प्रधानमंत्री ने पैंतालीस हजार करोड़ की बेतवा-केन जोड़ राष्ट्रीय नदी परियोजना की आधारशिला रखी थी। इस परियोजना को सूखे से जूझते बुंदेलखंड के लिए एक जीवनदायिनी सौगात माना गया था। मगर इस शिलान्यास के ठीक तीन महीने बाद ही बेतवा नदी के उद्गम में जल संकट खड़ा हो गया है। मध्यप्रदेश से निकल कर पूरे वर्ष अविरल बहने वाली बेतवा को अग्नि पुराण में वेत्रवती के नाम से दूसरी गंगा कहा गया है। पांच हजार साल पुरानी यह नदी हाल के दिनों में अपने उद्गम स्थल से विलुप्त हो गई है।
रेत का अत्यधिक खनन और भूजल के लिए नदी के आसपास निरंतर होती खुदाई से बेतवा नदी की धार लुप्त हो रही है। यह सूखने के कगार पर है। रायसेन जिले की विंध्य पर्वतमाला के झिरी गांव से निकलने वाली बेतवा के उद्गम स्थल के आसपास फैले घने जंगल में से दो सौ एकड़ के हिस्से का भूमाफिया ने ढाई दशक में सफाया कर दिया और वहां की जमीन पर कब्जा कर लिया है।
जनजातीय समुदाय को उपलब्ध कराए खेती के पट्टे
जंगली जानवरों के लिए सुरक्षित वन भूमि की उपयोगिता बदल दी गई है और इसे जनजातीय समुदाय को खेती के पट्टे उपलब्ध करा दिए हैं। सघन जंगल से निकलने वाली बेतवा नदी के आसपास पांच सौ एकड़ भूमि पर अब जंगल काट कर धान और गेहूं की खेती हो रही है। इस जंगल की दो सौ एकड़ भूमि बेतवा नदी को निरंतर प्रवहमान बनाए रखती थी। नदी की तटीय भूमि के लगभग दो सौ एकड़ क्षेत्र में खेती के लिए पांच सौ से लेकर एक हजार फीट गहरे नलकूपों का उत्खनन हो चुका है।
निर्वासन की त्रासदी और बिखरते सपने, अमेरिका में प्रवासी भारतीयों को फिर से निकालने की है तैयारी
बेतवा की धार तब टूटी जब सिंचाई के लिए नदी के उद्गम बिंदु में ही उत्खनन शुरू कर दिया गया, जिसका दुष्परिणाम सामने आया। अब बेतवा नदी का जल स्रोत अपनी दिशा बदल कर भूमिगत हो चुका है। जबकि पहले भी उद्गम से पतली धार के रूप मे आगे बढ़ी बेतवा नदी से कुछ दूर मंडीदीप औद्योगिक क्षेत्र का रसायन युक्त पानी वर्षों से नदी को गंदे नाले में बदल रहा है। इसके बाद नदी के किनारे गांवों और शहरों की गंदगी को बगैर शोधित किए नदी में डाला जा रहा है। बेतवा अपनी सहायक छोटी-छोटी नदियों- हलाली, कालियासौत, सिंध, उर्वशी, बीना, धासन और जामनी- के सहारे 590 किलोमीटर का सफर तय कर हमीरपुर (उत्तर प्रदेश) में यमुना नदी में समाहित हो जाती है। मगर इसके पहले यह हलाली, माताढीला के माध्यम से लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करती हुई बिजली उत्पादन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण परियोजना
केंद्र सरकार की नदी जोड़ परियोजना में कैमूर की पहाड़ियों से निकलने वाली केन नदी के पानी को दो सौ इक्कीस किलोमीटर लंबी नहर के निर्माण से पन्ना जिले में निर्मित दौधन बांध के माध्यम से बेतवा में मिलाया जाना प्रस्तावित है। इससे उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के हजारों गांवों को पेयजल एवं सिंचाई का प्रबंध हो सकेगा। मगर बेतवा नदी के उद्गम के पास ही स्थापित मंडीदीप औद्योगिक परिसर से इतना अधिक रसायन बेतवा में बहाया जा रहा है कि अपने पहले ही पड़ाव विदिशा में यह एक गंदे नाले का रूप धारण कर लेती है।
धरती को एक नए नुकसान की ओर धकेल रहा ठोस कचरा, दुनिया के लिए बनता जा रहा चुनौती
रसायनों के कारण सफेद एवं हरे रंग से आच्छादित इस नदी में विदिशा नगरपालिका के छह अलग-अलग नालों से बगैर शोधित गंदगी मिल जाती है। इससे नदी में घुलनशील कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा अपने खतरनाक स्तर को पार कर चुकी है। नदी उद्गम से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बेतवा जल का पीएच स्तर 6.5 की मानक सीमा से अधिक 9.03 तक चला गया है। नदी को नाला बनने से रोकने के लिए पिछले तीस वर्षों में कई बड़े आंदोलन हुए, लेकिन नाले की धार बदलने के सारे प्रयास विफल ही रहे हैं।
