राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बुढ़ापे में उनकी छड़ी थाम कर आगे-आगे चलने वाले पोते कनु गांधी के बुढ़ापे की कोई लाठी न थी। वे जीवन के अंतिम दिनों में बेसहारा यहां वहां भटकते, जीवन बसर किए और पिछले दिनों अंतिम सांस ली। जिनके बच्चे हैं भी वे भी उनसे दूर हैं।  बुजुर्गों व बच्चों के बीच दूरी का आज का यह दौर दोनों को बीमार बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है। उन्हें सेहतमंद बनाने, पीढ़ियों के बीच इस खाई को भरने व दोनों के बीच सेतु फिर से कायम करने के मकसद से एम्स के जेरियाट्रिक विभाग ने एक पहल की है। इंटरनेशनल एंपावरमेंट नाम से इस मुहिम के तहत बुजुर्गों को निमोनिया के टीक ाकरण, उनकी एनीमिया की जांच व खून की कमी दूर करने के साथ ही उनकी आवाजाही सुगम बनाने की शुरुआत की गई। केंद्रीय मानव संसाधान विकास राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा की अगुआई में यह अभियान शुरू किया गया। एम्स के जेरियाट्रिक विभाग के मुखिया डॉक्टर एबी डे ने कहा कि इससे बुजुर्गों की बीमारी पर खर्च होने वाले हजारों करोड़ रुपए की बचत भी होगी व उनके जीवन को स्वस्थ व कर्मशील बनाया जा सके गा। उन्होंने बताया कि जिस देश में बुजुर्गों की देखभाल की सहज व सामूहिक परंपरा रही वहां अब पीढ़ियों में खाई बढ़ रही है, एकांकी बुजुर्ग ज्यादा उपेक्षित व बीमार होते हैं। यह वैज्ञानिक तौर पर साबित हो चुका है। इसी तरह बुजुर्गों से दूर का बचपन ज्यादा कमजोर नई पीढ़ी तैयार कर रहा है।

स्कूली बच्चों में उनके घर के बुजुर्गों का खयाल रखने की प्रवृत्ति पैदा करने, उनसे नियमित संवाद व जुड़ाव कायम करने के मकसद से एम्स के ही सहायक प्रोफेसर डॉक्टर प्रसून चटर्जी की पहल पर स्कूली बच्चों से बुजुर्गों की सेहत का रिपोर्ट कार्ड बनाने की शुरुआत की गई है। इस पर सर्वेक्षण रपट तैयार की जाएगी। उन्होंने कहा कि तीन उपाय बुजुर्गों को बीमारी से बचाने के लिए किए जा रहे हैं। डॉक्टर प्रसून ने कहा कि देश के एक लाख स्कूली बच्चों के जरिए कम से कम तीन लाख बुजुर्गों की सेहत का हाल-चाल जुटाया जाएगा। इसमें मानव संसाधन मंत्रालय से हर संभव मदद का राज्यमंत्री ने भरोसा भी दिया। डॉक्टर चटर्जी ने कहा कि बच्चों को पहले बताया जाएगा कि उन्हें इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा कि उनके घर के बडेÞ किस तरह सोते कितना खाते-पीते या सक्रिय रहते हैं, उनकी भूख-नींद कैसी है एक प्रश्नावली से पूछा जाएगा। इस तरह से उन्हें बड़े की सेहत का ध्यान रखने की प्रवृत्ति पैदा की जाएगी।

बुजुर्गों को इन बच्चों के लिए कोई कार्यक्रम चलाने के लिए कह इससे जोड़ा जाएगा। इसमें नेहरू युवा केंद्र की मदद भी ली जाएगी। इसके तहत बुजुर्ग नई विधाएं सीख सकेंगे।उन्होंने बताया कि देश में 12 करोड बुजुर्ग हैं। अस्पतालों के आइसीयू के बिस्तर बुजुर्गों के इलाज में इस्तेमाल किए जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से वेंटीलेटर का खर्च मिला कर 5000 करोड़ रुपए का खर्च आता है। ज्यादातर बुजुर्गों को निमोनिया की दिक्कत होती है। इन खर्चों को बचाया जा सकता है, अगर निमोनिया का टीका 60 साल से ऊपर के हर बुजुर्ग को लगाया जा सके। यह टीका एक बार 80 साल की उम्र में भी लगाना होगा। इसके साथ ही एक आसान सी छोटी मशीन के जरिए बुजुर्गो में खून की कमी की तुरंत जांच की सेवा भी शुरू की गई। इसमें शुगर की तरह एक बूंद खून से मरीज के शरीर में खून की मात्रा का पता लगाया जा सकता है ताकि उसे तुंरत आयरन की गोली दी जा सके। इसके आलावा व्हील चेयर से अशक्त बुजुर्गों को भी आत्मनिर्भर बनाने की पहल की गई। पर्यावरणविद अनुपम मिश्र ने भी इस मौके पर विचार रखे।

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