Congress Election Performance Analysis: महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावी नतीजे काफी कुछ बता रहे हैं। एक तरफ महाराष्ट्र का जनादेश इस बात की तस्दीक करता है कि लोकसभा चुनाव की निराशा को बीजेपी ने पूरी तरह दूर कर दिया है तो वहीं झारखंड का फैसला दिखाता है कि हर राज्य में हिंदू कार्ड उस तरह से काम नहीं करता है। लेकिन इन दो राज्यों के चुनावी नतीजे देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए काफी कुछ कहते हैं। महाराष्ट्र में तो सबसे खराब स्ट्राइक रेट के साथ कांग्रेस ने पूरी महा विकास अघाड़ी को डुबोने का काम किया है, झारखंड में भी जितनी सीटों पर वो लड़ी, उसकी आधी सीटें ही जीत पाई।

सिर्फ महाराष्ट्र नहीं झारखंड भी हारी है कांग्रेस

यह कहना गलत नहीं होगा कि महाराष्ट्र में तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ है, दूसरी तरफ झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार बनी है। यहां पर हेमंत सोरेन पर ज्यादा जोर इसलिए क्योंकि जानकार मानते हैं कि झारखंड जीत में सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना की मेहनत ज्यादा रही, कांग्रेस सिर्फ एक साइड किक बनकर रह गई। इसके ऊपर अगर उत्तर प्रदेश के उपचुनाव को भी देख लें तो वहां तो कांग्रेस एक भी सीट पर नहीं लड़ी। जिस राज्य में वो अखिलेश यादव से पांच सीटों की मांग कर रही थी, वो बाद में ऐसा झुकी कि सारी सीटें सपा की झोली में गईं। अब नतीजे बता रहे हैं कि अखिलेश का पीडीए पूरी तरह फ्लॉप रहा, 9 में से सिर्फ 2 सीटों पर सपा को जीत मिली।

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यूपी में कांग्रेस होती जा रही साफ

इसके ऊपर यह नहीं भूलना चाहिए यूपी की गाजियाबाद सीट पर कांग्रेस का जनाधार सपा की तुलना में काफी ज्यादा रहा है। लेकिन वो सीट भी क्योंकि कांग्रेस ने छोड़ दी, ऐसे में वहां एकतरफा अंदाज में कमल खिला। यानी कि कांग्रेस ने इस बार महाराष्ट्र हारा है, यूपी उपचुनाव में वो अखिलेश भरोसे है तो वहीं झारखंड में यह असल में हेमंत सोरेन की सरकार है। अगर बात आंकड़ों में की जाए तो महाराष्ट्र में कांग्रेस इस बार 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था, कहां जाता है कि यह सबसे शुभ अंक है, लेकिन कांग्रेस के लिए सिर्फ सियासी बर्बादी लेकर आया। इस चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 16 सीटों पर जीत मिली, यानी कि उसका स्ट्राइक रेट मात्र 16 प्रतिशत रह गया।

महाराष्ट्र में सबसे खराब स्ट्राइक रेट

जिस बीजेपी से मुकाबला करने की बात कांग्रेस डंके की चोट पर करती रहती है, महाराष्ट्र में उसका प्रदर्शन हर मायने में ऐतिहासिक है। बीजेपी इस बार 149 सीटों पर लड़ी थी और उसने 132 सीटों पर जीत हासिल की, यानी कि उसका विनिंग स्ट्राइक रेट 86 फीसदी से भी ज्यादा का रहा। झारखंड में चले तो वहां अब कांग्रेस जूनियर पार्टी बनकर रह गई। हेमंत सोरेन ने एक बड़ा दिल दिखाते हुए कांग्रेस को 30 सीटों पर लड़ने का मौका दिया था, लेकिन वो सिर्फ 16 ही निकाल पाई। दूसरी तरफ 43 सीटों पर लड़ने वाली जेएमएम ने 34 सीटें जीतकर जबरदस्त प्रदर्शन किया। उसे पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 4 सीटों का फायदा हुआ। दूसरी तरफ कांग्रेस पिछली बार की तरह फिर 16 सीटों पर सिमट गई।

झारखंड में हेमंत की मेहनत, कांग्रेस कहा?

अब कांग्रेस एक बार के लिए झारखंड में तो हेमंत सोरेन की जीत को अपना बता सकती है, लेकिन महाराष्ट्र की हार से मुंह नहीं मोड़ सकती। अगर वो महा विकास अघाड़ी में खुद को बड़े भाई के रोल में देख रही थी, अगर उसने सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, उसका प्रदर्शन भी उसके अनुरूप रहना चाहिए था। लेकिन यहां तो सबसे बड़ी पार्टी ने ही अपने गठबंधन को सबसे ज्यादा निराश किया है। वैसे इस बार कांग्रेस ने निराश तो हरियाणा में भी अप्रत्याशित रूप से किया। जिस राज्य को पूरी तरह कांग्रेस की झोली में माना जा रहा था, हर सर्वे एंटी इनकमबेंसी की तस्दीक कर रहा था, वहां पर कांग्रेस का बुरा हाल रहा। कांग्रेस सिर्फ 37 सीटें जीत पाई और 48 सीटों के साथ बीजेपी ने तीसरी बार लगातार हरियाणा में अपनी सरकार बनाई।

