किसी भी लोकतांत्रिक देश में वहां की संसद और विधानसभाओं में देश के विकास को लेकर होने वाली चर्चाएं काफी महत्वपूर्ण होती हैं। संसद और विधानसभाओं में ही कानून बनाए जाते हैं और उसके देश के विकास पर पड़ने वाले असर पर विस्तृत चर्चा की जाती है। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में स्थिति थोड़ी चिंताजनक दिखाई दे रही है। दरअसल हाल ही में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लोकसभा और राज्यसभा के सांसद सिर्फ औसतन 70 और 69 दिन ही संसद में बिताते हैं। विधानसभाओं में तो यह आंकड़ा और भी कम है। यहां सालभर में विधायक औसतन 28 दिन ही विधानसभा में बिताते हैं। ऐसे में कह सकते हैं कि विधायक सांसदों के मुकाबले कम काम करते हैं!

बता दें कि PRS Legislative Research ने 26 राज्यों और यूनियन टेरीटरीज के डाटा का अध्ययन कर एक रिपोर्ट तैयार की है। यह रिपोर्ट साल 2011 से लेकर 2016 तक की है। इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता से जुड़े मुद्दों की चर्चा में विभिन्न सदनों में काफी कम समय बिता रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, विधायक या सांसद सबसे ज्यादा वक्त बजट सत्र के दौरान ही सदन में बिताते हैं। 6 साल के डाटा के आधार पर तैयार की गई इस रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ 50 प्रतिशत विधानसभाओं और यूनियन टेरीटरीज में ही औसतन 28 दिन काम होता है, बाकी कि 50% में तो यह आंकड़ा और भी कम है। हालांकि केरल (46 दिन), कर्नाटक (46 दिन), महाराष्ट्र (45 दिन) और ओडिशा (42 दिन) सदन में कामकाज के मामले में टॉप पर हैं।

वहीं मणिपुर (16 दिन), मेघालय (15 दिन), सिक्किम (14 दिन), दिल्ली (13 दिन), नागालैंड (10 दिन) में तो कामकाज औसत से भी काफी कम हुआ है। अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, पंजाब, त्रिपुरा और पुडुचेरी का डाटा असेंबली की वेबसाइट पर नहीं मिलने के कारण इन विधानसभाओं में होने वाले कामकाज के आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाए हैं। हाल ही में देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगर इन राज्यों की विधानसभाओं में होने वाले कामकाज की बात करें तो मध्य प्रदेश में मौजूदा सरकार के 5 साल के कार्यकाल में सिर्फ 135 दिन ही काम हुआ है। जबकि पिछले कार्यकाल के दौरान 167 दिन विधानसभा में कामकाज हुआ। छत्तीसगढ़ में मौजूदा कार्यकाल में 145 दिन, जबकि पिछले कार्यकाल में 159 दिन काम हुआ था।