कोहीनूर को भारत वापस लाने की मांग पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि भारत को कोहीनूर हीरे पर दावा नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह न तो ब्रिटेन ने चुराया और न इसे जबरदस्ती ले जाया गया। हमें आपको बताते हैं इसे विवाद से जुड़े सभी तथ्य।
क्या है कोहिनूर हीरा
कोहिनूर का मतलब है रोशनी का पहाड़। 105 कैरट का कोहिनूर करीब 150 साल से ज़्यादा वक्त से ब्रिटिश ताज का हिस्सा रहा है। माना जाता है कि यह आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा के एक खान से निकला था। शुरुआत में कोहिनूर हीरा पूरे 720 कैरेट का हुआ करता था। इसका मूल्य 200 मिलियन डॉलर आंका जाता है।
कोर्ट में कैसे पहुंचा मामला और सरकार का क्या है रुख
ऑल इंडिया ह्यूमन राइट्स एंड सोशल जस्टिस फ्रंट ने कोहिनूर को भारत वापस लाने की याचिका दायर की है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि कोहिनूर को न तो भारत से लूटा गया और न जबरदस्ती ले जाया गया। ये उपहार के रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी को दिया गया। हालांकि रंजीत कुमार ने बताया कि अभी विदेश मंत्रालय का जवाब नहीं आया है।
ब्रिटेन क्या कहता है
ब्रिटिश सरकार ने 2013 में कोहीनूर वापस देने की मांगों को खारिज कर दिया था। ब्रिटेन का दावा है कि यह हीरा क़ानूनी आधार पर उन्हें दिया गया। इसके चलते इस पर किसी और का दावा करना गलत है।
कौन-कौन देश करता है दावा
कोहिनूर पर भारत के साथ ही पाकिस्तान, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका भी दावा करता है। फरवरी में लाहौर कोर्ट में एक याचिका दायर करके इसे पाकिस्तान लाने की मांग की गई। कहा गया कि कोहिनूर हीरा अफ़ग़ानिस्तान के बादशाह ने लाहौर के बादशाह रंजीत सिंह को तोहफ़े के तौर पर दिया था। हीरे की चोरी लाहौर से की गई इसलिए कोहिनूर पर भारत से कहीं ज़्यादा पाकिस्तान का हक है।
कोहिनूर की कहानी
माना जाता है कि यह हीरा अभिशप्त है। जिस राजवंश के पास गया, वो खत्म हो गया। कहा जाता है कि 14 वीं शताब्दी की शुरुआत में यह हीरा काकटीय वंश के पास आया। इसके बाद से इस वंश के बुरे दिन शुरू हो गए और 1323 में तुगलक शाह प्रथम से लड़ाई में हार के साथ काकटीय वंश समाप्त हो गया। तुगलक वंश भी ज्यादा समय तक नहीं चला। यह हीरा तुगलक से मुगलों तक पहुंचा। 16 वीं सदी में शाहजहां ने इस कोहिनूर हीरे को अपने सिंहासन में जड़वाया। 1739 में फारसी शासक नादिर शाह भारत आया और उसने मुगल सल्तनत पर कब्जा कर लिया। वह कोहिनूर हीरे को फारस ले गया। 1747 ई. में नादिरशाह की हत्या हो गयी और कोहिनूर हीरा अफ़गानिस्तान के शहंशाह अहमद शाह दुर्रानी के पास पहुंच गया।1813 में अफ़गानिस्तान से यह लाहौर के राजा रंजीत सिंह के पास आ गया। जब रंजीत सिंह मौत के करीब थे तब उन्होंने कोहिनूर को उड़ीसा के एक हिंदू मंदिर को देने की बात वसीयत में लिखी, लेकिन उनकी मौत के बाद ब्रितानी शासकों ने वसीयत पर अमल नहीं किया।