Maha Kumbh Mela 2025 records: महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की अनंत यात्रा का जीवंत प्रमाण है। प्रयागराज में जारी महाकुंभ 2025 अब अपने अंतिम चरण में है और इस बार इस दिव्य समागम ने इतिहास के पन्नों में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया है। 26 फरवरी महाशिवरात्रि के अवसर पर अंतिम स्नान के साथ महाकुंभ का समापन हो जाएगा। लेकिन इससे पहले ही यह आयोजन एक ऐसा आंकड़ा पार कर चुका है, जो इसे अब तक के सबसे भव्य और ऐतिहासिक आयोजनों में स्थान देता है।

महाशिवरात्रि तक आंकड़ा 70 करोड़ को पार कर जाने का अनुमान

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 24 फरवरी 2025 की रात 8 बजे तक 63.36 करोड़ श्रद्धालु संगम में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। अनुमान है कि महाशिवरात्रि पर कम से कम 6 करोड़ और श्रद्धालु स्नान करेंगे। इससे कुल संख्या 70 करोड़ को पार कर जाएगी। यह संख्या भारत की आजादी के समय की कुल आबादी से लगभग दोगुनी और भारत की मौजूदा आबादी की आधी होगी।

1951 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या लगभग 36.10 करोड़ थी। आज, केवल एक धार्मिक आयोजन में इससे अधिक श्रद्धालु स्नान कर चुके हैं। यह महाकुंभ की आध्यात्मिक शक्ति और इसकी व्यापकता का प्रमाण है।

कई देशों की कुल आबादी से भी अधिक है स्नान करने वालों की संख्या

महाकुंभ न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। इतने विशाल स्तर पर किसी और देश में कोई आयोजन नहीं होता, जहां हर जाति, वर्ग, समुदाय और देश के लोग एकत्र होकर आध्यात्मिक अनुभव साझा करते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, महाकुंभ में जितने लोग स्नान कर चुके हैं, वह कई देशों की कुल आबादी से भी अधिक है। उदाहरण के लिए:

  • इटली – 5.9 करोड़
  • स्पेन – 4.8 करोड़
  • कनाडा – 3.9 करोड़
  • ऑस्ट्रेलिया – 2.7 करोड़
  • सऊदी अरब – 3.7 करोड़

इसका मतलब यह है कि प्रयागराज में जितने श्रद्धालु स्नान कर चुके हैं, वह इन देशों की कुल आबादी से भी अधिक हैं।

भारत और चीन को छोड़कर, दुनिया में किसी भी अन्य देश की कुल आबादी इतनी नहीं है, जितने लोग इस महाकुंभ में स्नान कर चुके हैं।

70 साल पहले की कुल आबादी, आज एक शहर में श्रद्धालु

आजादी के बाद पहला कुंभ मेला 1954 में प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में हुआ था। उस समय देश की कुल जनसंख्या 36-37 करोड़ थी। लेकिन 2025 के महाकुंभ में अब तक इससे लगभग दोगुने श्रद्धालु संगम में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं।

इस महाकुंभ में पहले स्नान पर्व से लेकर अब तक हर दिन लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान कर रहे हैं। प्रमुख स्नान पर्वों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी:

  • पौष पूर्णिमा (13 जनवरी) – 1.70 करोड़
  • मकर संक्रांति (14 जनवरी) – 3.50 करोड़
  • मौनी अमावस्या (29 जनवरी) – 7.64 करोड़
  • बसंत पंचमी (3 फरवरी) – 2.57 करोड़
  • माघी पूर्णिमा (12 फरवरी) – 2 करोड़

53,000 बार भर सकता है दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम

अगर इसे दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियमों से तुलना करें, तो यह संख्या इतनी अधिक है कि 1 लाख 32 हजार (1,32,000) दर्शकों की क्षमता वाला नरेंद्र मोदी स्टेडियम भी लगभग 53,000 बार भर सकता है।

पाकिस्तान समेत दुनिया भर से उमड़ी श्रद्धालुओं की धारा

महाकुंभ केवल भारतीय श्रद्धालुओं तक सीमित नहीं है। इस बार 50 से अधिक देशों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचे हैं। नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, जापान, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, फिजी और गुयाना से हजारों प्रवासी भारतीयों और विदेशी श्रद्धालुओं ने इस पावन आयोजन में भाग लिया। यहां तक कि पाकिस्तान से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आए, जो भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है। भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने भी महाकुंभ का पुण्य लाभ लिया। जनवरी में 10 देशों के 21 प्रतिनिधियों ने प्रयागराज में आकर इस आयोजन की भव्यता को देखा। एप्पल के को-फाउंडर अरबपति स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स भी महाकुंभ में पुण्य लाभ लेने प्रयागराज पहुंची।

महाकुंभ में मलेशिया की लास्या आर्ट्स अकादमी द्वारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला प्रदर्शन। ((Photo – https://x.com/iccr_hq/status))

महाकुंभ केवल स्नान का पर्व नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है। यह वह स्थान है, जहां संत-महात्मा, विचारक, विद्वान, कलाकार और श्रद्धालु एकत्र होते हैं। प्रयागराज का कुंभ मेला न केवल आध्यात्मिक शुद्धि का अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह मानवता, शांति और सह-अस्तित्व का संदेश भी देता है। यही कारण है कि युनेस्को ने इसे ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ (Intangible Cultural Heritage of Humanity) के रूप में मान्यता दी है।

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महाकुंभ में आने वाले हर श्रद्धालु की अपनी अलग कहानी होती है, लेकिन सभी का मकसद एक ही होता है – मोक्ष की प्राप्ति और पापों से मुक्ति। साधु-संतों के अखाड़े, नागा संन्यासियों की अद्भुत परंपराएं, आध्यात्मिक प्रवचन, संस्कृतियों का मेल और आस्था की गूंज – यह सब मिलकर कुंभ को एक अद्वितीय अनुभव बनाते हैं। संगम तट पर गूंजती शंख-ध्वनि, गंगा आरती की मंत्रमुग्ध कर देने वाली छटा, भक्तों की श्रद्धा और संतों की वाणी – यह सब मिलकर कुंभ को दिव्यता की चरम सीमा पर ले जाते हैं।

महाकुंभ: इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज एक उपलब्धि

महाकुंभ हमेशा से ही ऐतिहासिक महत्व रखता आया है, लेकिन 2025 का यह आयोजन कई मायनों में खास बन गया।

  1. अब तक का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन: 63 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं का आगमन एक विश्व रिकॉर्ड है।
  2. संपूर्ण विश्व की भागीदारी: 50 से अधिक देशों के लोग इसमें शामिल हुए।
  3. संपूर्ण डिजिटल और हाई-टेक कुंभ: ड्रोन कैमरों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, लाइव स्ट्रीमिंग और डिजिटल कंट्रोल रूम के जरिए मेले को सुरक्षित और सुव्यवस्थित बनाया गया।

26 फरवरी को अंतिम शाही स्नान के साथ महाकुंभ 2025 का समापन होगा, लेकिन यह आयोजन केवल समाप्ति का संकेत नहीं है, बल्कि यह एक नई शुरुआत है। यह श्रद्धालुओं के दिलों में बसी भक्ति की भावना को और मजबूत करेगा और आने वाले समय में इसे और भव्य बनाने की प्रेरणा देगा। महाकुंभ केवल एक स्थान पर होने वाला मेला नहीं, बल्कि यह सनातन संस्कृति का एक ऐसा प्रवाह है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी, युग दर युग, अनंत काल तक बहता रहेगा।