लोकसभा चुनाव 2024 (LOK Sabha Elections 2024) को लेकर आज चुनाव आयोग (Election Commission) ने पूरे इलेक्शन कार्यक्रम का ऐलान कर दिया है, जिसके मुताबिक 7 चरणों में वोटिंग के बाद 4 जून को फैसला हो जाएगा कि देश की जनता एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi BJP) के नेतृत्व वाली बीजेपी पर विश्वास जताती है, या फिर कांग्रेस (Congress) जनता के बीच अपनी पकड़ बनाने में कामयाब हो पाती है।
कांग्रेस पार्टी की बात करें तो उसके लिए यह चुनाव काफी ज्यादा अहम हैं क्योंकि पार्टी पिछले दस साल से देश की सत्ता से बाहर है। इसके चलते ही पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत पूरी पार्टी सहयोगियों के साथ समझौते करने के मुद्दे पर काफी दूर निकल आई है। जो कांग्रेस कुछ वक्त पहले क्षेत्रीय दलों को महत्व नहीं देती थी, उसने अपना घमंड त्याग दिया है। इसके चलते ही कांग्रेस ने क्षेत्रीय विपक्षी दलों के साथ पीएम मोदी और बीजेपी का मुकाबला करने की रणनीति बनाई है।
हालांकि बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस ने कोई खास अभूतपूर्व कदम नहीं उठाए हैं। इसके बावजूद कांग्रेस 2004 के करिश्मे को दोहराने की उम्मीद कर रही है। अहम बात यह भी है कि कई राज्यों में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों ने गठबंधन किया ही नहीं है। पिछले साल पटना में बना विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन बेंगलुरू तक ही टिक सका और उसके बाद लगातार इसे अपने ही घटक दलों के बीच संघर्ष करना पड़ रहा है।
2019 में कांग्रेस ने उठाए थे कौन से मुद्दे
साल 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने मुद्दे पुरजोर तरीके से उठाए थे, एक राफेल लड़ाकू विमानों की फ्रांस से खरीद का था, तो दूसरा मुद्दा गरीबों को न्यूनतम आय गारंटी का महत्वाकांक्षी वादा यानी न्याय योजना थी। वहीं अब कांग्रेस को अब उम्मीद है कि इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा इन चुनाव में अहम हो सकता है। कांग्रेस इसके जरिए सीधे बीजेपी को टारगेट कर रही है।
इसके अलावा कांग्रेस ने इस बार जाति आधारित जनगणना का मुद्दा भी छेड़ा है। अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान पूर्व अध्यक्ष और वानयड से सांसद राहुल गांधी का मुख्य फोकस ही ओबीसी, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए प्रतिनिधित्व की मांग का रहा है। पार्टी का मानना है कि नौकरियों की कमी को लेकर युवाओं में और जीवनयापन की लागत में वृद्धि के कारण निम्न मध्यम वर्ग और गरीब परिवारों में बीजेपी के खिलाफ एक साइलेंट गुस्सा है, जो कि उसकरे लिए फायदा बन सकता है।
गठबंधन की गांठ बनी हैं समस्या
कांग्रेस लगातार हर मुद्दे को हवा दे रही है, जिसमें से एक बीजेपी को हराने के लिए उसका हथियार बन सके। लड़खड़ाते इंडिया गठबंधन ने भी तक अपना कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पेश नहीं किया है। गठबंधन सहयोगी एक बार भी अपने सभी शीर्ष नेताओं को एक सार्वजनिक मंच पर एक साथ लाने में कामयाब नहीं हुए हैं। कांग्रेस में कई लोगों के लिए सबसे अच्छी स्थिति 2004 जैसे फैसले की पुनरावृत्ति है, जब भाजपा का “इंडिया शाइनिंग” अभियान विफल हो गया था।
उत्तर भारत कांग्रेस के लिए दुखदायी बना हुआ है। पार्टी का मानना है कि वह केरल और तेलंगाना में अच्छा प्रदर्शन करेगी और कर्नाटक में बीजेपी की संख्या आधी कर देगी और वरिष्ठ साझेदार डीएमके के साथ तमिलनाडु में जीत हासिल करेगी। 2014 और 2019 दोनों में हिंदी बेल्ट में कांग्रेस का सफाया हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप पार्टी 2014 में अपने अब तक के सबसे निचले स्तर 44 और पिछले लोकसभा चुनाव में 52 पर पहुंच गई थी।
हिंदी बेल्ट में कांग्रेस का बुरा हाल
2019 में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक-एक सीट ही जीत सकी थी। बिहार में पार्टी किशनगंज, मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट ही जीत पाई थी। इसमें 149 सीटें हैं, जहां से साफ हो चुकी हैं। वह राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अपना खाता नहीं खोल सकी है। उसने दो सीटें छत्तीसगढ और एक झारखंड में जीती थी। इस प्रकार पार्टी को देश के 10 राज्यों में फैली 225 लोकसभा सीटों में से केवल 6 पर जीत मिली थी और यहीं उसकी सबसे बड़ी समस्या है।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस हिंदी भाषी राज्यों में वापसी कर पाएगी, जहां बीजेपी को यह उम्मीद हैं कि राम मंदिर की लहर के बीच वह अपना पुराना रिकॉर्ड न केवल मेंटेन कर के रखेंगी बल्कि यूपी और बंगाल जैसे राज्यों में सीटों में इजाफा करने में भी सफल होगी। कांग्रेस या इंडिया गुट के पास इन मुद्दों पर भाजपा के पास कोई जवाबी मुद्दा नहीं है।
2014 से 2024 के बीच कांग्रेस ने पहली बार दस साल सत्ता से बाहर रहते हुए बिताए हैं। इससे पहले 1996 से 2004 तक में कांग्रेस बाहर रही थी।