कहते हैं कि मेहमान के आने से घर बदल जाता है। आमतौर पर मेहमानों का आना किसी को अच्छा ही लगता है। इससे इस समाज में होने और अपने परिवार से इतर अन्य लोगों के बीच अपनी जगह होने का अहसास होता है। किसी अन्य जगह या घर में बतौर मेहमान जाने पर हम अपने लिए जो अपेक्षा करते हैं, हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि हम अपने मेहमानों के साथ उसी तरह पेश आएं। वैसे भी, बेहतर मेहमाननवाजी को व्यक्ति का एक खास गुण माना गया है।
सामाजिकता का विस्तार
अहम यह है कि मेहमाननवाजी दरअसल व्यक्ति के सामाजिक दायरे का विस्तार करता है। इसलिए जरूरी है कि जब मेहमान घर आएं तो उनके साथ ऐसे पेश आया जाए कि जाने के बाद भी वे हमारे बर्ताव और संवेदनशीलता को याद करें। यों भी, हमारे देश में ‘अतिथिदेवो भव’ का सूत्र प्रसिद्ध है और अतिथियों का सत्कार करना सामाजिक व्यवहार में एक सुंदर अध्याय के तौर पर देखा जाता है।
इसमें वैसी स्थितियां जरूर किसी के लिए असुविधा का कारण बन सकती है जब कोई अतिथि बिना जरूरी कारण के किसी के घर में अनचाहे ही आ जाए और अनिश्चितकाल तक के लिए टिक जाए और चाहने पर भी जाने का नाम न ले। ऐसे ही लोगों के लिए शायद यह जुमला चल पड़ा होगा कि ‘अतिथि तुम कब जाओगे!’
सौम्य व्यवहार
कोशिश यही होनी चाहिए कि किसी मेहमान के घर आते ही उन्हें मुस्कुराहट के साथ अपना स्वागत मिले। चूंकि मेहमाननवाजी भी एक अच्छा और सौम्य व्यवहार माना जाता है, तो मेहमानों को ऐसा महसूस भी होना चाहिए। मेहमान का हालचाल जानना शुरुआती बातें हो सकती हैं। साथ ही अगर बातचीत में किसी ऐसी स्थिति का पता चले जिसमें मेहमान को किसी मदद की जरूरत हो तो अपनी सीमा में उनकी मदद करने या फिर उनसे मदद लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।
यादों का तोहफा
इसके अलावा, मेहमान जितनी देर रहें, अगर वे खुद को सहज महसूस करते हैं तो अपने साथ अच्छी यादें लेकर जाएंगे। जाते वक्त अगर उन्हें सुंदर मुस्कुराहट और सुविधा होने पर कोई छोटा-सा तोहफा दे दिया जाए तो बेहतर में खूबसूरत।