महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित सोलापुर के मलशिराज तालुका के 18 गांवों के किसान बीते पांच सालों से बेहद परेशान हैं। गांव के खेत सूखे और बंजर हो चुके हैं। कुओं में कचरा ऊपर तक भर चुका है। ऐसे खराब हालात में इन किसानों को सूबे की देवेंद्र फडणवीस सरकार से न के बराबर मदद मिली है। इससे नाराज इन किसानों ने 21 अक्टूबर को राज्य के विधानसभा चुनावों के लिए होने वाले मतदान में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के खिलाफ वोट देने का फैसला किया है।
सिर्फ बीते एक महीने में इन गांवों में कुछ बारिश हुई है। ऐसे में खेतों में थोड़ी बहुत हरियाली का आभास होता है। मलवाली गांव के 80 साल के किसान अनंत जाधव ने बताया, ‘बीते 5 सालों में ऐसे हालात नहीं थे। हमने कुछ भी बोया, लेकिन उगा नहीं। अगर थोड़ा बहुत उग भी गया तो जल्द ही खराब हो गया। ऐसा इसलिए क्योंकि न के बराबर बारिश हुई। भले ही यहां से बेहद दूर स्थित बांध भरा हुआ था लेकिन हम तक पानी वक्त पर नहीं पहुंचा।’
जाधव ने बताया कि तीन लाख रुपये लगाने के बावजूद पिछले साल एक रुपये की कमाई नहीं हुई। उन्होंने कहा, ‘अगर हमारी तकलीफों के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है तो कौन है? बांध से वक्त पर पानी छोड़ने की हमारी फरियाद नहीं सुनी गई। अब हमारी ओर से गुस्सा जाहिर करने की बारी है।’
बता दें कि वीर बांध का पानी पूरे साल वक्त पर खेतों में नहीं पहुंचा, जिसकी वजह से इन गांवों के करीब 1 लाख एकड़ जमीन पर बुरा असर पड़ा। गांववालों ने आरोप लगाया कि राजनेता अपने खेल खेलते हैं, अफसरों का कड़ा रुख बरकरार रहता है और सरकार के पास उनकी पीड़ा को समझने का वक्त नहीं है। किसानों ने यह भी कहा कि उन्होंने वक्त पर पानी छोड़ने के लिए बहुत सारे आंदोलन किए लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। उनका दावा है कि सरकार की ओर से धमकी दी गई कि अगर उन्होंने अपना आंदोलन वापस नहीं लिया तो उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जाएंगे।
जिन गांवों में ये दिक्कत है, उनमें मकवाली, शिंदेचिंच, तंदोलवाड़ी, सालुखवाड़ी, धनोड़े, टोंडले, वेलापुर, दासुर, उगडेवाड़ी, मलखांभी, नीमगांव और पिसेवाड़ी आदि शामिल हैं। ये गांव वीर बांध से करीब 120 किमी दूर स्थित हैं। पानी छोड़े जाने के दो महीने या उससे ज्यादा वक्त में यह नहर के जरिए इन गांवों तक पहुंचता है। इन 18 गांवों की आबादी करीब 1.25 लाख है।
एक अन्य 79 वर्षीय किसान जे जाधव ने बताया कि उन्होंने पिछले साल 2 लाख रुपये खर्च करके 30 एकड़ जमीन में ज्वार बोया था। उनके मुताबिक, पानी वक्त पर न छोड़े जाने की वजह से उनकी पूरी फसल तबाह हो गई। उन्होंने ज्वार की बुआई अक्टूबर में की, जबकि पानी दिसंबर-जनवरी में पहुंचा। अब उनपर बैंक का कर्ज चुकाने का दबाव है। उनके मुताबिक, बीते 5 साल से लगातार ऐसे ही हालात हैं।