नोएडा में दो लाख घर खाली पड़े हैं, लाखों निर्माणाधीन परियोजनाएं हैं जिनकी बुकिंग करवाने वालों को उनकी किस्त देने की समस्या है। कई क्षेत्रों में वेतनमान में कटौती के बाद खरीदारों का बजट बिगड़ गया है तो पूर्णबंंदी खत्म होने के बाद कामगार पर्याप्त संख्या में मिलेंगे या नहीं यह भी चिंता है।
नोटबंदी और जीएसटी के असर के बाद अब कोरोना महामारी के कारण देश में दूसरा सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले क्षेत्र रियल एस्टेट तिहरी मार झेल रहा है। देश भर में लाखों-करोड़ों की संख्या में बिल्डर परियोजनाओं में निवेश करने वालों के आगे अनिश्चितता का माहौल बन गया है कि महामारी का असर कम होने के बाद उनकी नौकरी बचेगी या नहीं, या कैसे ईएमआइ देंगे? वहीं, बिल्डरों के आगे भी अस्तित्व का बड़ा संकट पैदा हो गया है।
डेढ़ महीने से निवेशकों से मिलने वाली रकम बंद हो गई है, बैंक मंजूर हो चुके ऋण जारी नहीं कर रहे हैं। परियोजना स्थलों पर काम करने वाले अधिकांश मजदूर और श्रमिक पलायन कर चुके हैं। जो देशबंदी की सख्ती के चलते जा नहीं पाए हैं, वे आश्रित के रूप में वहीं मजबूरी में रह रहे हैं। सरकार की तरफ से मिलने वाले राशन या बिल्डर कंपनी की तरफ से दी जाने वाले राशन के सहारे जैसे-तैसे गुजर बसर, यह मानकर कर रहे हैं कि बंदी हटते ही सबसे पहले अपने गांव जाना है। भले ही गांव में यहां से बदतर स्थिति हो लेकिन वे अब यहां नहीं रहना चाह रहे हैं।
जानकारों का मानना है कि आगे आने वाले दिनों में रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए यह स्थिति फिलहाल से ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। जिसका असर कम से कम छह महीने से एक साल तक रहने के आसार हैं।
पूर्णबंदी का बढ़ना काफी हद तक अपेक्षित था। कोविड-19 के प्रसार पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से, देश भर में पहले से लगाए गए 21-दिवसीय लॉकडाउन को 19 और दिनों के लिए बढ़ाया गया। हालांकि उम्मीद है कि 20 अप्रैल के बाद से थोड़ी छूट मिले। सौ सालों की यह सबसे बड़ी महामारी चीन में उत्पन्न हुई और जल्द ही पूरी दुनिया में फैल गई जिसमें ज्यादातर विकसित और विकासशील राष्टÑ भी शामिल हैं। लोगों के साथ ही वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही रुक गई है। कुछ आवश्यक सेवाओं को छोड़कर, आर्थिक गतिविधियां इस समय पूरी तरह से बंद हैं। पूर्णबंदी का अर्थव्यवस्था पर बड़ी मार पड़ना तय है।
भारत में इस बात की काफी उम्मीद है कि सरकार जल्द ही उद्योगों के लिए एक और राहत पैकेज की घोषणा करेगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अपना काम कर दिया है। यहां पहले ही दो चरणों में कई उपायों की घोषणा हो चुकी है। सरकार के प्रयासों को लागू करते हुए, शीर्ष बैंक ने मार्च के अंत में रेपो दर को 75 आधार अंक कम करके 4.4% कर दिया और बैंकिंग प्रणाली में 3.74 लाख करोड़ रुपए डाले। रिवर्स रेपो को घटाकर चार फीसद कर दिया गया।
इसके अलावा आरबीआइ ने खुदरा ऋण सहित सभी आवधिक ऋणों के पुनर्भुगतान और एमएसएमई को दिए अग्निम पर तीन महीने के स्थगन की भी घोषणा की। इसके अलावा शीर्ष बैंक ने 17 अप्रैल को एक बार फिर हस्तक्षेप किया और एनबीएफसी, सिडबी और एनएचबी जैसे अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों को एक लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त तरलता प्रदान करने के अलावा रिवर्स रेपो को घटाकर 3.75% कर दिया। ऋण वर्गीकरण और प्रावधान पर भी कुछ छूट देने की घोषणा की है।
