महाराष्ट्र में सीएम उद्धव ठाकरे और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बीच की तनातनी जगजाहिर है। लेकिन इस मामले में नया मोड़ तब आया जब बांबे हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी में कहा कि हमें पता है कि दोनों एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते। जनहित के लिए दोनों को अपने शिकवे मिटाने होंगे। नहीं तो सूबा तरक्की की राह से भटक जाएगा।

दरअसल, हाईकोर्ट बुधवार को बीजेपी नेताओं की तरफ से दायर दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। इनमें असेंबली के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के चुनाव से जुड़े नियमों को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने दोनों याचिकाओं को खारिज करके दोनों की तरफ जमा कराई गई रकम को जब्त करने का भी आदेश दिया। बीजेपी नेता गिरीश महाजन ने कोर्ट में 10 लाख रुपये और जनक व्यास ने दो लाख रुपये जमा कराए थे।

जस्टिस दीपांकर दत्त और जस्टिस एमएस कार्निक की बेंच ने अपने 21 अगस्त 2021 के एक आदेश का जिक्र कर कहा कि राज्यपाल की संवैधानिक ड्यूटी है कि वो मंत्रिमंडल की तरफ से अनुमोदित विषयों को तय समय सीमा के भीतर लौटाएं। उन्हें उस विषय पर आपत्ति भी है तो भी समय का ध्यान रखें। कोर्ट ने तब ये टिप्पणी विधानपरिषद में 12 सदस्यों के मनोनयन को लेकर की थी।

कोर्ट ने आज कहा कि हम भी संविधान की एक व्यवस्था के तहत काम करते हैं। लेकिन हमारे साथ भी अजीब बर्ताव किया जा रहा है। 12 एमएलसी के मामले में आदेश पारित किए हुए 8 माह बीत चुके हैं पर अभी तक कुछ नहीं हो सका है। हमारे आदेश को भी तवज्जों नहीं मिल पा रही है।

कोर्ट ने कहा कि हम ये नहीं कह रहे कि सीएम या राज्यपाल में से कौन गलत है। सीएम सूबे का कार्यकारी मुखिया है। उसे सारे राज्य को देखना होता है। बीजेपी नेताओं की याचिका पर कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका का कोई मतलब नहीं है।