एक ओर वुहान और मल्लपुरम की कवायद। दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित बनाने पर चीन की तीखी प्रतिक्रिया। क्या यह पाकिस्तान के साथ चीन के आर्थिक-रणनीतिक संबंधों की पेच है? कश्मीर और लद्दाख के सवाल पर भारतीय विदेश मंत्रालय ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के कई प्रभावशाली देश इसे भारत का पूरी तरह आंतरिक मामला ठहरा चुके हैं। चीन जरूर इस कवायद के कूटनीतिक मायने समझता है, फिर भी वहां के यह मुद्दा उठाकर चीन ने कई ऐसे अप्रिय सवाल जिंदा कर दिए हैं, जो वुहान और मल्लपुरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनौपचारिक मुलाकातों के बाद दफन होने लगे थे। दरअसल, कूटनीतिक हलकों में अब यह कहा जाने लगा है कि भारत एवं चीन के रिश्ते हमेशा से जटिल रहे हैं। कई जगहों पर दोनों एकमत नहीं हैं और परस्पर प्रतिद्वंद्वी भी हैं। कई जगहें ऐसी भी हैं, जहां पर दोनों देशों के बीच सहयोग भी है।
अक्साई चीन और शक्सगाम वैली
कश्मीर मसले पर चीन और भारत के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं। भारत ने इस मसले पर आक्रामक रुख अख्तियार किया है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख पर फैसले को आंतरिक मसला बताते हुए भारत ने जिस तरह से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के साथ ही अक्साई चीन और शक्सगाम वैली का सवाल उठाया है, उससे जाहिर तौर पर चीन भड़क उठा है। अक्साई चीन अभी वहां के झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा है। 37244 वर्ग किमी में फैला अक्साई चीन जम्मू कश्मीर के कुल क्षेत्र का करीब 15 फीसद है, जिसको लेकर भारत का दावा है कि चीन ने अवैध कब्जा किया हुआ है। चीन ने इस पर 1950 में अवैध कब्जा किया था और बाद में इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक जिले का हिस्सा बना दिया। काश्गर में ही चीन की वायुसेना का एअरबेस भी है। इसके अलावा शक्सगाम वैली है, जिसको पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया था। वहां से ही चीन और पाकिस्तान के बीच बनने वाला कॉरिडोर निकलता है। यह पूरा इलाका सात हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है। इसी क्षेत्र में कराकोरम भी है। 1963 में पाकिस्तान ने इसे चीन को सौंप दिया था। इसके दक्षिण पूर्व में सियाचिन है।
चीन और पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंध
पााकिस्तान को चीन एक रक्षा निर्यातक देश बनने में मदद कर रहा है, जिन्हें वह म्यांमा और नाइजीरिया जैसे देशों को हथियार बेच सके। दोनों देशों के बीच एक रक्षा सौदा अपने अंतिम चरण में है। चीन से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कर पाकिस्तान अपने दम पर सैन्य हार्डवेयर का उत्पादन शुरू कर सकेगा। चीन से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कर पाकिस्तानी सेना के लिए टैंक और अन्य उपकरणों के उत्पादन में तेजी लाई जा रही है। चीन की मदद से पाकिस्तान अपनी नौसेना का विस्तार भी कर रहा है। पिछले एक साल में चीन की सहायता से पाकिस्तान ने जेएफ -17 थंडर लड़ाकू विमानों की बिक्री को दोगुना कर दिया है। चीन 2022 तक पाकिस्तान की नौसेना को चार पनडुब्बियां देगा और दक्षिणी बंदरगाह के शहर कराची के एक शिपयार्ड पर चार अन्य पनडुब्बियों का निर्माण करेगा, जिससे अरब सागर और हिंद महासागर पर नज़र रखी जा सके। पाकिस्तान की मदद करने के पीछे का कारण यह है कि चीन का मानना है कि अमेरिकी और अन्य पश्चिमी देश सैन्य मामलों में भारत की मदद कर रहे हैं। जिसके जवाब में पाकिस्तान को चीन सैन्य रूप से सक्षम बनाने की हरसंभव कोशिश कर रहा हैै।
भारत के साथ कारोबारी हितों पर जोर
मल्लपुरम में प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई शिखर वार्ता में जो समझ बनी है, वह चीन के साथ चले आ रहे आर्थिक मतभेदों को कम करने और सुलझाने की दिशा में कवायद बताई जा रही है। भारत को चीन एक ऐसे देश की तरह देखता है जो हिंद महासागर क्षेत्र में अपने प्रभाव को कम करने के चीनी प्रयासों को आसानी से सिरे नहीं चढ़ने देगा। जहां तक ऊर्जा जरूरतों का सवाल है, चीन चाहता है भारत को अपना सहयोगी बनाना, लेकिन चीन को हिंद महासागर में उन जगहों पर भारत की उपस्थिति गवारा नहीं है, जिन्हें वह अपने लिए सामरिक रूप से महत्व की कहता है। चूंकि भारत के रिश्ते अरब की खाड़ी वाले मुल्कों, खासकर सऊदी अरब और यूएई के साथ बहुत मजबूत हैं, इसलिए चीन कारोबारी संबंधों को नहीं छेड़ रहा। चीन खाड़ी के तेल संपन्न राष्ट्रों के साथ ऊर्जा सहयोग की उम्मीद रखता है। श्मन के निशाने पर यही इलाका ज्यादा क्यों