पांच राज्यों में हो रहे चुनावों में विपक्ष के निशाने पर आए चुनाव आयोग को केरल हाईकोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने सूबे की 3 राज्यसभा सीटों का चुनाव मौजूदा असेंबली से कराने की हिदायत आयोग को दी है। ये सीटें 21 अप्रैल को खाली हो रही हैं। कोर्ट ने कहा है कि इनका चुनाव 2 मई से पहले करा लिया जाए। राज्यसभा की जिस तीन सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं, वो आईयूएमएल के अब्दुल वहाब, सीपीआई (एम) केके रागेश और कांग्रेस के वायलार रवि के रिटायर होने से खाली हुई हैं।

हालांकि, चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से भरसक कोशिश की कि राज्यसभा की 3 सीटों के लिए चुनाव प्रक्रिया को 2 मई तक टाल दिया जाए। शुक्रवार को अपने जवाब में आयोग ने हाईकोर्ट से कहा कि नई असेंबली के गठन के बाद चुनाव कराया जाए तो यह संवैधानिक दृष्टिकोण से उचित रहेगा। आयोग का कहना था कि इस मसले पर उसने लीगल रायशुमारी की है। इसके मुताबिक तीनों सीटों के लिए शेड्यूल का नोटिफिकेशन 21 अप्रैल तक जारी करना बेहतर रहेगा।

हाईकोर्ट के समक्ष यह मामला सीपीआईई (एम) के विधायक एस शर्मा ने रखा था। उन्होंने चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि आयोग के इस फैसले से मौजूदा असेंबली के विधायक अपने अधिकार का इस्तेमाल करने से वंचित रह जाएंगे। कमीशन के स्टैंडिंग काउंसिल दीपू लाल मोहन ने कोर्ट से कहा था कि आयोग को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि कौन सी असेंबली राज्यसभा चुनाव के लिए वोट करने वाली है। उनका कहना था कि मौजूदा असेंबली की मियाद खत्म होना एक महत्वपूर्ण कारक हो सकता है लेकिन केवल इसके आधार पर ही पूरी चुनाव प्रक्रिया को तब्दील नहीं किया जा सकता है।

23 मार्च को आयोग ने कोर्ट से कहा कि कानून मंत्रालय की सलाह है कि अगर राज्यसभा चुनाव 12 अप्रैल को कराए जाते हैं तो यह लोगों की भावना के अनुरूप नहीं होगा, क्योंकि सूबे में 6 अप्रैल को मतदान हो चुका है। लोग मतदान के जरिए अपनी भावनाओं को बैलेट बाक्स में बंद कर चुके हैं। लॉ मिनिस्ट्री ने इसी आधार पर चुनाव को स्थगित करने का सुझाव दिया था। आयोग ने इसी आधार पर चुनाव 2 मई के बाद कराने की बात कही थी।

जस्टिस पीवी आशा की बेंच ने आयोग से पूछा था कि उसने अपने पिछले नोटिफिकेशन से किनारा क्यों कर लिया। कोर्ट ने आज टिप्पणी की कि आयोग खुद मानता है कि उसका काम चुनाव प्रक्रिया को जल्द जल्द पूरा कराना है। उसे चाहिए कि वह जल्दी से जल्दी प्रक्रिया को संपन्न कराए। कोर्ट ने उस तर्क को पूरी तरह से खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि भारत सरकार के दबाव में आयोग ने यह फैसला लिया। बेंच का कहना था कि संविधान की धारा 324 के तहत आयोग को शक्तियां दी गई हैं। आयोग को एक रेफरेंस के प्रभाव में नहीं आना चाहिए।