि गांधी जी से जुड़ी कुछ चीजें आज की पीढ़ी को चौंकने पर मजबूर करे, मगर उनका जीवन, दर्शन और विचारधारा आज भी हमारे बीच उतना ही प्रासंगिक है, जितना कि तब हुआ करता था।”