मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महिला की तारीफ की है। कोर्ट ने कहा कि पति द्वारा छोड़ दिए जाने के बाद भी उसने अपना ससुराल नहीं छोड़ा और वह पत्नी के रूप में अपने धर्म पर कायम है। जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की बेंच पति की अपील पर सुनवाई कर रही थी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे तलाक देने से इनकार कर दिया गया था।

कोर्ट ने कहा कि हिंदू अवधारणा के मुताबिक, “विवाह एक पवित्र, शाश्वत और अटूट बंधन है। एक आदर्श भारतीय पत्नी, अपने पति द्वारा त्याग दिए जाने पर भी, शक्ति, गरिमा और सद्गुणों का प्रतीक बनी रहती है।” बेंच ने आगे कहा, “परित्याग के दर्द के बावजूद, वह एक पत्नी के रूप में अपने धर्म में दृढ़ रहती है। वह कड़वाहट या निराशा को उस विवाह और परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी की भावना को कम नहीं होने देती जिसका वह हिस्सा बन गई है। इसलिए, इस मामले में पत्नी ने अपना ससुराल नहीं छोड़ा है, बल्कि अपने ससुराल वालों के साथ रहकर अपने आत्म-सम्मान और गरिमा को बनाए रखा है।”

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महिला ने अपने नेक आचरण का परिचय दिया – कोर्ट

अदालत ने कहा कि महिला “न तो अपने पति की वापसी के लिए भीख मांगती है और न ही उसे बदनाम करती है, बल्कि वह अपने शांत धैर्य और नेक आचरण से अपनी ताकत का परिचय देती है।” कोर्ट ने कहा, “उसके कार्यों, शब्दों या कार्यों से उसकी छवि धूमिल हुई है।” कोर्ट ने कहा, “वह उनकी सेवा उसी तरह ध्यान और स्नेह से कर रही है जैसे वह अपने पति की उपस्थिति में करती, जिससे उसका नैतिक स्तर मजबूत होता है। वह अपने कष्टों का इस्तेमाल सहानुभूति पाने के लिए नहीं करती, बल्कि उसे अपने भीतर प्रवाहित करती है, जो हिंदू धर्म में स्त्री को शक्ति मानने के आदर्श को दर्शाता है।”

यह एक अमिट संस्कार है – कोर्ट

कोर्ट ने कहा, “यहां तक कि जब वह अकेली रहती है, तब भी वह मंगलसूत्र, सिंदूर या अपनी वैवाहिक स्थिति के प्रतीकों को नहीं त्यागती है, क्योंकि उसके साथ उसका विवाह एक अनुबंध नहीं, बल्कि एक संस्कार है, एक अमिट संस्कार।” अदालत ने कहा, “पत्नी ने अपने दृढ़ निश्चय और चरित्र का परिचय दिया है, जो एक सामान्य भारतीय महिला में होता है।” अदालत ने आगे कहा कि यह पति ही है, “जिसने पत्नी को त्यागकर उसके विरुद्ध झूठी क्रूरता की है।” कोर्ट ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जो एक सामान्य भारतीय महिला की पत्नी की वफादारी को दिखाता है। वह अपने पारिवारिक जीवन को बचाने के लिए अपनी पूरी कोशिश करती है। हाई कोर्ट ने किस मामले में रद्द की उम्रकैद की सजा