कल-कारखाने की वजह से नदी बन गई नाला
पिछले बाईस वर्षों से विदिशा शहर का घरेलू पेयजल उपभोक्ता संगठन और बेतवा उत्थान समिति के सदस्य प्रतिदिन घाटों से कचरा निकालने में जुटे रहते हैं। मगर सरकारी उपेक्षा और प्रतिदिन निकल रहे मलबे के सामने यह संगठन बौना ही साबित होता है। कारखानों के खतरनाक रसायनों एवं त्योहारों के दौरान नदी में मूर्तियों के विसर्जन से जलचरों का जीवन समाप्तप्राय हो चुका है। पर्यावरणविदों की मानें, तो बहती नदी अपने प्रवाह क्षेत्र में प्रत्येक दस-बीस किलोमीटर की दूरी पर दुबारा प्राकृतिक शुद्धता प्राप्त कर लेती है। ऐसा तब है जब नदी को उसके उद्गम एवं स्वजल स्रोतों से निरंतर शुद्ध पानी मिलता रहे। मगर बेतवा नदी के साथ अब ऐसा नहीं है।
सूरज का सेहत से टूटता रिश्ता, जीवनशैली में देखने को मिल रहा बड़ा परिवर्तन
उद्गम समाप्त होने और रास्ते में कल-कारखानों सहित किनारों पर बसे शहरों एवं गांवों की गंदगी के कारण अब यह नदी न होकर गंदा नाला ही है। हालांकि विदिशा के पास हालाली नदी का बांध अपने पानी से नदी की टूटती सांसों को समय-समय पर जीवनदान देता रहता है। यह नदी अत्यधिक जहरीली बनने के बाद भी केन-बेतवा जोड़ परियोजना के कारण सूखे से बेहाल बुंदेलखंड की जनता में आस जाग रही है।
केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना पर राज्य शासन की डीपीआर रपट में बेतवा के उद्गम के पास मकौडिया गांव में बांध बना कर नदी जल के प्रवाह को बनाए रखने की योजना की सिफारिश की गई थी। इस बांध के माध्यम से विदिशा और रायसेन जिलों के एक सौ चालीस गांवों में पेयजल के साथ 62 हजार 230 हेक्टेयर भूमि भी संचित करने का प्रस्ताव था, लेकिन परियोजना के भूमिपूजन से पूर्व मध्यप्रदेश सरकार ने डूब क्षेत्र अत्यधिक बता कर मकौडिया में बांध निर्माण को योजना से अलग कर दिया। इस संशोधन के बाद नदी जल की शुद्धता पर प्रश्नचिह्न लग गया।
नदी का उद्गम हो गया समाप्त
अपने उद्गम से लगातार प्रदूषित नदी में शुद्ध जल के बजाय निस्तार और कल-कारखानों की रासायनिक गंदगी की मात्रा अधिक है। पूरी परियोजना में पहले से ही इस गंदगी को बेतवा में मिलने से रोकने की चर्चा नहीं हुई है। मगर जब पहले ही नदी का उद्गम समाप्त हो चुका है, तो ऐसे में बेतवा-केन जोड़ परियोजना के लिए कुछ कहना मुश्किल है। मरणासन्न बेतवा को पुनर्जीवित किए बगैर नदी जोड़ योजना की सफलता अब संदिग्ध हो चुकी है।
पृथ्वी का फेफड़ा ‘अमेजन जंगल’ तेजी से खत्म होने की ओर बढ़ रहा
गर्मी के मौसम में बेतवा नदी अपने उद्गम से लेकर मप्र राज्य की सीमा में सिर्फ निस्तार एवं औद्योगिक इकाइयों से छोड़े गए पानी का संवाहक बनी रहती है। वह स्थान जहां पर बेतवा और केन यमुना नदी से मिलती है, जल परीक्षण में बेतवा जल के टीडीएस में घुली लवण मात्रा का स्तर 900 मिली ग्राम प्रतिलीटर और केन नदी का पानी 600 टीडीएस के स्तर का परिणाम देता है। जबकि पेयजल के रूप में 200 से 500 टीडीएस की मात्रा ही मानक है। यमुना में प्रदूषण पर बनी रपट में बेतवा और केन से यमुना के प्रदूषण को रेखांकित किया गया है। इन हालात में सरकार प्रस्तावित परियोजना के अंतर्गत जल के उपयोग की अनुमति नहीं दे सकती है। जलवायु परिवर्तन, अतिक्रमण, जंगलों की निरंतर कटाई और नदी भूभाग पर अवैध अतिक्रमण को रोके बगैर बेतवा का पुनर्जीवन बेहद मुश्किल है। इसके पूरे बहाव क्षेत्र में नदी किनारे तालाबों और सघन जंगल की आवश्यकता है। नदी को बचाने के लिए सभी को युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे।