प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लेटरल भर्ती पर रोक लगाने का फैसला किया है। असल में कुछ दिन पहले ही यूपीएसी ने एक विज्ञापन जारी कर लेटरल भर्ती की बात कही थी। लेटरल एंट्री में किसी भी शख्स को यूपीएसी परीक्षा में बैठने की जरूरत नहीं होती और सीधे ही उसकी नियुक्ति बड़े पदों पर होती है। इसमें आरक्षण का लाभ किसी एक समुदाय को नहीं मिलता है। लेकिन इसी प्रक्रिया पर बवाल शुरू हुआ और अब पीएम मोदी ने उस पर रोक लगाने का फैसला किया।

लेटरल एंट्री: क्यों रोकी गई प्रक्रिया?

बताया जा रहा है कि कार्मिक विभाग की तरफ से यूपीएसी को एक विस्तृत चिट्ठी लिख दी गई है। उस चिट्ठी में माना जा रहा है कि लेटरल भर्ती पर रोक लगाने के लिए कहा गया है। बड़ी बात यह भी है कि पीएम मोदी के निर्देश के बाद ही यह चिट्ठी लिखी गई है। जानकार मानते हैं कि इस मुद्दे पर सरकार बैकफुट पर आ रही थी, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने तो इसे ओबीसी विरोधी तक बता डाला था। इसी बीच अब लेटरल एंट्री पर रोक लगाने का फैसला हुआ है।

पहले भी हो चुकी हैं लेटरल एंट्री

लेटरल भर्ती में आरक्षण विवाद से परेशान सरकार

ऐसा कहा जा रहा है कि लेटरल एंट्री में क्योंकि आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है,इसी वजह से केंद्र ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। समझने वाली बात यह भी है कि इसी आरक्षण मुद्दे की वजह से लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा था। विपक्ष ने नेरेटिव सेट किया था कि बीजेपी आरक्षण खत्म कर देगी, संविधान को बदल देगी। लेकिन अब जब तीसरी बार सरकार बन गई है, पार्टी फूंक-फूंक कर हर कदम रखना चाहती है।

लेटरल एंट्री में होता क्या है?

वैसे लेटरल एंट्री को लेकर यह बात समझना जरूरी है कि इस प्रक्रिया से आए हुए लोग केंद्रीय सचिवालय का हिस्सा होते हैं, जिसमें उस समय तक केवल अखिल भारतीय सेवाओं/केंद्रीय सिविल सेवाओं से आने वाले नौकरशाह ही सेवा दे रहे थे। लेटरल एंट्री से आने वाले लोगों को तीन साल के कांट्रेक्ट पर रखा जाएगा जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है। लेकिन अभी के लिए उस विज्ञापन पर भी रोक लगी है और सीधी भर्ती भी नहीं होने जा रही है।