चक्षु रॉय

राज्‍यसभा के उपसभापति पीजे. कुरियन का कार्यकाल 1 जुलाई को समाप्‍त हो चुका है। ऐसे में ऊपरी सदन के इस पद के लिए चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। किसी भी दल के पास पर्याप्‍त संख्‍या बल नहीं हैं, लिहाजा जोड़-तोड़ की प्रक्रिया भी तेज हो गई है। अनुच्‍छेद 89 के तहत यह एक संवैधानिक पद है। इस आर्टिकल में राज्‍यसभा के ही किसी सदस्‍य को उपसभापति बनाने की व्‍यवस्‍था की गई है। साथ ही प्रक्रिया भी निर्धारित की गई है। इसके अनुसार, सदन का कोई भी सदस्‍य अपने सहयोगी का नाम इस पद के लिए प्रस्‍तावित कर सकता है। प्रस्‍ताव का अन्‍य सांसद द्वारा समर्थन करना जरूरी है। प्रस्‍ताव पेश करने वाले सदस्‍य को घोषणापत्र भी देना होता है। इसमें इस बात का उल्‍लेख करना अनिवार्य होता है कि सांसद (जिनका नाम प्रस्‍तावित किया गया है) इस पद के लिए चयनित होने के बाद उपसभापति के तौर पर काम करने के इच्‍छुक हैं। घोषणापत्र पर प्रत्‍याशी का हस्‍ताक्षर होना जरूरी है। राज्‍यसभा के प्रत्‍येक सदस्‍य को एक प्रस्‍ताव पेश करने और एक का समर्थन करने का अधिकार है।

एक से ज्‍यादा प्रत्‍याशी होने पर मतविभाजन: उपसभापति पद के लिए सांसद के नाम का प्रस्‍ताव पेश होने के बाद राज्‍यसभा इस पर विचार करता है। एक से ज्‍यादा सांसदों के नाम से प्रस्‍ताव आने की स्थिति में मतविभाजन या वोटिंग के जरिये विजेता का फैसला होता है। हालांकि, सदन में किसी सांसद के नाम पर सहमति बनने पर उन्‍हें सर्वसम्‍मति से राज्‍यसभा का उपाध्‍यक्ष चुनने की भी व्‍यवस्‍था है।

49 साल पहले हुआ था पहला मुकाबला: राज्‍यसभा के उपसभापति पद के लिए अब तक 19 बार चुनाव हो चुके हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्‍त्री के प्रधानमंत्री रहते इस पद के लिए प्रत्‍याशी का चुनाव सर्वसम्‍मति से ही होता रहा। राज्‍यसभा के उपसभापति पद के लिए पहला चुनाव वर्ष 1952 में हुआ था और कांग्रेस के एसवी. कृष्‍णमूर्ति राव को लगातार दो टर्म (1952-56 और 1956-62) के लिए सर्वसम्‍मति से चुना गया था। इसके बाद कांग्रेस की ही वायलेट अल्‍वा भी दो बार निर्विरोध निर्वाचित हुई थीं। लेकिन, वर्ष 1969 में यह परंपरा टूट गई, जब RPI के बीडी. खोबरागड़े ने राज्‍यसभा में मतविभाजन के जरिये जीत हासिल की थी। कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता पीजे. कुरियन भी अगस्‍त 2012 बिना किसी विरोध के उपसभापति का चुनाव जीता था।