Know Your City: यमुना किनारे बसे कौशांबी जिले का इतिहास बहुत ही पुराना है। इस शहर ने भगवान राम से लेकर द्वापर काल तक को देखा है। वहीं गौतम बुद्ध से लेकर जैन धर्म के विस्तार का भी ये शहर गवाह रहा है। हालांकि कौशांबी को जिले के रूप में 4 अप्रैल 1997 में प्रयागराज से अलग करके बनाया गया था। साथ ही कौशांबी कई ऋषि मुनियों की भी तपो स्थली रही है। मौर्य शासक अशोक द्वारा भारत में बनवाया गया दूसरा स्तंभ यहीं स्थापित हुआ था जो बाद में प्रयाग किले में स्थानानांत यहां पर देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक शीतला धाम कड़ा धाम यहीं स्थित है। जहां श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहता है।

पांडवों की राजधानी बनी थी कौशांबी

कुंभ नगरी प्रयागराज से कौशांबी की दूरी 60 किमी है। गौरव से भरे कौशांबी के इतिहास की बात करें तो पुराणों में लिखा है कि द्वापर युग के राजा परीक्षित के छठे वंशज निस्सकु ने अपनी राजधानी हस्तिनापुर से कौशांबी स्थानांतरित की थी। किंवदंती के अनुसार ही इसका मतलब ये है कि कौशांबी अपने समय से ही काफी समृद्ध शहरों में से एक था। 

भगवान राम से जुड़ा है स्थान

भगवान राम जब अयोध्या से 14 वर्ष वनवास के लिए निकले थे तो उस समय श्रृंगवेरपुर जाने के दौरान भगवान राम ने माता सीता और लक्ष्मण के साथ कौशांबी के राम जूठा नामक तालाब के किनारे विश्राम किया था। यहां राम अपने वन यात्रा के दौरान अपनी पहली रात यहीं गुजारी थी।

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इस जिले को बुद्ध और जैन की धरती के रूप में जाना जाता है। यहां पर जैन धर्म प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने कौशांबी की धरती पर ही तप और ज्ञान प्राप्त किया था। इसके साथ ही 6 वें तीर्थंकर श्री तीर्थंकर मैदूभ प्रभु के गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान कौशांबी में ही हुआ था। इसी वजह से यहां पर काफी संख्या में जैन मंदिर हैं। भगवान बुद्ध  कौशांबी 16 महाजनपद में से एक वत्स देश की राजधानी भी थी।

चीनी यात्री आए थे कौशांबी

गौतम बुद्ध ने अपने परिव्राजक जीवन का छटवाँ और नौवाँ वर्ष यहीं व्यतीत किया था। बुद्ध के समय में कौशांबी भारत का एक महत्वपूर्ण और समृद्ध शहर था। छठी शताब्दी ईस्वी तक अपना महत्व बनाए रखने के दौरान यहाँ चीनी तीर्थयात्री फा-हियान और युआन-च्वांग आए थे। ये शहर यह नदी यातायात का एक टर्मिनस और मध्य भारत का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।