संयुक्‍त राष्‍ट्र मानवाधिकार काउंसिल में दुनिया भर के होमासेक्‍सुअल और ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों की रक्षा में मदद के लिए एक स्‍वतंत्र जांचकर्ता नियुक्‍त करने पर हुई वोटिंग से भारत के दूर रहने पर LGBT कम्‍युनिटी ने निराशा जताई है। केन्‍द्र सरकार को आड़े हाथे लेते हुए LGBT कम्‍युनिटी के सदस्‍यों ने शुक्रवार को पीएम मोदी से उनकी चुप्‍पी तोड़ने की अपील करते हुए कहा कि वे “समावेशी समाज” पर बोलें। ट्रांसजेंडर एक्टिविस्‍ट अक्‍काई पद्मशाली ने कांग्रेस नेता शशि थरूर द्वारा पेश किए गए प्राइवेट बिल को सर्वसम्मति से संसद द्वारा खारिज किए जाने के बारे में बोलते हुए कहा कि इससे सरकार की ‘असहिष्‍णुता’ का प्रदर्शन होता है।

पद्मशाली ने ANI से बातचीत में कहा, ”यह बहुत निराशाजनक है। जब संयुक्‍त राष्‍ट्र मानवाधिकार काउंसिल ने सेक्‍सुअल ओरियंटेशन और जेंडर आइडेंडिटी पर स्‍पेशल सेशन रखा, भारत ने कड़ा रुख अपनाया, जो कि निराशाजनक है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। जब कांग्रेस के शशि थरूर ने संसद में 377 पर प्राइवेट मेंबर बिल रखा तो संसद ने सर्वसम्‍मति से उसे नकार दिया। यह असहिष्‍णुता दिखाता है। यूएन में भारत का इसे सपोर्ट ना करना दिखाता है कि होमोसेक्‍सुएलिटी और बाईसेक्‍सुएलिटी से डरते हैं। मैं प्रधानमंत्री से चुप्‍पी तोड़कर समावेशी समाज पर बोलने की मांग करती हूं। किसी भी तरह का कट्टरवाद और साम्यवाद मंजूर नहीं है।”

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कम्‍युनिटी की एक और सदस्‍य उमाभारती ने कहा, ”यह इतना चौंकाने वाला भी नहीं है। ऐसा दूसरी बार हुआ है। वर्तमान सरकार को देखते हुए तो इसपर बिलकुल भी आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए। यह सरकार अल्‍पसंख्‍यक विरोधी है और यह फासीवादी विचारधारा से आती है। प्रधानमंत्री LGBT के मसलों पर कोई स्‍टैंड नहीं लेते। सरकार की तरफ से इस मुद्दे से भागना बेहद मूर्खतापूर्ण है।”

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चार घंटे चली बहस में 47 सदस्‍य देशों का फोरम सऊदी अरब और मुस्लिम देशों के कड़े विरोध के बावजूद पश्चिम समर्थ‍ित प्रस्‍ताव को 23 देशों के समर्थन से मंजूर कर लिया गया। 18 देशों ने इसका विरोध किया जबकि भारत व 5 अन्‍य देशों ने वोटिंग में हिस्‍सा नहीं लिया।