सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (CBSE) ने बुधवार को ऐलान किया कि सोमवार को हुए 12वीं के मैथ्स के पेपर पर टीचर, स्टूडेंट्स और परीक्षकों के फीडबैक वो एक्सपर्ट्स के पैनल के सामने रखेगा। सीबीएसई ने यह भी कहा कि वो ‘मूल्यांकन से पहले उपचारात्मक कदम’ उठाएगी। बता दें कि कथित तौर पर बेहद लंबा और कठिन गणित का पर्चा आने के बाद विवाद पैदा हो गया है। छात्रों और अध्यापकों का कहना है कि कुछ एक नंबर के सवालों के जवाब बेहद लंबे थे। शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू ने सदन में कहा, ”कुछ प्रश्न बेहद मुश्किल थे। यहां तक कि बेहद मेधावी छात्र भी उनका ठीक ढंग से जवाब नहीं दे सके।” ऐसा लगातार दूसरे साल हुआ है, जब गणित के पेपर की आलोचना हो रही है। इससे सीबीएसई के पेपर तैयार करने के तरीके पर भी सवाल उठ रहे हैं। आइए, समझते हैं कैसे तैयार होता है परीक्षा का पर्चा
एग्जाम से पहले
सीबीएसई एग्जाम के लिए बने 2014 के नियमों में हर टॉपिक के लिए पीरियड्स की संख्या और उनके मार्क्स निर्धारित किए गए हैं। 12वीं के गणित पेपर की बात करें तो कैलकुलस के लिए 80 पीरियड्स और 44 नंबर तय किए गए हैं। एलजेबरा के 50 पीरियड्स लेकिन नंबर सिर्फ 13 जबकि वेक्टर और थ्रीडी ज्योमेट्री के लिए 30 पीरियड और 17 नंबर निर्धारित किए गए हैं। 2014 के गाइडलाइंस में क्वेश्चन पेपर का टाइप और डिजाइन तय किया गया है।
पेपर सेटिंग
हर सब्जेक्ट के लिए पेपर सेट करने में छह महीने या इससे ज्यादा का वक्त लगता है। यह 9 से 17 लोगों की कोशिशों से तैयार होता है। ये लोग कुछ विशिष्ट योग्यता वाले होते हैं। वे देश से होते हैं। इनमें से किसी की भी दूसरे के सामने पहचान सार्वजनिक नहीं होती। प्रक्रिया अगस्त-सितंबर में शुरू होती है। यह वो वक्त होता है, जब 12 वीं के स्टूडेंट अपना मिड टर्म एग्जाम दे रहे होते हैं। हर सब्जेक्ट के लिए बोर्ड चार से सात पेपर ‘सेटर्स’ नियुक्त करता है। ये सभी संबंधित विषय में पोस्टग्रेजुएट होते हैं। उन्हें सेकंडरी या हायर सेकंडरी स्तर पर कम से कम दस सालत तक संबंधित विषय पढ़ाने का अनुभव होता है। ऐसा न होने की स्थति में ये पेपर सेटर्स किसी राज्य या राष्ट्रीय स्तर के उस शैक्षिक निकाय के सदस्य होते हैं, जिनकी स्थापना सरकार करती है।
नियमों के मुताबिक, पेपर सेटर ऐसे न हों, जिन्होंने कभी विषय से जुड़ी गाइड बुक, हेल्प बुक या इससे मिलता लुलता मटीरियल लिखा या संपादित किया हो। उस साल उन्होंने कोई प्राइवेट ट्यूशन भी नहीं दिया हो। इसके अलावा, उनके परिवार का कोई सदस्य उस साल परीक्षा में नहीं बैठ रहा हो। पेपर सेटर्स को पिछले साल का क्वेश्चन पेपर के अलावा पेपर के लिए तय टाइप, डिजाइन और कोर्स के स्ट्रक्चर की जानकारी दी जाती है। इस गाइडलाइंस के आधार पर एक पेपर सेटर औसतन दो महीने में एक पेपर सेट करता है और उसे सीबीएसई को भेजता है।
पेपर सेटिंग 2
