केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने का बिहार के सभी सियासी दलों ने स्वागत किया है। यह कर्पूरी ठाकुर का जन्म शताब्दी वर्ष है। कर्पूरी ठाकुर बिहार के लोगों के बीच ‘जननायक’ नाम से भी पहचाने जाते हैं।
बिहार के प्रमुख विपक्षी दल राजद और जदयू लगातार कर्पूरी ठाकुर के लिए भारत रत्न की मांग कर रहे थे। कर्पूरी ठाकुर समाज के सबसे वंचित वर्गों के लिए सम्मान, आत्मसम्मान और विकास सुनिश्चित करने के अपने संघर्ष के लिए पहचाने जाते हैं।
बिहार के सबसे बड़े पिछड़े नेता
बिहार में आज भले ही नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे नेताओं का सिक्का चलता हो लेकिन एक दौर ऐसा था, जब कर्पूरी ठाकुर बिहार में पिछड़े समुदाय से संबंध रखने वाले सबसे बड़े नेता था। आज भी उन्हें ही बिहार में बैकवर्ड समुदाय से संबंध रखने वाले नेताओं में सबसे बड़ा माना जाता है।
कम आबादी वाली नाई जाति से संबंध रखने वाले कर्पूरी ठाकुर को लालू यादव, राम विलास पासवान जैसे नेताओं के उदय की मुख्य वजह माना जाता है। वह छोटे कार्यकाल के लिए ही सही लेकिन दो बार बिहार के सीएम भी चुने गए। इस दौरान उनके द्वारा लिए गए क्रांतिकारी नीतिगत निर्णयों का व्यापक प्रभाव पड़ा और इसकी गूंज आज भी सुनाई देती है।
समस्तीपुर में हुआ जन्म
कर्पूरी ठाकुर का जन्म बिहार के पितौंझिया गांव में हुआ था। समस्तीपुर जिले का यह गांव अब कर्पूरी ग्राम के नाम से पहचाना जाता है। कर्पूरी ठाकुर ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया और वो जेल भी गए। देश के आजाद होने के बाद कर्पूरी ठाकुर साल 1952 में पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद वह अपनी मृत्यु तक (1988) हमेशा विधायक रहे। वह साल 1984 में अपने जीवन का एकमात्र विधानसभा चुनाव हारे थे। कर्पूरी ठाकुर साल 1977 में सांसद भी चुने गए।
करीब एक साल रहे बिहार के शिक्षा मंत्री
कर्पूरी ठाकुर मार्च 1967 से जनवरी 1968 तक बिहार के शिक्षा मंत्री रहे।दिसंबर 1970 में वह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के समर्थन से राज्य के सीएम बने लेकिन उनकी सरकार मात्र छह महीने में गिर गई। इसके बाद वह 1977 के जून महीने में फिर से सीएम बने लेकिन दो साल बाद सत्ता गंवा बैठे। ऐसा उनके द्वारा लागू की गई आरक्षण नीति के कारण हुआ।
बिहार में जैसे-जैसे सोशल जस्टिस लीडर्स की नई पीढ़ी अधिक शक्तिशाली हुई, कर्पूरी ठाकुर ने धीरे-धीरे वह प्रमुखता खो दी जो उन्हें प्राप्त थी। उनके द्वारा लिए गए नीतिगत फैसले ध्रुवीकरण करने वाले थे लेकिन उनकी क्लीन इमेज और खुद पर सरकारी पैसा खर्च करने से इनकार करने की वजह से व्यक्तिगत रूप से उन्हें सम्मान दिया जाता था।
विधायक बनने के बाद भी नहीं था कोट
कर्पूरी ठाकुर के बारे में एक प्रचलित किस्सा यह है कि जब वह साल 1952 में पहली बार विधायक बने तो उन्हें ऑस्ट्रिया के आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल के लिए चुना गया। उस समय कर्पूरी ठाकुर के पास कोट नहीं था। ऑस्ट्रिया जाने के लिए उन्होंने एक दोस्त से फटा हुआ कोट उधार लिया। जब यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप टीटो की नजर उनके फटे हुए कोट पर पड़ी, तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को एक नया कोट गिफ्ट किया। साल 1988 में जब कर्पूरी ठाकुर का निधन हुआ, उस समय उनका घर एक झोपड़ी से मामूली बड़ा था।
