Lok Sabha Election 2019: चुनाव के इस मौसम में निजी जासूसी एजेंसियों की बहुत मांग है। वजह ये है कि उम्मीदवार और विभिन्न राजनीतिक दल अपने प्रतिद्वंद्वियों के राज और उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने वाली जानकारियों का पता लगाने के लिए जासूसों की सेवाएं ले रहे हैं। कोई अपने विरोधी की रणनीति जानना चाह रहा है तो कोई किसी के अवैध संबंधों का पता लगाने में जुटा है। किसी को यह पता करना है कि उसके विरोधी का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कौन हैंडल कर रहा है तो कोई ये जानने को बेकरार है कि किस क्षेत्र में उसके प्रतिद्वंदी को लेकर अंदरूनी तौर पर विरोध हो रहा है। इसके लिए वे अच्छे खासे पैसे भी खर्च कर रहे हैं।
इस उद्योग से जुड़े लोगों ने बताया कि एजेंसियों को विरोधी खेमे की हर दिन की गतिविधियों और चुनावों के लिए वे क्या रणनीतियां बना रहे हैं, उनका पता लगाने का काम दिया है। जिन लोगों को टिकट नहीं दिए गए वे भी इन जासूसी एजेंसियों की सेवाएं ले रहे हैं ताकि उन लोगों के प्रचार अभियान को बर्बाद कर सकें जो चुनाव लड़ रहे हैं।
‘एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट डिटेक्टिव्ज एंड इन्वेस्टिगेटर्स’ के अध्यक्ष कुंवर विक्रम सिंह ने बताया कि राजनीतिक दल अपने विरोधियों पर नजर रखने के लिए जासूसी एजेंसियों की सेवाएं ले रहे है ताकि विरोधियों की रणनीतियों और उनके छिपे आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारियां, अवैध संबंधों या वीडियो की जानकारियां निकाल सकें जिससे उनके चुनाव प्रचार अभियान की धज्जियां उड़ाई जा सके। उन्होंने कहा, ‘‘वे लोग भी एजेंसियों से संपर्क कर रहे हैं जिन्हें टिकट नहीं दी गई ताकि पार्टी के उम्मीदवार की छवि बिगाड़ी जा सके ओर चुनाव जीतने की उनकी संभावनाओं को खत्म किया जा सके।’’
जीडीएक्स डिटेक्टिव्ज के प्रबंध निदेशक महेश चंद्र शर्मा के मुताबिक, चुनावी मौसम के दौरान निजी जासूसी एजेंसियों की सेवाएं लेना अब एक चलन बन गया है। एक एजेंसी के अधिकारी ने बताया, ‘‘सेवाओं के लिए एक लाख रुपये से लेकर 60 लाख रुपये तक का शुल्क लिया जा रहा है। ग्राहक अपने मनपसंद के नतीजे पाने के लिए पैसा खर्च करने से परहेज नहीं कर रहे हैं।’’

