Krishna Janmabhoomi Case: शाही ईदगाह-कृष्ण जन्मभूमि विवाद ने शुक्रवार को एक और दिलचस्प मोड़ ले लिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि वह हिंदू पक्षों की तरफ से उठाए गए नए दावों की जांच करेगा कि विवादित ढांचा एएसआई के तहत एक संरक्षित स्मारक है और इसका इस्तेमाल मस्जिद के रूप में नहीं किया जा सकता है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की तरफ से दायर अपील पर हिंदू पक्षों को नोटिस जारी किया। हाई कोर्ट ने हिंदू पक्ष को अपने मुकदमे में संशोधन करने और एएसआई को भी मामले में पक्ष बनाने की अनुमति दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि जहां तक ​​यह सवाल है कि क्या एएसआई संरक्षित जगह का इस्तेमाल मस्जिद के रूप में किया जा सकता है, यह हमारे सामने पेंडिंग है। हमने कहा था कि कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए और आपने हाई कोर्ट को यह कभी नहीं बताया। इस पर अन्य मामले में गुण-दोष के आधार पर विचार करना होगा।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कही बड़ी बात

बेंच ने यह भी पाया कि हिंदू पक्ष के संशोधन आवेदन को स्वीकार करने वाला हाईकोर्ट का आदेश प्रथम दृष्टया सही लगता है। हाईकोर्ट के सामने हिंदू पक्ष का आवेदन इस दावे पर आधारित था कि एएसआई संरक्षित स्थल का इस्तेमाल मस्जिद के रूप में पूजा के लिए नहीं किया जा सकता है और पूजा स्थल अधिनियम ऐसी संरचना पर लागू नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आपको शिकायत में संशोधन करने और पक्षों को पक्षकार बनाने का अधिकार है। हाईकोर्ट में हिंदू पक्ष ने एएसआई को पार्टी बनाने और वाद में संशोधन के लिए अपील की थी। हिंदू पक्ष का कहना है कि साल 1920 में जब यूपी ब्रिटिश हुकुमत में यूनाइटेड प्रोविंस था, तब उसके लेफ्टिनेंट गर्वर्नर ने इस मस्जिद को एएसआई मॉन्यूमेंट घोषित किया था।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पूरा का पूरा विवाद मथुरा में मुगल बादशाह औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से संबंधित है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसको भगवान कृष्ण के जन्मस्थान वाली जगह पर मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह के बीच एक समझौता हुआ था। इसके तहत दोनों पूजा स्थलों को एक साथ संचालित करने की इजाजत दी गई थी।

हालांकि, इस समझौते की वैधता को लेकर अब कृष्ण जन्मभूमि के संबंध में कोर्ट में चुनौती दी गई। वाद दाखिल करने वाले लोगों का तर्क है कि यह समझौता धोखाधड़ी से किया गया था और कानून पूरी तरह से अमान्य है। विवादित स्थल पर पूजा करने के अधिकार का दावा करते हुए कई ने शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की है। क्या है सीपीसी की धारा ऑर्डर 7 रूल 11?