लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम तो वैसे काफी चौंकाने वाले रहे। बीजेपी ने अकेले अपने दम पर 303 सीटें हासिल कर लीं। लेकिन, सबसे ज्यादा चौंकाने वाले आंकड़े पश्चिम बंगाल से रहे। बीजेपी ने इस राज्य में लंबी छलांग लगाते हुए तृणमूल कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगा डाली और 18 सीटों पर कब्जा जमा लिया। हालांकि, पूरे चुनाव में पश्चिम बंगाल मीडिया की सुर्खियों में हावी रहा।। बीजेपी और टीएमसी के बीच वाकयुद्ध से लेकर हिंसक संघर्ष की दास्तानों को मीडिया ने प्रमुखता से उठाया। लेकिन, बीजेपी द्वारा यह कारनामा यह किसी छोटे वक्त में किए गए काम का नतीजा नहीं था, बल्कि एक सुदृढ़ रणनीति और शीर्ष नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के दृढ़-इच्छाशक्ति का परिणाम था।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के कार्यक्रम ‘आइडिया एक्सचेंज’ में पश्चिम बंगाल के बीजेपी प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने बताया कि कैसे उन्होंने अमित शाह की अगुवाई में पश्चिम बंगाल में संगठन को ना सिर्फ खड़ा किया बल्कि सीटें भी जीताकर दीं। आइडिया एक्सचेंज में कैलाश विजयवर्गीय ने एक सवाल के जवाब में कहा, “मैं पश्चिम बंगाल में साढ़े चार साल से प्रभारी हूं। हमारे अब तक 103 कार्यकर्ता मारे गए हैं। (मारे जाने वाले लोगों का) अपराध बस इतना था कि वे भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता थे।”
विजयवर्गीय ने बताया कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने काफी संघर्ष के बाद वामदलों के क्रूर शासन को खत्म किया था। उनसे लोगों को उम्मीदें थीं कि वह बेहतर और लोकतांत्रिक काम करेंगी। लेकिन, उन्होंने भी तानाशाही का रास्ता अपना लिया।
कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में परिस्थियों को देखते हुए उन्हें लगता था कि संगठन को खड़ा करने में 15 साल लग जाएंगे। लेकिन, इतनी लंबी अवधि के लिए पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह तैयार नहीं थे। उन्होंने बताया, “अमित शाह जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल की जिम्मेदारी तुम ले लो। वहां की स्थिति देखी तो मुझे लगा कि संगठन का विस्तार करने में 15 साल तक काम करना होगा। लेकिन, अध्यक्ष दी ने कहा कि नहीं 15 साल नहीं 5 साल के लिए भेजा है।”
विजयवर्गीय ने कहा, “मैंने रणनीति बनाई और वहीं अपना एक फ्लैट खरीद लिया और हर जिले के दौरा किया। कार्यकर्ताओं और नेताओं का मनोबल बढ़ाना शुरू किया। मेरे साथ ओडिशा के सुरेश पुजारी और शिव प्रकाश जी (राष्ट्रीय संह संगठन मंत्री) तीनों ने लगातार क्लॉकवाइज और एंटी-क्लॉकवाइज प्रदेश का दौरा किया। इस मोबलाइजेशन के कारण ही कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा और साथ ही उन पर अत्याचार भी बढ़े।