मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में माधव नेशनल पार्क को इस महीने की शुरुआत में टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया। इससे देश में टाइगर रिज़र्व की संख्या 58 हो गई। नया टाइगर रिज़र्व 1,651 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और वर्तमान में इसमें एक शावक सहित छह बाघ हैं। उम्मीद है कि नए टाइगर रिज़र्व की अधिसूचना से रणथंभौर-कुनो-माधव नेशनल पार्क गलियारे में बाघों की आवाजाही में मदद मिलेगी, जिसे बढ़ती बाघ आबादी के लिए एक आशाजनक आवास के रूप में पहचाना जाता है।

प्रोजेक्ट टाइगर क्या है?

हालांकि भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान काफी शिकार हुए। स्वतंत्रता के बाद भी पर्यटकों के बीच बड़े शिकार होते रहे। भारत के जंगलों के शीर्ष शिकारी बाघों के शिकार के लिए जाते थे। 1960 के दशक में बाघों की घटती आबादी (खेत की ज़मीन को काटने के लिए तेज़ी से वनों की कटाई के कारण) के बारे में चेतावनी दी गई थी। 1969 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने बाघ की खाल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। उसी साल दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की ऐतिहासिक 10वीं सभा में बाघों को एक लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में मान्यता दी गई और उनकी हत्या पर रोक लगाने का प्रस्ताव पारित किया गया। सरकार ने इस मुद्दे को हल करने के लिए भारतीय वन्यजीव बोर्ड के अध्यक्ष करण सिंह की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स भी बनाई।

इस टास्क फोर्स की सिफारिशों ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के पारित होने के तुरंत बाद अप्रैल 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत का मार्ग प्रशस्त किया। यह परियोजना शुरू में केवल छह साल तक चलने वाली थी, लेकिन आज तक जारी है। इसका उद्देश्य बाघों की आबादी को बनाए रखना और उनके आवास को संरक्षित करना था।

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टाइगर रिज़र्व का उद्देश्य क्या है?

प्रोजेक्ट टाइगर को 9 टाइगर रिज़र्व के साथ शुरू किया गया था। इसमें मानस (असम), जिम कॉर्बेट (उत्तराखंड), कान्हा (मध्य प्रदेश), पलामू (झारखंड), रणथंभौर (राजस्थान), सिमलीपाल (ओडिशा), मेलघाट (महाराष्ट्र), बांदीपुर (कर्नाटक) और सुंदरबन (पश्चिम बंगाल) शामिल है। इन टाइगर रिज़र्व को उन क्षेत्रों में अधिसूचित किया गया था जहां पहले से ही नेशनल पार्क मौजूद थे और उन्हें केंद्र प्रायोजित योजना के माध्यम से फाइनेंसिंग की गई थी।

सुनीता नारायण के नेतृत्व में 2005 की बाघ टास्क फोर्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि रिजर्व का उद्देश्य एक कोर बनाना था, जहां कटाई, चराई और संरक्षण गतिविधियों में शामिल लोगों को छोड़कर लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित थी। यानी एक बफर ज़ोन बनाना, जहां मानवीय गतिविधियां सीमित होंगी। 2005-06 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन के बाद प्रोजेक्ट टाइगर के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक वैधानिक निकाय, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) बनाया गया था।

भारत में बाघों का डिस्ट्रीब्यूशन क्या है?

2022-23 में जारी अंतिम जनसंख्या अनुमान के अनुसार भारत में अनुमानित 3,681 बाघ (रेंज 3167-3925) हैं। NTCA के अनुसार बाघ लगभग 89,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। यह जॉर्डन के क्षेत्रफल के बराबर है और ऑस्ट्रिया से भी बड़ा है। बाघ व्यापक रूप से शिवालिक पहाड़िया और गंगा के मैदान, मध्य भारतीय उच्चभूमि और पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट, उत्तर पूर्वी पहाड़ियां, ब्रह्मपुत्र बाढ़ के मैदान और सुंदरबन में बाघ फैले हुए हैं।

कॉर्बेट में 260 बाघ हैं और यहां बाघों की सबसे बड़ी आबादी है। इसके बाद बांदीपुर में 150, नागरहोल में 141, बांधवगढ़ में 135, दुधवा में 135, मुदुमलाई में 113, कान्हा में 105, काजीरंगा में 104, सुंदरबन में 100, ताड़ोबा-अंधारी में 97, सत्यमंगलम में 85 और पेंच में 77 बाघ हैं। राज्यों में मध्य प्रदेश में 785 बाघों के साथ सबसे बड़ी बाघ आबादी है। इसके बाद कर्नाटक में 563, उत्तराखंड में 560 और महाराष्ट्र में 444 बाघ हैं।

साइंस जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में कहा गया है कि 2006 से 2018 के बीच बाघों के कब्जे वाले क्षेत्र में 30% की वृद्धि हुई है और अधिक दिलचस्प बात यह है कि बाघों के कब्जे वाले लगभग 45% क्षेत्र में लगभग छह करोड़ लोग रहते हैं। अध्ययन से पता चला कि बाघों के केवल 25% निवास स्थान ही टाइगर रिज़र्व के मुख्य क्षेत्रों में हैं, जबकि बफर क्षेत्रों में बाघों के निवास स्थान का 20% हिस्सा है।

टाइगर रिज़र्व के बारे में चिंता के क्षेत्र क्या हैं?

आज 50 से ज़्यादा बाघों की आबादी वाले 26 टाइगर रिज़र्व हैं। बचे हुए 27 रिज़र्व में बाघों की संख्या को लेकर चिंता जताई गई है। वास्तव में 2022 की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 16 ऐसे टाइगर रिज़र्व हैं जहां या तो कोई बाघ नहीं है, या केवल नर बाघ हैं, या पांच से भी कम बाघ हैं। ये रिज़र्व अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, तेलंगाना और ओडिशा में हैं।

विशेष रूप से चिंता की बात तेलंगाना, ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ की स्थिति है, जहां बाघों की आबादी या तो स्थिर रही है, घटी है, या यहां तक कि स्थानीय रूप से विलुप्त हो गई है। ओडिशा के सतकोसिया रिज़र्व में यह विलुप्त हो गई है। साइंस में प्रकाशित रिसर्च ने इस बात का जिक्र किया कि खराब सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां, राजनीतिक स्थिरता की कमी, विद्रोह, खनन का दबाव, विकास परियोजनाएं और वन संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा सभी के कारण ऐसा हुआ है।