देश की राजधानी दिल्ली की सियासत में नुक्कड़, चौराहों से लेकर दुकानों और घरों तक एक ही राजनीतिक चर्चा है कि दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? तमाम टीवी चैनलों, अखबारों, रेडियो और आपसी बातचीत में भी लोग इस बात के कयास लगा रहे हैं कि दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन बन सकता है। इसे लेकर आम आदमी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं और सरकार के मंत्रियों के नामों पर भी चर्चा हो रही है।

इस सारी चर्चा के बीच एक चर्चा यह भी है कि दिल्ली का जो नया मुख्यमंत्री होगा, वह कितना आजाद होगा? सीधे शब्दों में कहें तो दिल्ली में भले ही अरविंद केजरीवाल की जगह कोई नया नेता मुख्यमंत्री बनने जा रहा है लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि दिल्ली सरकार की कमान अरविंद केजरीवाल के हाथ में ही रहेगी। इस बात को कहने के पीछे ठोस आधार भी है।

दिल्ली में विधानसभा के चुनाव जनवरी-फरवरी 2025 में होने हैं लेकिन अरविंद केजरीवाल चाहते हैं कि दिल्ली में नवंबर में चुनाव हो जाएं। दिल्ली में अगर तय समय पर भी चुनाव होते हैं तब भी नए मुख्यमंत्री के पास चार से पांच महीने का वक्त काम करने के लिए रहेगा।

आप का मतलब है केजरीवाल

यह बात पूरी तरह सच है कि आम आदमी पार्टी का मतलब अरविंद केजरीवाल हैं। अरविंद केजरीवाल के बिना पार्टी की सियासी हैसियत बहुत ज्यादा नहीं है। साल 2012 में बनी आम आदमी पार्टी ने पिछले 10 सालों में जिस तेज रफ्तार के साथ सियासी सफर तय किया है, उसका श्रेय केजरीवाल को ही जाता है।

यह अरविंद केजरीवाल ही थे जिन्होंने 2013, 2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बतौर राष्ट्रीय संयोजक आम आदमी पार्टी का नेतृत्व किया और सरकार बनाई। इसके अलावा पंजाब में भी फ्रंट फुट पर आकर उन्होंने पार्टी के लिए चुनाव प्रचार किया और दिल्ली की तरह ही बड़े बहुमत के साथ आप की सरकार बनी।

अरविंद केजरीवाल की ही अगुवाई में आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब से बाहर निकली और उसने गोवा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित तमाम राज्यों में चुनाव लड़ा। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के समर्थकों और कार्यकर्ताओं का मानना है कि कथित आबकारी घोटाले में 5 महीने तक जेल में रहने के बाद अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता बढ़ी है।

इन बातों को अगर राजनीतिक भाषा में कहा जाए तो अरविंद केजरीवाल की मर्जी के बिना आम आदमी पार्टी में पत्ता भी नहीं हिल सकता। नए मुख्यमंत्री के चयन को लेकर आम आदमी पार्टी के तमाम बड़े नेता ताबड़तोड़ बैठकें जरूर कर रहे हैं लेकिन मुख्यमंत्री का पद उसी नेता को मिलेगा जो अरविंद केजरीवाल की पसंद की सूची में पहले नंबर पर होगा।

ऐसे में दिल्ली में भले ही कोई भी नेता मुख्यमंत्री बने, उसे सरकार में शीर्ष पद पर होने के बाद भी काम करने की कितनी आजादी मिलेगी, इस पर भी खूब बहस दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में हो रही है।

सुनीता केजरीवाल पर दांव नहीं खेलेगी आप? 

दिल्ली की सियासत में इस बात की भी चर्चा है कि अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुर्सी पत्नी सुनीता केजरीवाल को सौंप सकते हैं। लेकिन इस चर्चा में इसलिए दम नहीं है क्योंकि ऐसा होने पर अरविंद केजरीवाल पर इस बात का आरोप लगेगा कि वह राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।  सुनीता केजरीवाल विधायक भी नहीं हैं और उनके पास राष्ट्रीय राजधानी में सरकार चलाने का कोई अनुभव भी नहीं है। 

इसलिए इस बात की बहुत ज्यादा संभावना है कि आम आदमी पार्टी सरकार के मौजूदा मंत्रियों में से ही किसी एक को दिल्ली की कमान संभालने का मौका मिलेगा। ऐसे नेताओं में गोपाल राय, आतिशी, सौरभ भारद्वाज का नाम शामिल है।