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के साथ खेल

हरियाणा को लेकर तो कहा जा रहा है कि कांग्रेस को उसका ओवर कॉन्फिडेंस ले डूबा। जरूरत से ज्यादा विनेश फोगाट को लाइमलाइट में रखना गैर-जाट वोटों को कोसों दूर ले गया। ऐसे में जिस राज्य में जीत की गारंटी थी, वहां भी कांग्रेस खाली हाथ रह गई। जम्मू-कश्मीर में भी मॉरल विक्ट्री ही वो हासिल कर पाई क्योंकि जम्मू प्रांत में उसका प्रदर्शन काफी खराब रहा। कांग्रेस 39 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन उसके खाते में गईं सिर्फ 6 सीटें, उसका स्ट्राइक रेट 15 फीसदी का रहा। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस तो खुद इस सरकार से भी दूर हो गई, उसने शामिल होने से ही मना कर दिया। कारण जरूर पूर्ण राज्य के दर्जा वाला दिया, लेकिन असल में कांग्रेस बिना ही एनसी ने निर्दलीयों के सहारे सरकार बना ली, ऐसे में उसकी कोई अहमियत नहीं रह गई थी।

बंगाल में कांग्रेस ने डाल दिए हथियार

वैसे हिंदी पट्टी राज्यों में तो कांग्रेस कमजोर होती जा ही रही है, इसके अलावा पश्चिम बंगाल में भी अब उसे अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ेगी। इस बार के जो उपचुनाव हुए हैं, वहां पर कांग्रेस को एक सीट छोड़कर किसी पर 5 हजार वोट भी हासिल नहीं हुए। उसके प्रत्याशी हर सीट पर तीसरे या फिर चौथे पायदान पर रहे। लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस ने खुद भी अब पश्चिम बंगाल की सियासत पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना बंद कर दिया है, वो मान चुकी है कि यहां मुकाबला टीएमसी बनाम बीजेपी का चल रहा है।

कांग्रेस ने कैसे गंवा दी लोकसभा की बढ़त?

अब सवाल उठता है कि कांग्रेस चूक कहां कर रही है? आखिर लोकसभा में मिली बढ़त कुछ महीनों में ही छूमंतर कैसे हो सकती है? इसका सबसे बड़ा कारण जानकार मानते हैं कि कांग्रेस के पास मुद्दों का आभाव है। असल में लोकसभा चुनाव के वक्त जातिगत जनगणना का मुद्दा चल रहा था, संविधान बचाओं नेरेटिव कनेक्ट कर गया था, लेकिन बात जब विधानसभा चुनाव की आती है, तब खेल लोकल मुद्दों का ज्यादा रहता है। लेकिन कांग्रेस ने वहां भी इन्हीं मुद्दों के सहारे आगे बढ़ने का फैसला किया और बुरी तरह हार गई। हरियाणा में अग्निवीर का जिक्र करती रही, अडानी-अंबानी का राग अलापा, लेकिन लोकल मुद्दे नदारद रहे। महाराष्ट्र में भी पूरे समय या तो पीएम मोदी पर निजी हमले या फिर बस अडानी का जिक्र, ऐसे में वहां भी जनता ने नकार दिया।

बीजेपी ने कैसे किया जबरदस्त कमबैक?

बड़ी बात यह भी है कि बीजेपी के हिंदू कार्ड का कांग्रेस के पास कोई तोड़ नहीं दिख रहा है। बीजेपी ने महाराष्ट्र में हिंदुओं को एकजुट रहने के लिए कहा, नतीजा लैंडस्लाइड जीत रहा। दूसरी तरफ कांग्रेस सिर्फ अल्पसंख्यकों के वोट के सहारे रह गई है। वैसे कांग्रेस का पतन अगर दिख रहा है तो बीजेपी ने दूसरी तरफ कई सही फैसले लिए हैं। उन फैसलों के दम पर ही उसने उन राज्यों में जबरदस्त वापसी की है जहां उसे लोकसभा चुनाव में नुकसान हुआ था। असल में बीजेपी ने छोटी जातियों पर फोकस किया है, बात चाहे हरियाणा की हो या फिर महाराष्ट्र की, दोनों ही राज्यों में तय रणनीति के तहत वो आगे बढ़ी और उसके पक्ष में नतीजे आए। हरियाणा में जाटों का गुस्सा था तो गैर जाट वोट हासिल किए। महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन जोर पकड़ रहा था तो दूसरी जातियों का वोट लिया।

कांग्रेस के सामने चुनौतियां अनेक

इस तरह से बीजेपी ने तो जबरदस्त वापसी कर ली, लेकिन कांग्रेस अभी भी सिर्फ इस बात से संतुष्ट नजर आ रही है कि उसने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 240 सीटों पर रोक दिया है। लेकिव वो यह भूल गई है कि इतने प्रयास के बाद भी तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही बने हैं। इसके ऊपर अब फिर 2019 की तरह बीजेपी की स्थिति लोकसभा और विधानसभा दोनों में मजबूत होती दिख रही है। ऐसे में आने वाले दिनों में कांग्रेस ज्यादा मॉरल विक्ट्री नहीं ले पाएगी और इंडिया गठबंधन में अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए उसे काफी पसीना बहाना पड़ेगा।

वैसे कांग्रेस तो हरियाणा हार के बाद से ही इंडिया गठबंधन वाले तेवर दिखाने लगे थे। उसकी बारगेनिंग पावर काफी कम हो गई थी। कई राज्यों में सीट शेयरिंग करवाना भी उसके लिए चुनौती साबित हो रहा था। महाराष्ट्र हार ने उस दिक्कत बस और ज्यादा बड़ा बना दिया है, स्थिति को विस्फोटक कर दिया है। यहां पढ़ें यह पूरी खबर