अब दूसरे एक्सपर्ट्स का काम शुरू होता है। इनकी भूमिका ‘मॉडरेटर’ जैसी होती है। ये इस बात की जांच करते हैं कि क्या पेपर को तैयार करने में सिलेबस, कठिनता का स्तर, पेपर की लंबाई आदि में सीबीएसई के मानकों का ध्यान रखा गया है या नहीं। हर साल एक सब्जेक्ट के लिए पांच से दस मॉडरेटर नियुक्त किए जाते हैं। इनकी भी शैक्षिक योग्यता पेपर सेटर्स जैसी ही होती है। एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, ”चूंकि छात्र विभिन्न सामाजिक-आर्थिक बैकग्राउंड और बुद्धिमता स्तर के होते हैं, इसलिए पेपर्स तय करते वक्त बराबरी सुनिश्चित करने की कोशिश की जाती है। यह हमारी निगरानी का दूसरा स्तर है।” सीबीएसई के नियमों के मुताबिक, मॉडरेटर्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर प्रश्नपत्र विषय, ब्लू प्रिंट, डिजाइन, टेक्सक्ट बुक या निर्धारित किताबों के मुताबिक सेट किया जाए। ये मॉडरेटर्स नंबर देने की एक स्कीम भी तय करते हैं। इसमें अपेक्षित जवाब, नंबरों का आवंटन और सवाल हल करने के हर चरण पर दिए जाने वाले नंबर तय किए जाते हैं। उन्हें हर सवाल के बाद उस वक्त का जिक्र करना पड़ता है, जिसमें सावधानी पूर्वक पढ़ाई करने वाला एक औसत स्टूडेंट उसे हल कर ले। मॉडरेटर्स को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी सवाल त्रुटिपूर्ण या अस्पष्ट तरीके से न पूछा जाए।
परीक्षा के बाद
सीबीएसई की ओर से देश भर से नियुक्त किए गए विषय से जुड़े एक्सपर्ट परीक्षा होने के बाद उसी दिन मिलते हैं। वे परीक्षा के दौरान या बाद में मिले फीडबैक पर विचार करते हैं। मसलन- इस साल के विवादास्पद गणित के पेपर के लिए देश भर के 17 सीनियर स्टूडेंट्स मिले। सीबीएसई के एक अधिकारी के मुताबिक, ये एक्सपर्ट यह तय करते हैं कि पूछे गए हर सवाल के जवाब के हर चरण पर कितने नंबर दिए जाएं। अगर प्रश्नों के लिए दिए जाने वाले नंबरों को लेकर पेपर सेटर्स या मॉडरेटर्स की ओर से तय मानकों में किसी तरह का कोई बदलाव किया जाता है तो इसकी जानकारी मूल्यांकन करने वालों को दी जाती है।
ऐसे होता है मूल्यांकन
कापियां जांचने वाले परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स का रोल नंबर नहीं देख पाते। सीबीएसई के अंतर्गत आने वाले सभी दस रीजन में किसी कॉलेज का प्रिंसिपल या प्रोफेसर या रीडर या सीनियर रीडर चीफ सीक्रेसी ऑफिसर नियुक्त किया जाता है। वो एक टीम बनाता है, जिसमें कम से कम कॉलेज के लेक्चरर शामिल होते हैं। ये टीम हर आंसर शीट पर एक काल्पनिक रोल नंबर डालती है। यहां नियम है कि सीक्रेसी आफिसर का कोई भी रिश्तेदार उस साल परीक्षा में शामिल न हो। सीबीएसई के चेयरमैन एक प्रिसिंपल, वाइस प्रिंसिपल या संबद्ध कॉलेज के पोस्ट ग्रेजुएट टीचर को हर सबजेक्ट का हेड एग्जामिनर तय करते हैं। हेड एग्जामिनर कॉपियों के मूल्यांकन पर नजर रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि सभी कापियां जांचने वाले समान मूल्यांकन सिद्धांतों का पालन करें।