O P Jindal University: ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के खिलाफ एक लॉ स्टूडेंट ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। छात्र को यूनिवर्सिटी में एक विशेष विषय पर प्रश्नों के लिए सबमिशन तैयार करने को दिया गया था। छात्र ने यह सबमिशन तैयार करने के लिए एआई का उपयोग किया। छात्र का आरोप है कि एआई की सहायता लेने के आरोप में उसे परीक्षा में असफल घोषित कर दिया गया। जिसके बाद उसने कोर्ट का रुख किया।

विश्वविद्यालय ने गुरुवार को कहा कि एलएलएम छात्र इस मामले पर सोशल और ऑनलाइन मीडिया में तथ्यात्मक रूप से गलत, भ्रामक और पूर्वाग्रही बयान जारी कर रहा है, जो कि जनता की राय और इस तरह निर्णय लेने को प्रभावित करने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से विचाराधीन हो गया है।

याचिकाकर्ता कौस्तुभ शक्करवार जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में बौद्धिक संपदा और प्रौद्योगिकी कानून में शिक्षा प्राप्त कर रहा है। यूनिवर्सिटी ने कहा कि उसने ‘वैश्वीकरण की दुनिया में कानून और न्याय’ नामक पाठ्यक्रम में अपनी अंतिम अवधि की परीक्षा दी। इसको लेकर छात्र को यूनिवर्सिटी में एक विशेष विषय पर प्रश्नों के लिए सबमिशन तैयार किया था। जो 88 फीसदी तक AI की मदद ली गई थी।

कोर्ट के 4 नवंबर के आदेश में कहा गया है कि प्रतिवादी-विश्वविद्यालय के मूल्यांकनकर्ताओं ने पाया कि याचिकाकर्ता कथित रूप से नकल में लिप्त है और उसने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आधार पर परीक्षा में 88% तक नकल की है, जबकि न तो कोई प्रावधान है और न ही बार-बार अनुरोध के बावजूद याचिकाकर्ता को यह उपलब्ध कराया गया है। इसमें कहा गया है कि जिस अध्यादेश के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ अनुचित साधन मामला (यूएमसी) बनाया गया था और जिसके आधार पर उसे फेल घोषित किया गया था, वह प्रतिवादी-विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है।

‘सत्ता मिली तो मस्जिदों से हटा देंगे लाउडस्पीकर’, राज ठाकरे के बयान पर मोदी के मंत्री ने मनसे चीफ को दे दी बड़ी चुनौती

विश्वविद्यालय ने कहा कि छात्र के आचरण की रिपोर्ट विश्वविद्यालय की अनुचित साधन समिति को दी गई। जिसमें कहा गया है कि एआई-जनरेटेड सामग्री की पुष्टि हुई, जो परीक्षाओं की पवित्रता और अखंडता को चुनौती देती है। वह यूजीसी एंटी-प्लेजरिज्म रेगुलेशन, 2018 के संदर्भ में इस परीक्षा में असफल हो गया। उसे फिर से बैठने का अवसर दिया गया, जिसे उसने स्वीकार किया और बाद में पाठ्यक्रम उत्तीर्ण किया।

विश्वविद्यालय ने आगे कहा कि “याचिकाकर्ता का यह कृत्य (ऑनलाइन मीडिया में तथ्यात्मक रूप से गलत, भ्रामक और पूर्वाग्रही बयान जारी करना) न्यायिक औचित्य की घोर अवहेलना है, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरा है। विचाराधीन मामलों पर सोशल मीडिया पर चर्चा के ऐसे कृत्यों की भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निंदा की है।

विश्वविद्यालय ने कहा कि वह किसी भी कानूनी मंच के समक्ष मामले को गुण-दोष के आधार पर आगे बढ़ाएगा और याचिकाकर्ता (जो एक वकील और अदालत का अधिकारी भी है) के पेशेवर कदाचार की रिपोर्ट करने के लिए अन्य संबंधित नियामक निकायों/प्राधिकरणों से भी संपर्क करेगा। इस मामले की अगली सुनवाई पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में 14 नवंबर को होगी।