केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि शक्तिशाली और आम लोगों के लिए अलग-अलग कानून नहीं हो सकते। अदालत ने बिना अनुमति के राजनीतिक दलों को ध्वजारोहण से रोकने में सरकार के विफल रहने का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट का कहना था कि सरकार को साफ तौर पर कानून की पालना के लिए काम करना चाहिए। कुछ लोगों को खुश रखने की नीति से काम नहीं चलने वाला। जो भी कानून है उसे हर व्यक्ति को मानना होगा, चाहें वो आम हो या फिर कोई खास शख्स।

जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि यह हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए कि बिना अनुमति लगाया गया ध्वज स्तंभ अवैध है। सिर्फ इसलिए इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसा किसी शक्तिशाली व्यक्ति या राजनीतिक दलों ने किया है। इसका प्रतिकार नहीं किया जा सकता। आप एक आम नागरिक को इससे छूट नहीं देंगे। दो कानून नहीं हो सकते। एक शक्तिशाली के लिए और दूसरा आम लोगों के लिए।

हाईकोर्ट ने कहा कि यह चिंता की बात है कि राज्य सरकार इस बात को सुनिश्चित करने में भी असफल रही कि भविष्य में कोई भी अवैध ध्वज स्तंभ स्थापित नहीं किया जा सके। जस्टिस देवन ने कहा कि हाईकोर्ट की पहल का समर्थन करने के बजाय राज्य सरकार इसे लेकर कोई कदम नहीं उठा रही है। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य ने शुरुआत में ध्वज स्तंभ स्थापित करने के संबंध में नीति बनाने के लिए तीन महीने का समय मांगा था और अब वह इसके लिए और समय चाहती है।

केरल सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता अशोक एम चेरियन और एडवोकेट एस. कन्नन ने कहा कि सरकारी तंत्र इस मुद्दे पर काम कर रहा है और यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि बिना अनुमति कोई भी ध्वज स्तंभ स्थापित नहीं हो सके। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा जल्दी से जल्दी किया जाना चाहिए। आखिरकार सरकार किस बात का इंतजार कर रही है। हम इस मामले में और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते। आप जल्दी इस मामले में कोई ठोस नीति बनाकर कोर्ट को जानकारी दें।