महाराष्ट्र चुनाव में महा विकास अघाड़ी के बीच में जिस तरह की सीट शेयरिंग हुई है, उससे शरद पवार गुट और उद्धव गुट तो खुश हो सकता है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह किसी मजबूरी से कम नहीं। असल में ऐसी खबर है कि कांग्रेस इस बार 288 सीटों में से सिर्फ 85 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है। बड़ी बात यह है कि उद्धव गुट और शरद गुट भी इतनी ही सीटों पर प्रत्याशी उतारेगा। अब कांग्रेस के लिए चिंता की बात यह है कि वो पहली बार महाराष्ट्र में इतनी कम सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रही है।
कांग्रेस का महाराष्ट्र में पिछला प्रदर्शन
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अब पिछले 15 सालों से महाराष्ट्र में जैसा कांग्रेस का प्रदर्शन रहा है, उसे देखते हुए तो वो इतनी ही सीटों पर लड़ सकती थी, लेकिन जो सपने वो बड़े भाई बनने के देख रही थी, वो पूरा होता नहीं दिख रहा। अगर अब महाराष्ट्र चुनाव में महाविकास अघाड़ी की जीत हो जाती है, तब पावर शेयरिंग में कांग्रेस को खासी मुश्किलों का सामना करना पडे़गा। पूरी संभावना है कि एक बार फिर सीएम कुर्सी उसके हाथ से छिटक जाए। वैसे भी इससे पहले उद्धव ठाकरे भी यही खेल कांग्रेस के साथ 2020 में कर चुके हैं जब पार्टी का सीएम बनते-बनते रह गया था।
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साल | कांग्रेस सीटें |
2009 | 82 |
2014 | 42 |
2019 | 44 |
कांग्रेस का महाराष्ट्र में अब कैसा जनाधार?
अब यह चुनावी आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि कांग्रेस का महाराष्ट्र में जनाधार कम होता जा रहा है। उसकी सीटों की संख्या कम होती चली गई है। लेकिन समझने वाली बात यह है कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव में लोकसभा वाला प्रदर्शन नहीं दोहरा पा रही है। हरियाणा इसका एक बड़ा उदाहरण है जहां पर जीती हुई बाजी पार्टी ने गंवाई है। अगर महाराष्ट्र की बात करें तो कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 13 सीटें जीती हैं, यहां भी 11 सीटों पर उसने बीजेपी प्रत्याशी को मात दी है।
ऐसे में स्पष्ट संदेश देने का प्रयास रहा है कि बीजेपी को हराने में सिर्फ कांग्रेस सक्षम है। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे सिर्फ 1 सीट मिली थी और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में मात्र 44 सीटें। ऐसे में पार्टी को अगर फिर महाराष्ट्र में अपनी स्थिति मजबूत करनी है उसे हर कीमत पर अपने पारंपारिक वोटबैंक को मजबूत करना होगा। यानी कि पार्टी को दलित, मुस्लिम और आदिवासी वोटरों को अपने पाले में खींचना होगा। इसके ऊपर जिस तरह से इस बार के लोकसभा चुनाव ने मराठवाड़ा के मराठा आंदोलन ने कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाई, फिर कुछ वैसा ही कमाल पार्टी को करना पडे़गा। यानी कि स्थानीय मुद्दों को आगे लेकर चलना होगा।
85 सीटों के लिए कांग्रेस क्यों हुई राजी?
वैसे कांग्रेस इस बार अगर 85 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उसका एक कारण यह भी समझ आता है कि वो उतनी ही सीटों पर ज्यादा मजबूत स्थिति में भी है। असल में जैसा महाराष्ट्र का सियासी गणित देखने को मिलता है, वहां पर कांग्रेस बनाम बीजेपी का मुकाबला विदर्भ और मराठावाड़ा के हिस्से में रहता है। इस पूरे क्षेत्र से महाराष्ट्र की 100 के करीब सीटें निकलती हैं। जानकार मानते हैं कि इस वजह से भी कांग्रेस को इस बार सिर्फ 85 सीटों पर लड़ने को बोला गया है। इसका मतलब यह भी है कि पार्टी को अपने मजबूत गढ़ में और ज्यादा बेहतर करना पड़ेगा, उसी स्थिति में महा विकास अघाड़ी में उसकी सुनी जाएगी।
हरियाणा जैसा हाल महाराष्ट्र में क्यों नहीं होगा?
कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र में एक राहत की बात यह जरूर है कि वो किसी एक लोकल नेता पर निर्भर नहीं है। जैसे राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट को लेकर विवाद था, हरियाणा में हुड्डा बनाम शैलजा की जंग थी, लेकिन महाराष्ट्र में तो उसके अलग-अलग इलाकों में अलग स्थानीय नेता सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। ऐसे में महत्वकांक्षा या सत्ता की वो रस्साकशी यहां देखने को नहीं मिलने वाली। उदाहरण के लिए लातूर में अमित देशमुख, गढ़चिरौली और चंद्रपुर में विजय वडेट्टीवार, भंडारा में नाना पटोले अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं, उन नेताओं के दम पर ही कांग्रेस आगे बढ़ती है।
इंडिया दिलवा रहा कांग्रेस से कुर्बानी?
लेकिन इन तमाम तर्कों के बावजूद भी कांग्रेस को लेकर यह जरूर कहा जा सकता है कि इंडिया गठबंधन में बने रहने की वजह से उसे भी कई कुर्बानियां देनी पड़ रही हैं। सोचने वाली बात यह है कि जिस पार्टी ने इतने सालों तक पूरे देश में राज किया है, जिसने महाराष्ट्र में भी कई सालों तक अपने दम पर अपनी सरकार चलाई है, अब उसे बड़े भाई की भूमिका निभाने का मौका भी नहीं मिल रहा। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस ज्यादा विरोध भी नहीं जता सकती है क्योंकि अब उसे गठबंधन के सहारे ही आगे बढ़ने की आदत हो चुकी है। महाराष्ट्र जैसे राज्य में तो कई सालों से उसका शरद पवार की पार्टी के साथ गठबंधन चल रहा है, इस बार तो उद्धव को भी स्पेस देनी पड़ी है।
हरियाणा की हार कांग्रेस को पड़ी भारी
कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती यह भी है कि वो हरियाणा का चुनाव हार चुकी है। उस चुनाव में क्योंकि उसने इंडिया गठबंधन को चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिया, इस वजह से हार का पूरा ठीकरा भी उसी पर फूटा। यह भी एक कारण है कि अब संजय राउत, शरद पवार काफी आसानी से कांग्रेस को दबा पा रहे हैं, अपनी शर्तें मनवा पा रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस का ऐसा ही हाल कर दिया है, वहां भी उपचुनाव में उसका एक प्रत्याशी नहीं है। ऐसे में इंडिया गठबंधन में रहना भी कांग्रेस के लिए जरूरी है, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि उसकी सबसे बड़ी गले की फांस भी यही इंडिया गठबंधन है।
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