लक्षद्वीप की डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी के मौजूदा सचिव बड़ी परेशानी में फंसते दिख रहे हैं। केरल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी करते हुए अंदेशा जताया कि न्यायिक अधिकारी ने बतौर चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट एक मामले में सुनवाई के दौरान साक्ष्यों में हेराफेरी की लगती है। हाईकोर्ट ने लक्षद्वीप के प्रशासक को आदेश दिया है कि न्यायिक अधिकारी ने सस्पेंड करके मामले की जांच कराई जाए।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मजिस्ट्रेट हो या फिर जज। कानून सभी के लिए बराबर है। अगर अपनी ड्यूटी में कोई कोताही बरतता है तो उसे सबक सिखाने की जरूरत है। तभी चीजों ढर्रे पर चलेंगी। किसी मामले में कोई खामी दिखती है तो संवैधानिक कोर्ट को हस्तक्षेप करना ही होगा। आखिर लोगों के भरोसे का सवाल है। इसे ऐसी ही डिगने नहीं दिया जा सकता।
हाईकोर्ट का कहना था कि पहली नजर में लगता है कि के चेरियाकोया ने अपनी ड्यूटी में कोताही बरती। चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट रहते हुए उन्होंने एक मामले में फर्जी साक्ष्य गढ़े। साक्ष्यों में हेरफेर भी की। जिस काम के लिए उन्हें तैनात किया गया था उन्होंने उसमें ही गोरखधंधा कर डाला। उन्हें कड़ा सबक सिखाए जाने की जरूरत है।
मामले के मुताबिक लक्षद्वीप के Agatti पुलिस थाने में 2015 में एक केस दर्ज किया गया था। तकरीबन 40 लोगों ने गैर कानूनी तरीके से जमावड़ा करके सरकारी काम में बाधा डालने की कोशिश की थी। मजिस्ट्रेट ने मामले का संज्ञान लिया। आरोपियों को जमानत मिल गई। 2019 में Prosecution witnesses के बयान की जांच की गई थी।
वकीलों ने जब जांच अधिकारी के बयान को क्रास चेक करने के लिए मजिस्ट्रेट से दरखास्त की तो उनका कहना था कि वो खुद जांच कर चुके हैं। लेकिन डायरी में इसका कोई जिक्र नहीं था। न ही जांच अधिकारी के उसमें दस्तखत थे। याचिकाकर्ता का कहना है कि उन्हें फंसाने के लिए मजिस्ट्रेट ने सारा गोरखधंधा किया और उन्हें ही साढ़े चार साल की सजा सुना दी। उसके बाद ये सारा मामला केरल हाईकोर्ट के पास पहुंचा।