सुप्रीम कोर्ट ने रिटायरमेंट के 5 महीने बाद फैसला सुनाने वाले एक जज की आलोचना की है। एक आपराधिक मामले में फैसला सुनाने और रिटायरमेंट होने के पांच महीने बाद फैसला जारी करने के लिए मद्रास हाई कोर्ट के एक पूर्व जज की आलोचना की है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पद छोड़ने के बाद पांच महीने तक मामले की फाइल को अपने पास रखना पूरी तरह अनुचित है। हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए, न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि आदेश का ऑपरेटिव हिस्सा 17 अप्रैल, 2017 को सुनाया गया था। इसमें कहा गया है कि न्यायाधीश के पद छोड़ने की तारीख तक फैसला जारी करने के लिए पांच हफ्ते का समय था।

रिटायरमेंट के 5 महीने बाद सुनाया फैसला

पीठ ने कहा, “हालांकि, 250 से अधिक पेज का विस्तृत निर्णय न्यायाधीश के पद छोड़ने की तारीख से पांच महीने के अंतराल के बाद सामने आया है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जज ने पद छोड़ने के बाद भी कारण बताए हैं और निर्णय तैयार कर लिया।

पीठ ने कहा, “हमारे अनुसार, कार्यालय छोड़ने के बाद पांच महीने की अवधि के लिए मामले की फाइल को अपने पास रखना जज की ओर से घोर अनुचित है। इस मामले में जो किया गया है, हम उसे स्वीकार नहीं कर सकते।” जस्टिस टी मथिवनन ने 26 मई, 2017 को ऑफिस छोड़ दिया और मामले में फैसला उसी साल 23 अक्टूबर को दिया गया।

‘न्याय न केवल होना चाहिए बल्कि होता हुआ दिखना भी चाहिए’- SC

सुप्रीम कोर्ट ने लॉर्ड हेवार्ट का हवाला देते हुए कहा, ”न्याय न केवल होना चाहिए बल्कि होता हुआ दिखना भी चाहिए।” पीठ ने फैसले को रद्द करते हुए कहा, “इस मामले में जो किया गया है वह लॉर्ड हेवार्ट ने जो कहा है उसके विपरीत है। हम ऐसे अनुचित कामों का समर्थन नहीं कर सकते हैं। ऐसे में हमारे विचार में इस अदालत के लिए एकमात्र विकल्प विवादित फैसले को रद्द करना और मामले को नए फैसले के लिए हाई कोर्ट को वापस भेजना है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि हमने विवाद पर कोई निर्णय नहीं दिया है और सभी मुद्दों को उच्च न्यायालय द्वारा तय किए जाने के लिए खुला छोड़ दिया गया है।