लखीमपुर खीरी केस के आरोपी केंद्रीय मंत्री आशीष मिश्रा ने जमानत हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा कि SIT ने मामले की जांच पूरी करके चार्जशीट दाखिल कर दी है। लिहाजा लोअर कोर्ट पहले चार्ज फ्रेम करने का काम करे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच को बताया गया कि लोअर कोर्ट इस मामले पर 29 नवंबर को सुनवाई करने वाली है। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि लोअर कोर्ट एक सप्ताह के भीतर चार्ज फ्रेम करने का काम करे।

आशीष मिश्रा की तरफ सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने पैरवी की। उनका कहना था कि पुलिस ने जो केस दर्ज किया है उसमें कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। लिहाजा उसे जमानत पर रिहा करने में कोर्ट को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। जस्टिस नाथ ने उनसे पूछा कि इससे क्या फर्क पड़ता है। मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी। आशीष की तरफ से पेश वकील रंजीत कुमार का कहना था कि जिस दिन किसानों की मौत हुई आशीष मौके पर मौजूद नहीं था। वो घटनास्थल से चार किमी दूर एक दंगल में था। इसकी सीसीटीवी फुटेज भी मौजूद हैं। उनका कहना था कि वो 11 माह से जेल में बंद है। जनवरी 2022 में पुलिस की स्पेशल टीम चार्जशीट दाखिल कर चुकी है। उनका कहना था कि किसानों की मौत इस वजह से हुई क्योंकि उन्होंने काफिले पर हमला किया था। वाहन चालक संतुलन खो बैठे और गाड़ी उनके ऊपर चढ़ गई।

एडवोकेट का कहना था कि ये आरोप गलत है कि उनके क्लाईंट ने फायरिंग की थी। किसी भी डेड बॉडी पर गोली का निशान नहीं मिला है। उनका कहना था कि आशीष का किसानों की मौत में कोई हाथ नहीं था। 10 फरवरी को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आशीष को जमानत पर रिहा कर दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजेआई एनवी रमना ने फैसले को खारिज कर दिया था। उनका कहना था कि हाईकोर्ट ने तथ्यों पर गौर ही नहीं किया। कई ऐसे पहलुओं को नजरंदाज किया गया जो संगीन हो सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जमानत रद होने के बाद आशीष जेल में बंद है। ध्यान रहे कि आशीष को जमानत पर रिहा किए जाने के बाद राजनीतिक स्तर पर भी खासी आलोचना हुई थी। इसमें सबसे ज्यादा किरकिरी केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के साथ यूपी की योगी सरकार की हुई थी। माना गया था कि सरकार ने जमानत की अर्जी का विरोध ही दमदार तरीके से नहीं किया।