अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी को बुधवार को उनके बाघंबरी गद्दी आश्रम में पूरे विधिविधान और मंत्रोच्चार के बीच गंगा स्नान और चंदन का लेप लगाने के बाद पद्म मुद्रा में बैठी हुई अवस्था में भू समाधि दे दी गई। उनको उनकी इच्छा के अनुसार आश्रम के नीबू के पेड़ के नीचे ही समाधि दी गई। अंतिम संस्कार का पूरा विधान उनके उत्तराधिकारी महंत बलवीर गिरी ने अपने हाथों से पूरा किया। इस दौरान वहां संत समाज के लोगों के अलावा बड़ी संख्या में उनके भक्त और शिष्य तथा आम जन मौजूद रहे। इससे पहले उनके पार्थिव शरीर को फूलों से सजे वाहन पर रखकर उनके आश्रम लाया गया।
दशनाम परंपरा में संतों के ब्रह्मलीन होने पर उनके अंतिम संस्कार करने का विशेष विधान है। सबसे पहले जिस विशेष स्थल पर समाधि दी जानी होती है, वहां पर गंगाजल और अन्य पवित्र पदार्थों से वैदिक मंत्रों के साथ शुद्धिकरण किया जाता है। इसके बाद वहां गहरा गड्ढा बनाया जाता है। उसमें विशेष तरह के आसन बिछाए जाते हैं। विभिन्न पवित्र नदियों और सरोवरों की मिट्टी डाली जाती है। उसमें चीनी, नमक और फल मिष्ठान आदि भी डाले गए। गोबर से लीपा जाता है।
समाधि देने से पहले संत को गंगा स्नान कराकर उनके वस्त्र, जनेऊ आदि बदले जाते हैं। विभिन्न तरह के चंदन, इत्रों और माला फूल से उनका श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद उन्हें बैठी हुई अवस्था में गड्डे के बीच में स्थापित किया जाता है। इसे दशा को पद्म मुद्रा कहते हैं। इस कार्य के बाद उन पर गंगा जल, पुष्प, गुलाल आदि डाला जाता है। इस दौरान सभी संत, महात्मा, शिष्य उनका अंतिम दर्शन करते हुए गड्ढे को पवित्र नदियों की मिट्टी से ढंकते हैं। और अंत में उस पर गोबर से लिपाई होती है।
बुधवार की सुबह पोस्टमार्टम के बाद पार्थिव शरीर को श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी लाया गया। फूलों से सजे वाहन पर पार्थिव शरीर रखकर अंतिम यात्रा शहर के मार्गों से होकर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम पहुंची। वहां स्नान कराने के बाद बांध स्थित लेटे हनुमान मंदिर लाया गया और फिर वापस श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी ले जाया गया। यहां वैदिक मंत्रोच्चार के साथ महंत के पार्थिव शरीर को भू समाधि दी गई।