महाराष्ट्र सरकार ने पिछले महीने आधिकारिक तौर पर कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड (KRCL) को भारतीय रेलवे में विलय करने पर सहमति जताई थी। गोवा, कर्नाटक और केरल ने पहले ही विलय को मंजूरी दे दी है। अब महाराष्ट्र के इस फैसले से भारत की सबसे खूबसूरत और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रेलवे लाइनों में से एक कोंकण रेलवे बड़े राष्ट्रीय नेटवर्क में पूरी तरह से एकीकृत करने का रास्ता साफ हो गया है।

कोंकण रेलवे क्या है और यह कैसे अस्तित्व में आई?

कोंकण रेलवे (KR) की स्थापना 1990 में रेल मंत्रालय ने की थी, जिसका उद्देश्य चट्टानी पश्चिमी घाटों के माध्यम से रेलवे लाइनों के निर्माण के कठिन कार्य को पूरा करना था। जनवरी 1998 में आधिकारिक तौर पर परिचालन शुरू करने वाली इस परियोजना का उद्देश्य महाराष्ट्र में रोहा, गोवा, कर्नाटक में मंगलुरु और तटीय केरल को जोड़ना था। इसके अलावा परियोजना का उद्देश्य कोंकण तट पर माल और यात्री दोनों की आवाजाही के लिए एक लाइफलाइन बनना था।

कोंकण रेलवे 741 किलोमीटर की लंबाई के साथ यात्रा के समय को काफी कम कर दिया है। साथ ही इसने दूरदराज क्षेत्रों को राज्यों के प्रमुख कस्बों और शहरों से जोड़ा। केआरसीएल का गठन एक जॉइंट वेंचर के रूप में किया गया था, जिसमें भारत सरकार की 51%, महाराष्ट्र की 22%, कर्नाटक की 15% और गोवा और केरल की 6-6% हिस्सेदारी थी। इस लाइन को 1990 के दशक की शुरुआत में चालू किया गया और तब से यह एक प्रमुख मार्ग रहा है। इसमें केआरसीएल हमेशा भारतीय रेलवे से अलग यूनिट के रूप में मौजूद रहा है।

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अब विलय क्यों हो रहा है?

परिचालन रूप से सफल होने के बावजूद केआरसीएल कई वर्षों से वित्तीय संकटों से जूझ रहा है। कम राजस्व और बढ़ती बुनियादी ढाँचे की माँगों के साथ कंपनी को विस्तार के लिए फाइनेंस या बड़े अपग्रेडेशन का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा था। महाराष्ट्र सरकार की स्वीकृति मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को लिखे गए एक पत्र के माध्यम से दी। इस पत्र में विशेष रूप से कहा गया है कि स्टैंडअलोन मॉडल खुद अस्थिर हो गया है, और भारतीय रेलवे के साथ हाथ मिलाने से केआरसीएल को विशाल निवेश आधार का लाभ उठाने में मदद मिलेगी।
इस प्रकार यह विलय कनेक्टिविटी, सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा और अंततः महाराष्ट्र और उसके बाहर स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं, पर्यटन और रोजगार को लाभ होगा।

फडणवीस के पत्र में कहा गया है कि किसी भी विलय के लिए दो शर्तें हैं। पहली यह कि विलय के बाद भी कोंकण रेलवे नाम का उपयोग जारी रहेगा और दूसरी शर्त है कि भारतीय रेलवे राज्य के शुरुआती निवेश के लिए महाराष्ट्र को 394 करोड़ रुपये से अधिक की राशि देगा। कथित तौर पर केंद्र ने इन दोनों शर्तों को पूरा करने पर सहमति जताई है।

यात्रियों पर इसका क्या असर होगा?

अब गेंद रेलवे बोर्ड के पाले में है। सभी पक्षों द्वारा विलय को मंजूरी दिए जाने के बाद बोर्ड अंततः प्रक्रिया शुरू करेगा, जिसमें विलय के वास्तव में पूरा होने से पहले कई प्रशासनिक, वित्तीय और कानूनी कदम उठाने पड़ सकते हैं। सूत्रों के अनुसार इस प्रक्रिया में कर्मचारी की पोस्ट, परिचालन क्षेत्रों और सेवा अनुबंधों को फिर से तैयार करना शामिल है, और इसे वास्तविकता में आने में कुछ महीने लग सकते हैं।

हालांकि ऐसा होने पर यात्रियों को अपग्रेडेड बुनियादी ढांचे, ट्रेनों की बेहतर स्थिति, बेहतर सुरक्षा उपायों और भारतीय रेलवे के अन्य मार्गों के साथ बढ़ी हुई कनेक्टिविटी से लाभ मिलने की संभावना है। विलय से अधिक प्रतिस्पर्धी किराए, भारतीय रेलवे चैनलों पर निर्बाध बुकिंग सिस्टम भी मिल सकते हैं, जो कि कोंकण रेलवे यात्रियों के लिए लंबे समय से एक चुनौती रही है।