भारत के संदर्भ में रियल एस्टेट अर्थव्यवस्था के लिए रामबाण साबित हो सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था 7.5-8 फीसद का विकास हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही है, इसका एक कारण रियल एस्टेट की स्थिति है। पिछले कुछ वर्ष इस क्षेत्र के लिए चुनौतीपूर्ण रहे हैं क्योंकि इसमें विमुद्रीकरण, रेरा और जीएसटी के कार्यान्वयन के कारण जबरदस्त परिवर्तन हुआ। आशंका जताई जा रही है कि कोविड-19 की मार भी इस क्षेत्र पर पड़ने वाली है। लेकिन यह क्षेत्र अभी भी दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता बना हुआ है।
यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ उपायों की घोषणा की जानी चाहिए। इस मदद को पाकर यह क्षेत्र पूरी अर्थव्यवस्था को काफी मदद पहुंचा सकता है। इसमें सबसे अहम है ऋणों का ढांचा। मौजूदा ऋणों का 12 महीनों के लिए पुनर्गठन डेवलपर्स की पुरानी मांग रही है। पिछले कुछ सालों में घरों की बिक्री काफी कम हो गई है, जिसके नतीजतन डेवलपर्स के ऋण चुकाने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
कोविड-19 की वजह से पैदा हुए संकट से स्थिति और खराब होने की संभावना है। अभी के लिए उपयुक्त होगा कि सरकार या भारतीय रिजर्व बैंक एक साल के लिए एक बार ऋण पुनर्गठन की घोषणा करे। यह तय करेगा कि डेवलपर्स के पास पर्याप्त पूंजी हो। इसके अलावा, डिफॉल्टर न होने की स्थिति में डेवलपर्स विभिन्न संस्थानों से अतिरिक्त वित्त जुटाने में सक्षम होंगे। यह परियोजना को तेजी से पूरा करने में मदद करेगा। रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करेगा।
दूसरी प्रमुख पहल, जो इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में मदद कर सकती है वह, सीमित समय के लिए स्टांप शुल्क की छूट है। स्टांप ड्यूटी राजस्व के सबसे बड़े स्रोतों में से एक होने के कारण विभिन्न राज्य सरकारों ने पिछले सालों में सर्कल दर में काफी बढ़ोतरी की है। कई मामलों में यह वृद्धि बाजार के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहा है। अत: जमीनी हकीकत से दूर होकर तय किए गए सर्कल दर के आधार पर स्टैंप ड्यूटी संपत्तियों की खरीद में एक बड़ी दिक्कत है। अत: यह उपयुक्त होगा कि राज्य एक सीमित अवधि के लिए स्टांप शुल्क माफ कर दें। इस कदम से इस क्षेत्र के पुनरुद्धार में मदद मिलेगी।
कुछ सालों में रियल्टी परियोजनाओं में निवेश करने में बैंक अनिच्छुक रहे हैं। नतीजतन यह क्षेत्र अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए एनबीएफसी और एचएफसी पर निर्भर है। लेकिन आइएलएंडएफएस और डीएचएफएल मामले के बाद फंडिंग का यह स्रोत भी काफी हद तक सूख चुका है। ऐसे में एचएफसी/ एनबीएफसी के लिए वित्त की एक विशेष खिड़की प्रदान करने से न केवल उन्हें मदद मिलेगी, बल्कि बदले में रियल्टी क्षेत्र के पुनरुद्धार में भी मदद मिलेगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर रियल एस्टेट अपने पुराने रंग में आ गया तो भारतीय अर्थव्यवस्था भी जल्द ही आठ फीसद की विकास दर पर वापस आ जाएगी।