History of Kumbh: महाकुंभ मेला हिंदू धर्म में आस्था और परंपरा का सबसे बड़ा प्रतीक है। यह मेला चार पवित्र स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन—में से किसी एक पर आयोजित होता है। लेकिन इस बार का महाकुंभ खास है क्योंकि 144 साल बाद एक दुर्लभ खगोलीय स्थिति बन रही है। यह संयोग उस कहानी से जुड़ा है जिसे हिंदू धर्म में ‘देवता की एक गलती’ के रूप में देखा जाता है।
महाकुंभ का पौराणिक महत्व समुद्र मंथन की घटना से जुड़ा है, जब देवताओं और राक्षसों ने अमृत के लिए संघर्ष किया था। कथा के अनुसार, जब अमृत कलश को लेकर देवता भाग रहे थे, तब इंद्र के पुत्र जयंत ने इसे बचाने के लिए चार स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन—पर इसकी बूंदें गिरा दीं। यह देवताओं की रणनीतिक गलती मानी जाती है, क्योंकि इससे अमृत का महत्व इन स्थानों पर केंद्रित हो गया। इन स्थानों को पवित्र मानते हुए कुंभ मेले की परंपरा की शुरुआत हुई।
144 साल बाद 2025 में यह मेला इसलिए भी खास है क्योंकि सूर्य, चंद्रमा, शनि और बृहस्पति ग्रहों की स्थिति उस खगोलीय संयोग को दोहराने जा रही है, जो अमृत मंथन के समय बना था। ज्योतिषियों का मानना है कि यह स्थिति बेहद शुभ मानी जाती है और इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि करोड़ों श्रद्धालु महाकुंभ में स्नान करने के लिए यहां जुटते हैं।
इतिहास में भी कुंभ मेले का गहरा महत्व देखने को मिलता है। 7वीं शताब्दी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांतों में प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर आयोजित एक विशाल धार्मिक आयोजन का जिक्र किया था, जो कुंभ मेले से मेल खाता है। तब लाखों श्रद्धालु इस आयोजन में शामिल होकर पवित्र जल में स्नान करते थे।
कुंभ मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। खगोलीय संयोग के दौरान पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में बढ़ोतरी होती है, जो मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। यही कारण है कि कुंभ मेले को आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि भौतिक दृष्टि से भी लाभकारी माना जाता है।
महाकुंभ 2025 को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। सरकार और प्रशासन ने करीब 40-45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद के साथ व्यापक इंतजाम किए हैं। आधुनिक समय में भी यह आयोजन उस ‘गलती’ को श्रद्धा के रूप में मनाने का प्रतीक है, जो देवताओं द्वारा अनजाने में हुई थी और जिसने इन चार स्थानों को अनंतकाल के लिए पवित्र बना दिया।
इस महाकुंभ में ‘देवता की गलती’ का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि यह आस्था, परंपरा, खगोल विज्ञान और इतिहास का ऐसा संगम है, जो भारत की सांस्कृतिक धरोहर को नई ऊंचाइयों पर ले जाता है।