Kiren Rijiju On Supreme Court: कानून मंत्री किरेन रिजेजु ने कहा है कि पांच करोड़ मामले पेंडिंग हैं। सरकार को उनकी चिंता है। इसी वजह से वो जजों की नियुक्ति का मामला उठा रही है। सुप्रीम कोर्ट में दखल के आरोप पर संसद में कानून मंत्री बोले कि जजों की नियुक्ति में सरकार का रोल बहुत कम होता है। हालांकि ये चीज संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है।

उनका कहना था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के साथ हाईकोर्ट्स से कई बार कह चुकी है कि उनकी सिफारिशों में कई चीजें नहीं होतीं। जो नाम भेजे जाते हैं उनमें क्वालिटी नहीं दिखती। कई बार जेंडर रेशियो को भी ध्यान में रखा नहीं जाता। वो बोले कि संविधान के हिसाब से सुप्रीम कोर्ट के साथ हाईकोर्ट्स में नियुक्ति सरकार का काम था। लेकिन 1993 के बाद से ये स्थिति बदल गई।

कानून मंत्री राज्यसभा में बोल रहे थे। मौजूदा समय में उनके बयान से फिर से सरकार की जिद दिखी कि वो जजों की नियुक्ति के मामले में अपने स्टैंड पर कायम है। सुप्रीम कोर्ट से सरकार का विवाद लंबे समय से चल रहा है। कोर्ट ने हाल ही में सरकार से कहा था कि वो कानून की अवहेलना न करे। कॉलेजियम का प्रावधान सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हुआ है। अगर लोग अपनी मर्जी से कानून को मानेंगे तो इससे गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा। कोर्ट ने लॉ सेक्रेट्री को आदेश दिया था कि वो कॉलेजियम की सिफारिशों को लागू करने में हो रही देरी की वजह बताएं।

कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ बयानबाजी ठीक नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिसंबर को कहा था कि जजों की नियुक्ति के लिए पहले से चली आ रही कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है। इसके खिलाफ बयानबाजी करना ठीक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उसका कानून सभी के लिए बाध्यकारी है। इसका पालन होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने ये बात कॉलेजियम के तरफ से भेजे गए नामों को मंजूर करने में केंद्र की तरफ से हो रही देरी का जिक्र कर ये बात कही थी।

जस्टिस एसके कौल ने कहा कि इस अदालत की तरफ से घोषित कोई भी कानून सभी के लिए बाध्यकारी है। मैं केवल यह संकेत करना चाहता हूं। बेंच ने कहा कि अदालत को इस बात से परेशानी है कि कई नाम महीनों और सालों से लंबित हैं जिनमें कुछ ऐसे हैं जिन्हें कॉलेजियम ने फिर से भेजा है। बेंच ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम नाम भेजता है तो कई चीजों को ध्यान में रखता है। बेंच मामले में 6 जनवरी को सुनवाई करेगी