ये थे बड़े नीतिगत फैसले
- कर्पूरी ठाकुर ने दसवीं एग्जाम से इग्लिंश को कम्पलसरी सब्जेक्ट लिस्ट से हटा दिया था।
- शराब पर रोक लगाई
- सरकारी अनुबंधों में बेरोजगार इंजीनियरों के लिए प्रेफरेंशियल ट्रीटमेंट, इसके जरिए करीब 8,000 को नौकरियां मिलीं (यह तब था जब बेरोजगार इंजीनियर नौकरियों के लिए लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे थे; ऐसे ही एक प्रदर्शनकारी नीतीश कुमार थे)
- लेयर्ड रिजर्वेशन सिस्टम
लेयर्ड रिजर्वेशन सिस्टम, वह आखिरी फैसला था जिसका बिहार के साथ-साथ देश पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। जून 1970 में बिहार सरकार ने मुंगेरी लाल आयोग नियुक्त किया। इस आयोग ने फरवरी 1976 की अपनी रिपोर्ट में 128 “बैकवर्ड” समुदायों का नाम दिया। इनमें से 94 की पहचान “मोस्ट बैकवर्ड” के रूप में की गई।
कर्पूरी ठाकुर की जनता पार्टी सरकार ने मुंगेरी लाल आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया। सिफारिशों के आधार पर कर्पूरी ठाकुर ने 26% रिजर्वेशन लागू किया। इसमें से ओबीसी को 12% हिस्सा मिला। ओबीसी के बीच आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को 8%, महिलाओं को 3% और “सवर्ण जाति” के गरीबों को 3% मिला। यह केंद्र सरकार द्वारा EWS कोटा लाने से काफी पहले की बात है। तभी से जातिगत जनगणना के साथ लेयर्ड रिजर्वेशन की मांग भी जोर पकड़ने लगी।
जल्दबाजी पड़ी कर्पूरी ठाकुर को भारी?
हालांकि अपने इस फॉर्मूला की वजह से कर्पूरी ठाकुर को नुकसान सहना पड़ा। उनकी सरकार गिर गई। उन्हें सवर्ण जातियों के विरोध का सामना करना पड़ा।RJD के राष्ट्रीय प्रवक्ता, जयंत जिज्ञासु ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ऐतिहासिक रिजर्वेशन पॉलिसी पारित होने के बाद कर्पूरी ठाकुर को ऊंची जातियों से अपमान का सामना करना पड़ा। उन्हें उनकी जाति को लेकर निशाना बनाया जाता था।
सियासी तौर पर भी रिजर्वेशन पॉलिसी लाने के कर्पूरी ठाकुर के फैसले को जल्दबाजी के तौर पर देखा गया। इग्नू के पूर्व प्रोफेसर जगपाल सिंह ने 2013 के एक पेपर में कर्पूरी ठाकुर के काम करने के तरीके की तुलना कर्नाटक के देवराज उर्स से की है।
पेपर में उन्होंने कहा: “कर्पूरी ठाकुर के विपरीत, उर्स ने अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद अपने 7 साल के शासन के आखिरी दो वर्षों के दौरान रिजर्वेशन पॉलिसी पेश की अपने ज्यादातर कार्यकाल के लिए। पेपर में यह भी कहा गया है कि कर्पूरी ठाकुर ने उचित तैयारी किए बिना ही रिजर्वेशन पॉलिसी पेश कर दी। जगपाल सिंह ने लिखा है, “कर्पूरी ठाकुर बॉक्सिंग सीखने से पहले ही रिंग में चढ़ गए।”
हालांकि, कर्पूरी ठाकुर ने परिणामों की परवाह किए बिना अपने कोर वोटर्स से किया अपना वादा निभाया।