पूर्व आप नेता और कवि कुमार विश्वास ने एक वीडियो ट्वीट किया है। यह वीडियो उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट से पोस्ट किया है। इस वीडियो में कुमार गाय को पुचकारते नज़र आ रहे हैं। कुमार ने ट्वीट में लिखा “सुबह-सुबह पूरे खेत में दौड़ाया गया हूँ। ये देवी जी नाराज़ हो गई थीं सो इन्होंने मुझे दंड सुना दिया जो दौड़-दौड़कर पूरा करना पड़ा।”

कुमार इस वीडियो में एक गाय को सहला रहे हैं और कह रहे हैं कि इनका नाम प्यारी है। कुमार ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा “मुझे इस कथा की प्रायोगिक निष्पत्ति पर कभी आश्चर्य नहीं हुआ कि भुवनमोहन कन्हैया के वेणुवादन पर सम्मोहित होकर गोकुल की सारी गायें उनके चारों और कैसे एकत्र हो जाती थीं ? कुछ लोग इसे कल्पित कथा मान सकते हैं किंतु अपनी गोशाला “गोकुल” में मेरे निजी अनुभव से मैं कह सकता हूँ कि मनुष्य की संवेदना के विस्तार की नदी का समुद्र अगर प्रकृति है तो गाय उसका गंगासागर है।

कुमार ने आगे लिखा “प्रकृति के शुभ-अशुभ तत्वों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में एक गाय भी थी जो कामधेनु का रूप लेकर प्रकट हुईं। यही कारण है कि इस पूरी प्रकृति में गाय, मनुष्य की संवेदना के सबसे अधिक निकट सहभागी सदस्यों में से एक है। जैसे हमारे गोकुल की ये मनहर सदस्य हमारी ‘प्यारी’।”

कवि ने लिखा कि हमारी गोशाला की ये दबंग व चौकस सदस्य प्यारी अपनी दूसरी सखियों लाड़ों व चुनिया-मुनिया से बिलकुल अलग हैं।केवी कुटीर पर रहते हुए अगर किसी औंचक व्यस्तता में दो-तीन दिन आप इन्हें लाड़ न लड़ाएँ तो ये मानिनी, गठबंधन में उचित प्रतिनिधित्व न पाए अहम सीट होल्डर की तरह रूठ जाती हैं। अब इन पर मीडिया तो है नहीं जो उसमें इशारेबाजी करके अपना असंतोष ज़ाहिर करें सो मुझ अकिंचन पर क्षोभ प्रदर्शन हेतु, प्यार पा रही लाड़ो में सर से दो धिस्से मारने व आगे के दोनों खुर पटक कर जेबड़ा उलझा लेने जैसे सार्थक तरीक़े अपनाती रहती हैं।

कुमार ने कहा “पिछले तीन-चार दिनों से कोरोना सेंटर्स खुलवाने व दूर-दराज़ के गांवों में दवाई पहुँचाने जैसे कुछ बेहद ज़रूरी कामों में ज़्यादा फंसे होने की वजह से, इनके साथ खेल-कौतुक न हो पाए तो आज सुबह-सुबह, उस अनुपस्थिति के मुआवज़े स्वरूप, मुझे इन्हें खेत के पूरे दो चक्कर लगवा कर लाना पड़ा। मक्का के खेत में “कुछ खाया-कुछ बिखेरा” शैली में ब्रेकफ़ास्ट हेतु इनके साथ-साथ दौड़ लगानी पड़ी।तब जाकर देवि थोड़ी अनुकूल व प्रसन्न हुईं और पारितोषिक स्वरूप मेरे बिना धुले कपोलों पर गीला-गीला थूथन रगड़ कर अभयदान प्रदान किया”