Lok Sabha Chunav Results: अटल बिहारी वाजपेयी के बाद भारत की बागडोर मनमोहन सिंह ने संभाली। साल 2004 में हुए लोकसभा चुनावों के परिणाम के बाद कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन की सरकार बनी। इस सरकार में कई क्षेत्रीय दल शामिल हुए। इसके ठीक दस साल बाद भारत की राजनीति में मोदी युग का उदय हुआ और भारत के मानचित्र के कई क्षेत्रीय दलों का तकरीबन सफाया हो गया।
आइए आज इस रिपोर्ट के जरिए बताते हैं, हिंदी पट्टी में बीते बीस सालों में कितने कमजोर हुए क्षेत्रीय छत्रप…
उत्तर प्रदेश में साल 2004 और साल 2009 में सपा-बसपा बड़ी ताकत थे लेकिन आज ये दोनों दल ही देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्य में डबल डिजिट में लोकसभा सांसदों के लिए तरस रहे हैं। साल 2004 में उत्तर प्रदेश में सपा बड़ी ताकत बनकर उभरी थी। इस चुनाव में सपा को 36 और बसपा को 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि पांच साल बाद सपा को 23 और बसपा को 21 सीटों पर जीत हासिल हुआ थी।
हालांकि मोदी युग की शुरुआत के साथ ही इन दोनों दलों के बुरे दिन शुरू हो गए। बसपा 2014 में यूपी के नक्शे से साफ हो गई जबकि सपा को सिर्फ पांच सीटेें नसीब हुईं। इसी तरह से 2019 के लोकसभा चुनाव में साथ आने के बाद भी बसपा सिर्फ 10 सीटें जीत सकी और सपा को फिर पांच सीटों से संतोष करना पड़ा।
| लोकसभा चुनाव | 2004 | 2009 | 2014 | 2019 |
| सपा | 36 | 23 | 5 | 5 |
| बसपा | 19 | 21 | 0 | 10 |
बिहार राज्य में 2004 के बीजेपी को पांच और जेडीयू को छह सीटों पर जीत मिली थी। इसके अगले चुनाव में जदयू ने 20 सीटों पर विजय हासिल की। साल 2004 में राजद को 22 और एलजेपी को चार सीटें मिली थीं। इसके बाद अगले लोकसभा चुनाव में राजद चार सीटों पर जीत हासिल कर पाई जब एलजेपी खाता खोलने में भी सफल नहीं रही। साल 20014 में बिहार में बीजेपी और जदयू का गठबंधन नहीं था। इस चुनाव में जदयू को सिर्फ दो सीटें मिलीं जबकि विरोधी राजद चार सीटें ही जीत पाई। चुनाव में बीजेपी की साथी एलजेपी छह सीटें जीतने में सफल रही। 2019 के चुनाव में जदयू और बीजेपी साथ लड़े। इसका फायदा जदयू को मिला। जदयू के 16 सांसद जीते जबकि राजद बिहार के संसदीय नक्शे से साफ ही हो गई।
| लोकसभा चुनाव | 2004 | 2009 | 2014 | 2019 |
| जदयू | 6 (एनडीए) | 20 ( एनडीए) | 2 | 16 (एनडीए) |
| राजद | 22 | 4 | 4 | 0 |
| एलजेपी | 4 | 0 | 6 (एनडीए) | 6 (एनडीए) |
बात अगर कई बड़े दलों वाले महाराष्ट्र की करें तो यहां पिछले चुनाव तक बीजेपी और शिवसेना साथ में चुनाव लड़े हैं जबकि एनसीपी और कांग्रेस एक साथ। साल 2004 में महाराष्ट्र में एनसीपी को नौ सीटें मिलीं जबकि शिवसेना को 12 सीटें हासिल हुईं। इसके अगले चुनाव में भी एनसीपी 9 सीटों पर कब्जा करने में सफल रही जबकि शिवसेना 11 सीटें जीती। मोदी युग की शुरुआत के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना का ग्राफ बढ़ा जबकि एनसीपी 2014 में छह और 2019 में सिर्फ पांच सीटें ही जीत सकी। यहां कांग्रेस को भी बढ़ा नुकसान हुआ।
| लोकसभा चुनाव | 2004 | 2009 | 2014 | 2019 |
| शिवसेना | 12 | 11 | 18 | 18 |
| बीजेपी | 13 | 9 | 23 | 23 |
| एनसीपी | 9 | 9 | 4 | 4 |
| कांग्रेस | 13 | 17 | 2 | 1 |
दक्षिण का तमिलनाडु अपवाद
दक्षिण के राज्य तमिलनाडु में जहां बीजेपी का खास प्रभाव नहीं है, वह अपवाद नजर आता है। यहां फाइट डीएमके और एआईएडीएमके के बीच ही नजर आती है लेकिन इस बार यहां बीजेपी कितना प्रभावित करती है, इसपर सभी की निगाहें हैं। AIADMK यहां प्रभावहीन मालूम पड़ती है। साल 2004 के चुनाव में यहां डीएमके ने 16 जबकि एआईएडीएमके खाता भी नहीं खोल सकी। इसके बाद 2009 के चुनाव में DMK 17, AIADMK 9 सीटें जीतने में सफल रहीं। 2014 के चुनाव में यहां AIADMK 37 सीटें जीती जबकि 2019 में डीएमके 24 सीटें जीतने में सफल रही।
बंगाल में बीजेपी बढ़ी लेकिन ममता का जलवा कायम
पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है, जहां बीजेपी का उदय तो हुआ लेकिन ममता बनर्जी ने भी अपना जलवा बरकरार रखा। साल 2004 में लेफ्ट गठबंधन ने बंगाल की 42 सीटों में से 35 सीटें जीतने में सफल रहा जबकि इनमें से 26 सीटें अकेले सीपीआई एम जीती। इस चुनाव में तृणमूल महज एक सीट जीती। इसके बाद 2009 में टीएमसी का ग्राफ बढ़ा और ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी 19 लोकसभा सीटें जीतीं। इसके अगले चुनाव में टीएमसी 34 सीटों पर जीती जबकि 2019 में बीजेपी ने 16 सीटें जीतने के साथ प्रभावित किया। राज्य में टीएमसी का ग्राफ गिरा जरूरी लेकिन टीएमसी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने में सफल रही।
